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दिसंबर, 2017 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

इंतजार के पल

#इंतजार के पल मैं नियरे बैठी गहरे सागर,            फिर भी खाली है मन गागर। मन में उठती उन्माद लहर,            तटबंधन तोड़ चली आतुर। उद्वेग का झरना बहता मन,            शशि किरणें भी झुलसाए तन। शांत तरु भी ऋषियों सम,            अँधियारे के निशा पहन वसन। ह्रदय में अगन लगाय रही,            विरहन की पीड़ बढाय रही। पद-तल छूता है ये जलधि,             बीत रही जीवन अवधि। अवगाहन करता मेरा जिया,             प्रदीप्त ह्रदय में प्रेम-दिया। शंकाओं के ज्वार उठे            मेरे चित्त से सारेे स्वप्न मिटे। धराध्वस्त वो महल हुआ,           खंडहर में बैठी करूं दुआ। #सुनीता बिश्नोलिया                     

नव वर्ष

#31 दिसंबर 2017 #नववर्ष नव-वर्ष हर्ष लाएगा,ये उम्मीद हृदय में पलती है, कोमल मन की सच्ची आशा,सदा-सर्वदा फलती है। तोड़ चलें प्राचीन ये सारी,परम्परा हर भारी-भारी, रचने को इतिहास ह्रदय से,आज उठी है एक चिंगारी। दिल को गहरे कुछ घाव ये जाते,दे गया पुराना साल, लापरवाही छोड़ गई ,दिल में जलते हुए कई सवाल। आओ हम भी प्रण लें सारे ,मिलकर के इस वर्ष, हर चेहरा पुलकित होगा, और हर चेहरे पे होगा हर्ष। ढोंगी और भ्रष्टाचारी की ,कमर तोड़ मानेंगे, देश के रक्षा -यज्ञ में हम भी, समिधाएँ डालेंगे। विकास के पहिए को ,मिलकर हम राह दिखाएँगे, मार्ग में आते अवरोधक ,मिलकर ही हटाएँगे। संसाधनों का उचित हो वितरण,और उपयोग हो सीमित, हर भूखे का उदर तृप्त हो, बस इतना हो उनको अर्जित। मूल्यवृद्धि कम करने को हो ,जमाखोरों पर वार, नए साल में बरसे खुशियाँ , ऐसा हो व्यापार। स्वच्छंद पंछी की भाँति ,हर बिटिया भी उड़े आकाश, डर-भय ना हो उसे कहीं, राह में सुरक्षा का हो प्रकाश। ऐसी हो नव वर्ष में ईश्वर धरा भारती माँ की, विजय सदा वरण करे,उतारे आरती वो माँ की। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

नन्हे पंछी

नन्हे पंछी उन्मुक्त ह्रदय स्वप्निल आँखें ,             उड़ चले पंछी ये खोल के पाँखें। नील गगन की सीमा तोड़ ,              चले ये खग जाने किस ओर। साथ सखा क्रीड़ातुर मन               प्रकृति लुटाती अपनापन । हरित वसुधा राह सजीली ,              पवन बह रही है  गर्वीली। उच्च लक्ष्य के साधक,                 लो चले क्षितिज को छूने, तिमिर धरा का हरने ,                 चले सूरज से ऊर्जा लाने। नव-उमंग और विलसित दृग,                 विश्वास भरे-भरते हैं डग । नूतन कलियाँ लो पुष्प सी खिल,                 आज चली हैं,ये हिलमिल। संसार में सम सौरभ फैलेगा,                  राह में जलते-चले हैं ये दीपक #सुनीता बिश्नोलिया

#जाधव

#जाधव पाकिस्तान की जेल में बंद पति से मिलने की आशा में मिसेज जाधव ने अपनी सासू माँ के साथ आखिर कार पाकिस्तान के उस मुलाकात कक्ष के अंदर धड़कते दिल से कदम रखा।इस उम्मीद से ,इस सपने से कि पति के ह्रदय पर सिर रखकर उन्हें मजबूती प्रदान करेगी,उनके ह्रदय में आशा का संचार करेगी कि आप शीघ्र ही अपने घर आओगे। माँ भी बेटे को गले से लगाने के लिए आतुर...लेकिन ये क्या ? सामने का दृश्य देखकर सास-बहू ने कस कर एक-दूसरे का हाथ थाम लिया। माँ को बेटा दिखा,पत्नी को पति, लेकिन बीच में काँच की दीवार दोनों फूट-फूट कर रोना चाहती थीं लेकिन नहीं रो पाई वो नहीं चाहती थीं कि जाधव उनको देख कर दुखी हो। कुलभूषण भी माँ और पत्नी को देखकर खुश होने का प्रयास करते हैं...पर सन्न हो जाता है,पत्नी का सूना माथा,खाली माँग,मंगलसूत्र रहित गला देखकर और तो और नंगे पैर। माँ का ह्रदय में बेटे को गले से लगाने के लिए स्नेह और ममता का सागर हिलोरे ले रहा था,वहीं बेटा भी माँ के आँचल में छुप कर पीड़ा और दर्द को छुपाना चाहता था। लेकिन तीनों ही सुन्न हैं ,तीनो ही एक-दूसरे से अपनी पीड़ा, अपना दर्द छुपाने की नाकाम कोशिश कर रहे हैं,एक-दूसरे को

हड़ताली डाक्टर्स

#मुझे शिकायत है हाँ...मुझे शिकायत है..शिकायत है उस भगवान से जो जब मन चाहे रूठ जाता है....रूठ जाता है उन भक्तों से उस समय भी जब इनको उस अद्भुत शक्ति की..उस हाथ की अति आवश्यकता होती है...उस समय वो मात्र साधारण हाथ नहीं.. साक्षात् ईश्वर का हाथ होता है जो स्वयं ईश्वर सम वो ईश्वर निजी स्वार्थ के वशीभूत होकर जरूरत मंद पर रखने हेतु मन कर देता है,मना कर देता है..रक्त से लथपथ घायल व्यक्ति का इलाज करने से....छुप जाता है भाग जाता है अपने कर्त्तव्य से मुख मोड़ कर...! वो भूल जाता है ...कि मैंने सच्चे हृदय से ताउम्र दीन-दुखियों,मृतप्राय और घायल व्यक्तियों की सेवा की शपथ ली थी। मुझे शिकायत है..कुछ ऐसे डॉक्टर समाज से जो ये भूल जाते कि उन्हें..उनके माता-पिता ने इतनी महँगी शिक्षा किस उद्देश्य से दिलवाई थी...क्या इसलिए कि वो अपनी इस शिक्षा पर अहंकार कर सके...साधारण जन के धन से महँगे जीवन का मूल्य ना जान सके। कुछ चिकित्सकों को छोड़ दें तो अधिकांश ने तो कर्त्तव्य को व्यवसाय ही बना लिया है..ऐसा पहली बार नहीं हुआ...कई बार देखा है....अपनी जरुरी और गैर जरुरी माँगों को मनवाने के लिए हड़ताल कर सरकार

#अटल बिहारी

#अटल बिहारी.....(मेरी कविता का एक अंश) नमन अटल.. अटल स्वप्न नयनों में लेके,मधुर कविता गाता देश-प्रेम का जज्बा दिल में,मुख उसका बतलाता । निडर ऐसा लापरवाह ,अंजाम से ना घबराता पथ के पत्थर को मार के ठोकर,आगे वो बढ़ जाता । निज भाषा के शब्दों को , विश्व मंच पे था बिखराया विश्व-पटल पर खड़ा अटल वो,मेघ के सम था गरजा । पोकरण या कारगिल हो ,शक्ति सिंह सी दिखलाता। दुश्मन को  लाचार बनाकर,नाकों चने चने चबवाता। राजनीति का चतुर खिलाडी,शब्दों के तीर सुनहले, खुद उलझन में फंसता पर,परहित हर द्वार थे खोले। कथनी करनी एक सामान, आँखों में बस हिंदुस्तान, अटल वचन वाला वो सिपाही,अटल बिहारी है महान। अटल-फैसला,अटल-ह्रदय से, लेना तब मज़बूरी थी, गद्दारों को सबक सिखाने , की पूरी तैयारी थी। तैयार खड़े थे सीमा पर,तोपों की गर्जन थी भारी थी, सबक सिखाया दुश्मन को,पाक को दी सीख करारी थी। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

श्रृंगार

# हाइकु---श्रृंगार (सृष्टि से श्रृंगार) सृष्टि-श्रृंगार यौवन की गागर डूबी सागर                     चन्दन टीका                   उबटन पुष्पों से                    माणक माला सूर्य सी आभा गौरी के मुख पर बिंदिया-तारे                            घटा-काजल                          अनुराग-अंचल                            दामिनी-गोटा मोती-मुद्रिका पुष्प गुम्फित-केश लताएँ-साड़ी                            साँस-संवाद                         अम्बर-चुनरिया                             मेरा-श्रृंगार अधर-लाल सुर्ख-मुखमंडल नवल-चन्द्रिका                            बिन नथ के                          अधूरा है श्रृंगार                            सुहाग-चिन्ह गजरा-फूल नुपुर-खनकते पाँव-पैंजनी                             नाजुक-कटि                            करधनी-सुहाए                              बिछिया-गेंदा सौलह हैं श्रृंगार सजन तेरा प्यार हर जन्म में। #सुनीता बिश्नोलिया

रुकना मत

#रुकना मत कठिन राह है तेरी मगर ना पस्त हौंसले करना, घायल पंछी तू भर#उड़ान, ना मंजिल से पहले रुकना। मंजिल से पहले बाधाओं को, देख पथिक ना घबराना, #जुबान कटुक सुनकर-सहना, अपना धीरज ना खोना। लक्ष्य से पहले पथिक तेरी, गर साँस-टूटे मत घबराना, मंजिल पाने को ऐ पंछी ! #कुर्बान तू चाहे हो जाना। तेरी राह रोकने को ऐ खग ! #तूफान जो आए मत रुकना, हों काल से सम्मुख आन खड़े, तो उनसे भी टकरा जाना। हे पथिक ! लक्ष्य को पाकर के, दंभ से तनिक ना भर जाना, फल युक्त वृक्ष सा झुक कर के, #मुस्कान जरा बिखरा देना। #सुनीता बिश्नोलिया

नई शुरुआत

खुदा के सामने तेरी बता #औकात क्या बंदे यहीं रह जाएगा सब कुछ,छोड़ अपने बुरे धंधे। ना कह#बदजात ओरों को ,बुरा ना कर तू ऐ पगले, जमाने की नजर में खुद को,कर साबित अरे बंदे। तेरा ये धन तेरी दौलत ,ना कुछ भी साथ जाएगा, करेगा कर्म जैसा तू , खुदा से वो ही ईनाम पायेगा। तू #तहकीकात कर दिल में, खुदा को पास पायेगा, जरा तू झाँक ले दिल में,समझ हर सच को जाएगा। छोटी सी जिन्दगी बन सहारा,किस्मत के मारों का, #मुलाकात खुद करेगा वो,रूप ले उन बेसहारों का। जो अब तक न किया तू कर,नई#शुरुआत अब दिल से, तेरे दिल को मिलेगी तब ख़ुशी,बढ़ कर खजाने से। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर (राजस्थान)

#मुहब्बत

मुहब्बत नाम है तन्हाई में तन्हा सुलगने का, सनम की याद में खुद को..गम में डुबोने का। मुहब्बत नाम है दिल पे बनी,उन लकीरों का, जिगर को भेदती गहरा,चमचमाती शमशीरों का। मुहब्बत नाम है दिल में लगे उस घाव गहरे का, जमाने ने लगा रखे..कड़े नजरों के पहरे का। चले ना जोर दिल का वो,मुहब्बत ही तो होती है, दिन-रात फिर मजबूर आँखे,मुहब्बत में ही रोती हैं। बड़ी उम्मीद से मैंने बनाया आशियां  मुहब्बत का, मेरी हसरत के टूटे महल..बचा खंडर मुहब्बत का। है नाजुक बड़ी ये चीज, कच्चे काँच की तरहा, जो टूट कर भी  दे ही जाता , जख्म भी गहरा। किसी के नाम पर खुद को फ़ना कर गुजरने का।, मुहब्बत नाम है तन्हाई में तन्हा सुलगने का। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

महानायक-अमिताभ बच्चन

व्यक्तित्व व कृतित्व (महानायक अमिताभ बच्चन) मधुशाला में बहके कोई..        प्यालों को छलका कर के, हरिवंश तनय क्या लिखूँ कहो ,             आज तुम्हारे बारे में। कला के अंकुर का उद्भव,          शायद बचपन में पनप उठा, रंगमंच पे आ के तभी तू,            अमित वृक्ष बन हुआ खड़ा। प्रारंभ की ठोकर को तूने,         प्रसाद स्वरूप था ग्रहण किया, लक्ष्य पाने को तूने ,                   दुनिया से संघर्ष किया। अहंकार को जीवन भर,               आने ना अपने पास दिया, मुख पे मुस्कान सदा रहती,             अभिमान ना तुझे जरा सा किया।         जीवन में जय का प्रवेश अमित,         अभिषेक 'एश्वैर्य ' का करता है, 'आराध्य' की भांति ईष्ट हो तुम,          मन प्रणाम दूर से करता है। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

अँधेरी रात

ये कविता उस समय लिखी थी जब जयपुर में एक तीन साल की बालिका दरिंदगी का शिकार हुई .. फूल के आँचल से लिपटी,सो रही थी वो कली ना मचा था शोर पर,थी वहाँ बिजली गिरी। #उपवन में जंगल से था आया,एक ऐसा जानवर, नन्ही कली को देख,उसके मन में आया पाप भर। तोड़ उसको शाख से,अलग उसने कर दिया, अधखिले उस पुष्प को,रौंद कर के रख गया। फूल की जब नींद टूटी,थी कली ना पास में, मन डर गया उस पुष्प का,बस.. बुरे अहसास में। बदहवासी में वो दौड़ा,आँख में  थी अश्रु धार हाल उसका देख के ,,करने लगी सहसा चित्कार। वज्र टूटा हाय! माँ पे , भगवन...!ये क्या हो गया ? ये घिनौना कृत्य बोलो ,कौन ...? कर   गया । अंश की हालत को देखा,हो गई ममता निढाल. फट गया उसका ह्रदय,आँखों में उसके कई सवाल? सिर पे छत ना होने की ,क्या इतनी घिनौनी है सजा, गर हाथ में होता हमारे ,हम लेते महलों का मजा। नर-भेड़िया वो आज शायद!,पास ही में है खड़ा, सब संग वो भी भीड़ में ,हक़ के लिए मेरे लड़ा। होड़ सबमें  क्यों मची है ,देखने मेरी  दशा सहमी हुई और कांपती माँ, हो गई है परवशा। जलती  हुई उन आँखों से ,कई प्रश्न उसने दाग कर, सबको निरुत्तर कर  दिया,एक

#चुनावी वादे

#चुनावी वादे घोषणाओं और झूठे वादों का  इंद्रजाल लेकर चुनावी मंच पर आचुके हैं कई बड़े- बड़े कलाकार। कुछ कलाकारों के लिए तो ये कर्म क्षेत्र  है किन्तु कुछ तो अपने लोभ के कारण इस मंच को धनोपार्जन का सुगम मंच समझ यहाँ अपनी बुद्धि को झोंक देते हैं। यहीं पर शुरू होता है उनका चालों पर आधारित युद्ध अर्थात भोली भाली जनता की भावनाओं से खेलने का दौर। जब हम स्वयं को एक लोकतांत्रिक देश मानते हैं तो हमारे राजनेता जनता पर धर्म-जाति आदि के नाम पर क्यों अपनी और आकर्षित करने का प्रयास करते हैं..इस तरह वो उन्हें देश के नाम पर जोड़ते नहीं वरन देश की एकता पर ही कुठाराघात करते हैं । जो व्यक्ति स्वयं किसी वर्ग विशेष हेतु विशेष सुविधाओं की भीख मांगता हुआ इस मंच पर आता है वो क्या वास्तव में जनकल्याण की भावना रखता होगा..नहीं बिल्कुल नहीं.. वो मात्र किसी वर्ग-विशेष के भले की चाह से आता है इसमें जनसाधारण के हित का का रत्ती भर -भाव भी नजर नहीं आता। कुछ तथाकथित नेताओं के अटल किन्तु कुटिल इरादे चुनाव जीतने हेतु इस प्रकार का दांव खेलते हैं कि जनकल्याण करते व्यक्ति भी उसकी चाल में फँस कर वो मार्ग छोड़कर मात्र अपनी कुर

गुलामी

#गुलामी सुधा ने ससुराल में पहला कदम ही रखा था कि एक आवाज आई...बिमला माना कि तेरी बहू बहुत सुंदर है...पढ़ी-लिखी है,नौकरी भी करती है।पर इसमें संस्कारों की तो कमी है इसने घूंघट ही नहीं निकाल रखा।अरे जब पल्ला सिर पर लिया है तो क्या पल्ले को थोड़ा आगे खिसका लेती तो पल्ला घिस जाता..भाई पढ़ी -लिखी तो हमारी बहू भी है मजाल है,पल्लू सरक जाए। विमला ने जेठानी को कहा भाभी जी वो इसे मैंने ही कहा था घूंघट निकालने की जरूरत नहीं..। इतना सुनते ही विमला की जेठानी बोली...हे राम ! तू तो पहले ही हमारे खानदान की परम्पराओं को तोड़ती रहती है..औरतों की लाज-शरम बची रहे उन परम्पराओं का तो मान रख ।सुधा चुपचाप ये सब देख रही थी..उसका मन किया कि वो कुछ बोले । अमन ने भी उसे सब-कुछ चुपचाप देखने का इशारा किया। जेठानी का बड़बड़ाना जब बंद नहीं हुआ तो...विमला बोली। दीदी मैंने भी जाने अनजाने और आप लोगों के झूठे मान का मान रखते हुए सारी सही-गलत परम्पराओं को निभाने ने की कोशिश की ,लेकिन मैं अपनी बहू को इन परम्पराओं की दासी बनाकर इनकी # गुलामी करने को मजबूर नहीं करुँगी।ये जैसी है वैसी ही रहेगी...इसे जीवन में बहुत कुछ पाना है..इन प

कोहरा

#कोहरा कंप-कंपाती  सर्दी में  वो,       वो सुबहा सजीली आई , कोहरे की साड़ी बाला ने,             अंधियारे खेतों पर लहराई । हर डाली पर तितली सा कोहरा,              ओस की तरह छिटकता, उस 'आँचल' के स्पर्श से पादप,              'अलसा ' अँगड़ाई लेता।                 कोहरे से लिपटे खेतों में ,            कोई मस्त मगन हो गाता। देख के  बाली गेहूं की ,           खुशियों से वो भर जाता ।                  सर्दी और कोहरे की सुबहा,          जोश ह्रदय में भरती, साम्राज्य धुंध का फ़ैल रहा,           फसलें नव-जीवन पाती। #सुनीता बिश्नोलिया

#विडम्बना

जयपुर से दिल्ली की यात्रा..दिल्ली में स्वागत किया स्वच्छता अभियान को मुँह चिढ़ाते दृश्य ने...दिल्ली देश का दिल..राजधानी,मन सन्न रह गया गंदगी के ढेर देख कर। हादसों को निमन्त्रण देता बड़ा सा टूटा हुआ वृक्ष...झुग्गी-झोंपड़ियों में रहने वाले लोगों के इधर उधर  भागते बच्चे..रेलवे ट्रेक के पास सूखते ,हवा से इधर-उधर लहराते कपड़े उफ़ ! क्या ये है स्वच्छ भारत की तस्वीर...ये तो स्वच्छता की ओर एक कदम भी बढ़ा हुआ नहीं लग रहा...वही..गरीब वही गरीबी.. कहाँ रह गई सम्पन्नता ..किसके हिस्से आई है दौलत..क्या इनके हिस्से यही रेलवे ट्रेक हैं...यहीं नित्य क्रियाओं से निवृति....गंदगी फ़ैलाने का कारण...स्वयं के लिए समस्याएँ..स्वयं के परिवार को सदेव बुरी नजरों से बचाने का प्रयास करते लोग..और इनके हित में कार्य करने का दावा करने वाले ..शायद भोग और ऊँचे बोल- बोलकर ही सुख पाते हैं। कहते हैं स्वच्छता अभियान जोरों-शोरों से चल रहा है..हाँ अवश्य चल रहा है, किन्तु कागजों मे कुछ लोगों ने तो जैसे ठान लिया है ,स्वच्छता अभियान पर ही झाड़ू फेरना है..यहाँ आम जन सहभागिता भी.दिखाई नहीं देती कि सरकार का सहयोग करके ही लक्ष्य प्राप्ति हे

# फ़िज़ा

आज फ़िज़ा बदली-बदली,देश की मुझको लगती । पहले सा प्रेम ना यहाँ रहा,कड़वाहट घुली सी दिखती। मुस्कान बिखरते चेहरों के, मन मैले से लगते सम्मुख अमृत बरसाते,क्यों!पीछे से जहर उगलते। आज फ़िज़ाओं में बोलो, क्यों ! काले बादल छाए , रूप मनुज का लेकर क्या?,फिर से कोई 'दानव' आए । तर्क-वितर्क में पड़कर के,हर तरफ ही आँखे जलती, आज फ़िज़ा बदली-बदली ,देश की मुझको लगती। अपने पाँव जमाने को दूजे का पैर पकड़ते, पाकर ऊँचा ओहदा क्यों!उसी को वहाँ गिराते। भाषा ऐसी आज कहो,कुछ लोग हैं क्यों,अपनाते, स्वयं का दामन स्वच्छ रखें,कीचड़ दूजे पर फेंकें। कुर्सी के खेल में पड़कर के,क्यों इतना हैं गिर जाते, सम्मान उसी का ना हरके,परिवार को मध्य ले आते। अनगिनत प्रश्न हैं उमड़ रहे,आँखें उत्तर ना पाती, आज फ़िज़ा बदली-बदली,देश की मुझको लगती। #सुनीता बिश्नोलिया