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देवी माँ

    देवी माँ मैं भी सुदामा  बचपन में बेसब्री से इंतजार होता था गर्मी की छुट्टियों का और जब छुट्टियाँ होती तो मैं और मेरी बड़ी बहन गाँव  जाते अपनी दादी के पास हमारा गाँव ज्यादा दूर नहीं था 15 किलोमीटर की दूरी पर ही था। वहां पर हम 6 -7 लड़कियों की गैंग थीऔर उस गैंग की मुखिया हमारी बड़ी दीदी थी हमारी उस गैंग में मेरे बुआ की लड़की छाया , मेरे चाचा की लड़की शैलबाला पड़ोस की सीमा, रचना ,निशा थी ।हम सब तालाब में नहाने जाते वहाँ पर रंग-बिरंगे कमल के फूल तोड़ते  आम के पेड़ों के पास झूला झूलते छोटी-छोटी अमिया तोड़ते खूब मजे करते । बुआ की लड़की छाया ने बताया कि हमारे गाँव में एक औरत को देवी आती है बस फिर क्या था हम भी वहाँ पर पहुंच गए हमें सबसे ज्यादा डर था इस साल के परीक्षा परिणाम का, भीड़ में जैसे -तैसे करके हम देवी माँ के पास पहुंचे और पूछा कि क्या हम इस साल पास हो जाएंगे? देवी माँ ने बोला हाँ ज़रूर मेहनत करो। बस फिर क्या था खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था और इस खुशी को सेलिब्रेट भी करना था लेकिन इतने पैसे कहाँ से आते ? घर आकर हम सब ने निर्णय लिया कि क्यों ना हम भी देवी माँ वाला खेल