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राजस्थान_चुनाव वोट की शक्ति

आओ हम मतदान करें    बहुत जरूरी है मत देना    याद हमें रखना है।    सही-गलत का करें फैसला    ये भी तो हक अपना है।  मत की शक्ति बड़ी है शक्ति   नहीं किसी उत्सव से कम ये      बहुत बड़ा त्यौहार     लोकतांत्रिक देश हमारा    हमको सम अधिकार।    आओ आज दिखाएं हम भी   हम हैं जिम्मेदार।    सूझ-बूझ हम अपनी से    आओ चुनें सरकार।। मत देना बहुत जरूरी है     एक-एक मत बड़ा क़ीमती   हम को है ये भान    चुनें योग्य हम प्रतिनिधि अपना    ना गलत का हो गुणगान    लिया फैसला हमने जो    होगा सबको  स्वीकार।    आओ आज दिखाएं हम भी   हम हैं जिम्मेदार।    सूझ-बूझ हम अपनी से    आओ चुनें सरकार।।        चले सुचारू कार्य व्यवस्था     इस हेतु ये है फ़र्ज़     देकर मत अनमोल चुकाएं     अपने हिस्से का कर्ज़।     कर्म करें हम धर्म समझकर    ये अपना अधिकार     आओ आज दिखाएं हम भी    हम हैं जिम्मेदार।     सूझ-बूझ हम अपनी से     आओ चुनें सरकार।।       सुनीता बिश्नोलिया                                                    

अपने मन का रावण मारो

अपने मन का रावण मारो मन में पलती ईर्ष्या और  क्रोध,लोभ मत द्वेष से हारो राम मिलेंगे अंतर में  अपने मन का रावण मारो। ये जीवन है छोटा सा  पर इच्छाएं बहुत बड़ी इच्छाओं को पूरा करने  प्रज्ञा आपस में खूब लड़ी। देव और दानव मन रहते  शाश्वत सत्य को स्वीकारो।  देव जगे दानव सो जाए  परहित कर्म महान करो अहम घटे सीखें के संयम  अपने मन का रावण मारो।।  लीलटांस - दशहरे के दिन लीलटांस यानी नीलकंठ को देखना शुभ माना जाता है व्यभिचारी मन काबू कर तू  काम वासना की लहरें ऐसे मन में तुम्हीं बताओ  राम भला क्यों कर ठहरें। घट में राम मिलेंगे तुमको  मलिन ह्रदय को स्वच्छ करो  तज दो पलते दुर्विकार  अपने मन का रावण मारो।।  सुनीता बिश्नोलिया 

रक्षाबंधन #राखी

     आज चालीस साल के भी रक्षा बंधन के उस दिन को याद करती हूँ तो अपनी मूर्खता पर हँसी  नमस्ते के मारे पेट में बल पड़ जाते हैं। उस समय मैं लगभग पाँच- छह वर्ष की रही हूंगी। राखी बांधने के लिए हम पाँचों सुबह-सुबह तैयार हो गई और भाइयों के तैयार होते ही उन्हें मिठाई खिलाकर राखी बांध दी। भाइयों के दिए राखी के उपहार पाकर हम बहने मालामाल हो गई।   बस गुस्सा आया तो बड़े भईया पर क्योंकि उन्होंने हमें बीस-बीस रुपये दिए। बाकी बहनें कुछ नहीं बोली पर मैं मुँह फुलाकर बैठ गई। सबने मेरे गुस्से का कारण पूछाř में लच्छू  टॉफी नहीं देता वो तो दस और पच्चीस पैसे ही लेता है। दरअसल हमारा पड़ोसी दुकानदार 'लच्छू' बच्चों को सिर्फ दस और पच्चीस पैसे का सामान देता था। अगर कोई कागज के रुपए ले आता तो वो उसे वापस भेज देता । इसलिए हम समझते कि कागज के पैसे कम होते हैं।      मेरी बचकानी बात सुनकर सभी हँसने लगे और भईया ने मुझे बीस रुपये के साथ दस और पच्चीस पैसे भी दिए। लेकिन उस दिन के बाद घर में मेरा नाम 'दस पैसी' पड़ गया। आज भी हर राखी के दिन ये बात करके सब मेरा मजाक बनाते

#चंद्रयान - Chandrayaan-3

 चंद्रयान - 3 #इसरो  Chandrayaan-3  ऊँची भरी उड़ान सफल तो होना था  धरती पर रचा इतिहास, चाँद पर रचना था । सुबह का सूरज,कल संध्या निकला था  वो गौरव के पल देख, हर इक मन हरखा था  हमने रचा इतिहास  जगत ने देखा था । चंद्रयान-3 #chandrayaan-3 धरा चंद्र की चूम आज इठलाते हैं  गीत सफ़लता के मिलकर हम गाते हैं  मंगल खेले गोद,मोद में मन डूबा था  ये दिवस पर्व का याद,हर इक ज़न रखेगा  हमने रचा इतिहास  जगत ने देखा था । चट्टानों से क्या डरना जब लोहा दिल में है  मन में है विश्वास तो क्या मुश्किल मंज़िल में है  मात भारती के दूतों का,चंदा ने चरण पखारे  तिलक तिरंगा आज चाँद पर दमके है  हमने रचा  इतिहास जगत ने देखा है । सुनीता बिश्नोलिया 

तरला दलाल फिल्म

#तरला_दलाल  - #हुमा_कुरैशी #पीयूष_गुप्ता #तरला_दलाल #अमर_उजाला   माँ कहती थी कि इतनी सिलाई तो आनी चाहिए कि जरूरत पड़ने पर कम से कम अपने कपड़े सिल सकें या कपड़ों को टांका लगा सकें।इसी कारण बारहवीं कक्षा के पेपर होते ही छुट्टियों में माँ ने सिलाई सीखने भेजना शुरू कर दिया।      सिलाई में कोई रुचि तो नहीं थी फिर भी छुट्टियों में  बोर होने से अच्छा सिलाई सीखने जाना उचित जानकर हम कई सहेलियाँ जाने साथ जाने लगीं।   सिलाई के लिए जहाँ हम जाने लगे वहाँ का नज़ारा देखकर दंग रह गए। हमारी टीचर सिर्फ सिलाई ही नहीं सिखाती थी बल्कि वो तो ऑलराउंडर निकली।      वो एक तरफ सिलाई दूसरी तरफ पेंटिग, तीसरी तरफ सॉफ्ट टाॅय,चौथी तरफ मेंहदी तो पाँचवी तरफ खाना बनाना...आदि.. आदि सिखाया करती थी ।   हममें से किसी भी सहेली का सिलाई सीखने की तरफ ध्यान नहीं था। हमें तो पेंटिंग और सॉफ्ट टाॅय अपनी तरफ बुलाने लगे बन।   सब ने निश्चय किया कि सिलाई की जगह पेंटिंग सीखी जाए। सबको पता था सिलाई की फीस एडवांस दे चुके हैं इसलिए किसी की माँ इसके लिए तैयार नहीं होंगी।  बड़ी मुश

कुछ कहते हैं पर्वत - पर्यावरण दिवस

प्रिय मित्र मानव        नमस्कार        कुछ बातें थीं मन में, बहुत समय से आप को कहना चाह रहा था किंतु हमारी मैत्री के कारण नहीं कह पाया।      हाँ मित्र बहुत समय से इच्छा थी अपनी पीड़ा तुमसे साझा करने की किन्तु ये मैत्री का संबंध ही ऐसा है कि अपनी पीड़ा मित्र को देना मुनासिब नहीं समझा।        बहुत सहन किया वर्षों गुजारे कि मेरा मित्र मानव एक दिन खुद मेरी पीड़ा समझेगा। बहुत लंबे इंतजार के बाद भी जब तुम मेरी तकलीफ़ नहीं समझ पाए तो सोचा जब कृष्ण जैसा सखा राज कार्य की व्यस्तता के कारण अपने परम मित्र सुदामा के दुख नहीं जान पाए तो मेरे मित्र मानव का क्या दोष क्योंकि वो तो कृष्ण से भी व्यस्त है अपनी सुख- सुविधाएँ जुटाने में ।  मित्र सुदामा को कृष्ण के पास पत्नी के विवश करने पर जाना पड़ा था और मुझे अपनी माँ पृथ्वी की विवशता देखकर आपके समक्ष इस पत्र के माध्यम से अपनी पीड़ा साझा करनी पड़ रही है।  मित्र मानव हमारी माँ पृथ्वी आज सिसक रही है संताप से, क्या आपको माँ पृथ्वी के आँसू नजर आते हैं, माँ के हृदय में होती उथल-पुथल, बीमार होती कृश काया, नष्ट होता वैभव और अतुल्य समृद्धि।      कैसे ?

गनेरीवाला तालाब या फतेहपुर बावड़ी

  गनेरीवाला तालाब या फतेहपुर बावड़ी पारिवारिक कार्य से कल सीकर जिले के छोटे से शहर या यों कहें शेखावाटी की सांस्कृतिक राजधानी फतेहपुर शेखावाटी जाना हुआ। प्रोजेक्ट के सिलसिले में बहुत से मय से फतेहपुर जाने का विचार  था लेकिन नहीं पता था कि इस तरह अचानक वहाँ जाना हैं पड़ेगा। इस आकस्मिक यात्रा में प्रोजेक्ट से संबंधित तो कोई कार्य नहीं किया लेकिन वापसी में नव हाँ की एक दो हवेलियों और तालाब को जरूर देखा।    ये पहली बार नहीं था जब मैं इन एतिहासिक स्थलों को देख रही थी। इससे पहले भी इन्हें  कई बार देखा है। इस बार इनका स्वरुप पहले से ज्यादा बिगड़ चुका है जिसे देखकर बहुत दुख हुआ।        खासकर सीकर-फतेहपुर रोड़ पर स्थित गनेरीवाला तालाब या फतेहपुर बावड़ी। जिसे सामान्य बोल-चाल में यहाँ के लोग जोहड़ कहते हैं।      कैर, खींप, कीकर के वृक्षों से घिरा चार प्रवेश द्वारों वाली सुंदर और सरल वास्तुकला का उदाहरण गनेरीवाला तालाब। शायद कभी इस स्थान का उपयोग सांस्कृतिक गतिविधियों और सामाजिक कार्यों के रूप में किया जाता होगा। ऐतिहासिक स्थलों को देखने में अत्यधिक

suno kahani सुनो कहानी

कौन सुनाए किस्से कौन सुनाए कहानी  कहाँ है दादी... कहाँ है नानी... कैसे याद रहें किस्से और कैसे सहेजकर रखें हम कहानी.....  चूहागढ़ में चुनाव बच गया पेड़ और कुआँ cute kisan - Ronak S Tanwar    पहले सब मिलजुल कर रहते थे हर गांव मिलजुल कर बैठे थे,पीपल नीम की ठंडी छांव लेकिन आज गाँव सिमटने लगे  दादी नानी की कहानी की जगह  मोबाइल बजने लगे पढ़ाई का बोझ सताता हर रोज कौन सुनाए किस्से कैसे करें मौज लेकिन वैशालीनगर, जयपुर स्थित डिफेंस पब्लिक स्कूल में कहानी सुनने और सुनाने की कला अर्थात्‌ छात्रों के अभिव्यक्ति और श्रवण कौशल के विकास के लिए  हर वर्ष की भांति इस बार भी विद्यालय के हिंदी विभाग की तरफ से सुनो कहानी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया।    चूहागढ़ के चूहे-Vedansh Mathur and Swabhiman  Cute किसान-Manan Arora  छात्रों ने इस प्रतियोगिता में बढ़चढ़कर भाग लेकर एक से एक बढ़िया, रोचक और प्रेरक कहानियाँ सुनाई।