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मैं हिरनी - जंगल बचाओ धरती बचाओ

मैं हिरणी..... धरती बचाओ... मैंने सूरज की गर्मी से,                  तप्त धरा को देखा है। वन-उपवन हरियाली के बिन,                  मानव मरता देखा है।। करती थी अभिमान स्वयं पे,                   मैं जंगल की रानी हूँ। सपने से जागी तो देखा                    भूली हुई कहानी हूँ।। देख रही मानव का लालच                    कहे भाग का लेखा है। वन-उपवन हरियाली के बिन,                    मानव मरता देखा है।। कहो कहाँ तक मनुज रहेगा,                      मस्ती में जो डूबा है। मुझ हिरणी का घर भी छीना                     आगे क्या मंसूबा है। जंगल काटे वन भी काटे                   चमन उजड़ते देखा है वन-उपवन हरियाली के बिन,                   मानव मरता देखा है।। पेड़ों के झुरमुट में मैं तो,                    दौड़ लगाया करती थी। शेर,बाघ ,चीतों को भी मैं,                    खूब छकाया करती थी।। मत काटो जंगल उपवन को                    भू पर संकट देखा है। वन-उपवन हरियाली के बिन,                     मानव मरता देखा है।।

#दीपावली #दीपोत्सव #मिट्टी के दीये सी प्यारी खुशियाँ

विविध संस्कृतियों के सतरंगी इन्द्रधनुष के रंगों की आभा से सराबोर पर्वों रूपी रंगों के मध्य का चटक और चमकीला रंग- दीपावली, जो केवल पर्व नहीं बल्कि महापर्व है  संसार से तम हरने, लोगों के अँधियारे जीवन में उजाला भरने,  ह्रदय से संताप मिटाने, अंधकार से उजाले की ओर तथा  असत्य से सत्य की ओर ले जाने हेतु अंधकार से रातभर लङकर लक्ष्मी के  ज्योतिर्गमय रूप को आमंत्रित करते  नन्हे दिये। अमावस्या  की काली रात्रि में विश्वास, आस्था, ज्ञान और प्रकाश की अखंड जोत के प्रतीक जगमग जलते  मिट्टी के दीपक जो इस संसार में फैली असमानता रूपी असीम अंधकार को मिटाकर जग को अपनी रोशनी से जगरमगर कर देते हैँ। लोगों में प्रेम और भाईचारे का संचार करता दीपावली का पर्व समूह, समूह इसलिए कि ये एक दिन का पर्व या उत्सव न होकर कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी से शुक्ल पक्ष की दूज तक मनाया जाने वाला उत्सव है। प्राचीन समय से ही देशभर में दीपावली का त्योहार उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता रहा है। खुशी और उल्लास प्रकट करने के साधारण तरीकों यथा, लोगों से मिलना, पूजा करके दीपोत्सव मनाया जाता है। पुराने समय में दीपावली से लगभग एक मही

मेहरानगढ़ दुर्ग - जोधपुर

मेहरानगढ़ दुर्ग इतिहास और स्थापत्य में विशेष होने के कारण साहित्यिक यात्राओं में भी किलों और महलों को देखने का लोभ संवरण  नहीं कर पाती। कलमकार मंच के तत्वावधान में  2 दिसम्बर 2018 को सूर्यनगरी जोधपुर में आयोजित साहित्य कुंभ के दौरान कलमकार टीम के साथ मेहरानगढ़ किला देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ इसलिए इस अविस्मरणीय यात्रा के पूरे वृत्तांत से पहले मेरी नज़र से मेहरानगढ़ दुर्ग दिखाने का प्रयास करती हूँ।            देश के प्राचीनतम किलों में से एक, राव जोधा द्वारा बनवाया गया, राजस्थान के गौरवशाली अतीत की गाथा गाता। कहने को वृद्धावस्था की ओर  अग्रसर किन्तु आज भी अपने समकालीन किलों एवं वर्तमान समय में बनी इमारतों को मुंह चिढाता रणबांकुरे युवा की भाँति गर्व से सीना ताने खड़ा अपने सौन्दर्य से अभिभूत करता मेहरान गढ़ दुर्ग। दुश्मन के हर आक्रमण को सहने में सक्षम तीखे दाँतों और नुकीले नखों को संजोकर रखते सैनिक की भांति '   पावणों' के स्वागत में मुकुराहट बिखेरता खुला पड़ा मेहरानगढ़ का प्रवेश द्वार।मुस्कुराती,बलखाती,अठखेलियाँ करती मौसम और समय के थपेड़ों से बूढी होतीं अपने जख्म छुपाती इन बड़े-बड़े

मेरे पिता

मेरे पिता---मेरे गुरु स्नेह पिता का ऐसा था,न सखा कोई सम उनके था थे वो  मेरे प्रथम गुरु ,                    शिक्षा मेरी हुई वहीं शुरू विद्वान मनीषी ज्ञानी थे,विद्या के वो महादानी थे        मुँह पर सरस्वती का वास रहा,                            शिक्षा को समर्पित हर साँस रहा... ईश्वर के थे परम भक्त,रहते थे जैसे एक संत         पिता  मेरे वो थे प्यारे,                       शिष्यों के गुरूजी वो न्यारे, गुरु की पदवी शहर ने दी,शिक्षा सबको हर पहर ही दी ।             था देशाटन का शोक बड़ा,                         प्राकृतिक सोंदर्य का रंग चढ़ा, दीनों के दुख करते थे विकल,मन उनका पावन निश्चल ।             मुख से छंद  बरसते थे,                      औरों का भला  कर हँसते थे। वृक्षारोपण किया सदा,कहते वृक्ष सदा हरते विपदा।              पहाड़ों की ऊँचाई नापी,                          माँ संग सदा उनके जाती। माँ चली गई जब हमको छोड़,दुख ले लीन्हे तात ने ओढ़।          जब शक्ति हाथ से छूट गई,                               हिम्मत भी उनकी टूट गई।    धीरे -धीरे फिर खड़े हुए ,वो कलम उठाकर प

वतन के वास्ते

#वतन के वास्ते.. वतन के नाम पर जीवन,तमाम रक्खा हुआ है हमने तो वतन का नाम ही,मुहब्बत रक्खा हुआ है। हर साँस से सदा आती है,मादरे वतन के लिए, वतन के नाम का कफन,बाँध के रक्खा हुआ है। शोलों से गुजरता हूँ रोज,वतन के वास्ते यारो, मैंने तो हथेली पे अपनी जान को रक्खा हुआ है। दुश्मन छू भी न सके, मेरे देश की सरहद को, उनकी मौत को हाथों में,थाम के रक्खा हुआ है। हो जाऊँ गर कुर्बान,सरहद पे अपने वतन की इस दोस्त तिरंगे को,सीने से लगा रक्खा हुआ है। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

स्वावलंबन

स्वावलंबन शक्ति का अहसास स्वयं की, करते मनुज स्वावलंबी है। कर्त्तव्य के पथ पर अविरल बढ़ते,सदा मनुज स्वावलंबी है। नहीं किसी का मुँह तकते और,साहस रखते वो बढ़ने का। उद्देश्य को वो प्रवृत्त रहते, दृढ़ रहते मनुज स्वावलंबी है। हैं बाधाओं से वो लड़ते ,खुद ईश्वर उनके साथ सदा। आत्मविश्वास से अडिग सदा,रहते मनुज स्वावलंबी है। चरण पखारे लक्ष्मी माँ,सफलता उनको चुनती है, आत्मनिर्भर आत्मविश्वासी,होता जो मनुज स्वावलंबी है। राष्ट्र का बल है राष्ट्र का गौरव,द्वार उन्नति का खोलें , भुजाओं की ताकत अपनी,दिखलाता मनुज स्वावलंबी है। अंतर्निहित शक्तियों को,पहचान मनुज जो जाते हैं, कोष कुबेर का कर्मठ जन, पाते वो मनुज स्वावलंबी हैं।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

तू माझी

#तू माझी तू माझी मैं पतवार पिया, मैं नाव तू खेवनहार, तुझ बिन सागर ये पार न हो , मैं मझधार तू तारनहार। तुझ से जुड़ी मेरी जीवन-नैया, जीवन का तू आधार। हो संग तेरे हर सुबह-शाम, है तुझसे मेरा संसार। अनमोल पिया जीवन के क्षण, तू प्रेम की मधुर बयार। बांधू कैसे आज समय को, ये बहता है बन नीर। प्रीत की साखी ये नदिया, है जल में भी संगीत, तेरे साथ का हर अहसास प्रिय, ज्यों है मादक गीत । है दूर क्षितिज में बदरा भी, बिजली को हृदय बसाए, उस पर्वत को भी देखो पिया, सब पे प्यार लुटाए, पर्वत का अंचल पाकर नदिया, कितनी है हर्षाय, मैं भी मांगूँ यही आज दुआ , ये पल कहीं बीत ना जाए। #सुनीता

हरिवंश राय बच्चन

#हरिवंश राय बच्चन सन सत्ताइस के शुभ दिवस, चमका एक सितारा था, ये जग उसको प्यारा था, वो जग का राज दुलारा था। मन में उपजे उन्माद विकट कवि छायावादी हुए प्रकट लेकर कविता में तरुणाई, हाला भी निकल बाहर आई। अलंकार कुछ अधिक हुए, वो 'पदम्' झुका पाकर के पद्म। विद्या का दान महान कहा, आचरण न रखा कभी छद्म। वो कोटर का नन्हा पंछी कभी न टूटा तूफानों से, साथी पंछी राह में छूटा, फिर खड़े हुए लड़ बाधा से। खुद न कभी छलकाए जाम, जग को दिखाया हाला धाम। औरों के जीवन में ज्योति, भरने की कसम खा बैठे थे, राह पथिक को दिखलाने, खुद बनके सितारा बैठे थे। पाकर के वो 'अमित-अजित' तनय हर्षाए हुए धन्य-धन्य। #सुनीता बिश्नोलिया

सूर्योदय

#सूर्योदय भानू है ज्यों कनक-घट, राही हैं हम गए ठिठक, स्वर्ण सी ये रश्मियाँ, आच्छादित धरा घने विटप। क्षितिज में प्रतीत है उदित, उत्तरोत्तर ताप अपरिमित, अभिभूत है नयन सभी, दिनकर को देख अवतरित। अद्घोषक उषा काल का, अंशुमाली आ रहा है, विचरण करे गगन में ये, सृष्टि को जगा रहे। पथिक हैं पथ पर खड़े, सूर्य -रोशनी पाकर बढ़े, माना घना ये ताप है, राह सूरज दिखाता आप है। नयनाभिराम दृश्य को,दृग , दृग भर रहे नयन में हैं, दर्शनीय सूर्य-रश्मियाँ, आह्लाद सबके मन में है। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

माँ

#माँ जीवन झोंका चूल्हे में, चक्की के पाटों बीच फँसी, सामंजस्य माँ का देखो, मुश्किल सहकर भी रोज हँसी। फूँक-फूँक कर चूल्हे को, आँखें अविरल बहती हैं, लेकिन मेरी माँ हाथों से चक्की, पीस के भी हर्षाती हैं। हर दाने के साथ श्वेद की, बूँदें माँ की बहती हैं, चुपचाप मेरी माँ चक्की पर व्यायाम नियम से करतीं हैं। होले से माँ के मुख से, कुछ शब्द बहा करते हैं, संगीत घर्र-घर्र चक्की के, दो पाट दिया करते हैं। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

पन्नाधाय की ममता

#माँ की ममता (वात्सल्य रस) राजस्थान में की वीरमाता पन्ना धाय ने राणा उदयसिंह को बचाने के लिए अपने पुत्र का बलिदान दे दिया था...उसी पर आधारित मेरी राजस्थानी भाषा में लिखी गई कविता...तथा ..पुन:हिंदी में लिखित यही कविता... ( कालजे की कोर नै माता, देख-देख मुस्कावै है, छाती सूँ दूध री नदी बहवै,टाबर सूँ जद बतलावै है। कान्हा की सी देख के सूरत,या माता यूँ इतरावै है, सोच काल री बात या माता, आँख्यां मैं आँसू ल्यावै है। फर्ज पै वारण जाती माँ ,उनै हिवड़ा से चिपकावै है, एक रात रै खातिर 'दीप' जल्यो,वोअब बुझण नै जावै है। लाड लड़ावै घणा बावली, बलिदान करण नै जावै प्रेम रो सागर छलकाती,जीवण भर रो नेह लुटावै * * * * * * * यूँ ही नहीं संसार में, माँ को पूजा जाता है विपदा में मुख पे नाम प्रथम, माँ ही का तो आता है। मन की बात बताउंगी,एक भूली कथा सुनाऊंगी, पुत्र को धर्म पे किया अर्पण,उस धर्मा की बात बताऊँगी। जौहर की गाथा याद हमें मीरा के पद भी ना भूले, पुन:स्मृति में भरलो,पन्नाधाय को जो थे भूल चले। अपने ह्रदय के टुकड़े को माँ,देख-देख मु

मेरी माँ

# मेरी माँ वो दिन मैं ना भूल सकूंगी,जब माँ से लम्बी बात हुई, माँ ने जो ना कभी कही थी, क्यों वो हर एक बात कही। माँ ने मुझसे कहा फ़ोन पर ,जल्दी मिलने को आ जाना, याद बहुत आती है बेटी,मुँह अपना दिखला जाना। दूर बहुत बैठी है मुझसे, हो गयी बड़ी मैंने माना, अपने हर एक काम को बेटा,सदा यूँ ही करते जाना। पर बिटिया मेरी मिलने मुझसे , जल्दी से तुम आ जाना साथ मेरे नाती-नातिन को,भी तुम जरुर से ले आना। ऐसा माँ ना कहती थी, पर प्यार मुझे बहुत करती थी, वो चाहती थीं बेटी मेरी ,अपने घर में ही सुखी रहे,। अपनी सुविधा से आकर ,उनसे मिलती जुलती सदा रहे। बच्चों की थी तभी परीक्षा, माँ को मैंने समझाया था, ये सुनकर भी माँ ने मुझको,जल्दी आने को मनाया था। उस दिन माँ ने मिलने की ,इतनी जिद कर डाली थी, मैं भी दस दिनों के बाद उनसे मिलने को मानी थी। नहीं पता था माँ से मेरी ,ये थी अंतिम बात, माँ मेरी मुझे नहीं मिलेंगी, फिर न होगा उनका साथ। माँ का साया हमसे छीना ,उफ़ निर्मम ह्रदयाघात, यही थी माँ से मेरी लंबी, और अंतिम बात। काश! मैं उस दिन आ जाती ,माँ की गोदी में सो जाती

दोहे-गर्मी

#दोहे-गर्मी/ग्रीष्म गरमी में जियरा जले, माथे टपके श्वेद। पेड़ ठूँठ बन हैं खड़े, अब क्या करना खेद।। जी अलसा तन झुलसिया,लू भी चलती जोर। मनवा को चैना नहीं , तपे धरा हर ओर।। कहता तरु मुसकाय के,आ रे मानस पास। गरमी ही बतलायगी,मैं भी हूँ कुछ खास।। भरा ताल ज्यों सड़क पे,मनवा भी भरमाय। बिन बादल ही रे मना,ये गरमी नहलाय।। तपती धरती पर तपे,कई जले दिन रैन, बेघर खटते ताप में,सुने गरम वो बैन।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

दोहे-बरसात

#दोहे-बरसात धरती का भी जल रहा,कोमल-कंचन गात, बदरा-बरसो आन के,शीतल हो धरती मात। हलवाहे खेतों चले,रिमझिम बरखा होय, बरखा की बौछार से,मनवा खिल-खिल जाय। सोया नन्हा बीज था,सूखे खेतों माय, बारिश अंग लगाय के, रहा बीज मुस्काय। मयुरा कूके बाग में,देख घटा घनघोर, बरसी बूंदे प्रेम की, मयुरा हुआ विभोर। छलक उठा दिल बांध का,बरसे जो घन श्याम, हरियाली वसुधा हुई,बारिश का अंजाम। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

मुक्तक

#मुक्तक (मात्रा भार-30) जो अपने हाथ के छाले,अपनी किस्मत समझता है, इन्हीं हाथों से जगति का,वो सुंदर गान लिखता है, खड़े पर्वत भी राहों से,हटते हैं देखकर उसको,। उसी दिलदार फक्कड़ को,जमाना मजदूर कहता है। 2.वो पत्थर तोड़कर अपनी सोई किस्मत जगाता है, पीठ पे बोझा ढो कर भी,गीत खुशियों के गाता है, नहीं डरता ज़माने से,नहीं डरता वो मेहनत से, अपने हाथों से राहों के पर्वतों को गिराता है। 3.प्यार गहरा उमड़ता है,पर जताया वो नहीं करता, ख़ुशी और गम में भी आँसू बहाया वो नहीं करता। #पिता हस्ती ही है ऐसी बराबर ना कोई जिसके, अपनी संतान के सपने पूरे जी जान से करता । #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

#बोलिए

#काफिया-आम #रदीफ- बोलिये लगता है आज इंसा का,क्यों दाम बोलिये, चाहते हैं क्यों हर बार सब,ईनाम बोलिये। बोली लगाते फिर रहे, इंसान हर तरफ, क्या हो रहा है देश का,अंजाम बोलिये। बाड़े में बंद ज्यों भेड़ हों,ये हाल हर तरफ, मतलब परस्त जहान का, ये काम बोलिये। खुदगर्ज हर कोई है ,ज़माने में हर तरफ, चाहता है आज हर कोई,सलाम बोलिये। बदली है आज चाल भी,सबकी हर तरफ, मंजिल की न खबर है किसे,बिन मुकाम बोलिये। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

कुंडलिया

#कुंडलिया बिन मौसम बरसात के,बुरा देश का हाल। मरते-रोते लोग हैं,मस्त जगत की चाल।। मस्त जगत की चाल,जगत डूबा है मद में। रहे ख़ुशी से झूम,सभी हैं ऊँचे कद में।। कहती 'सुनीति' सुनो ,बिताते मस्ती में दिन। हुआ चमन वीरान,देख बरखा मौसम बिन।। सुनीता बिश्नोलिया जयपुर

सपने भी सच होते हैं

#सपने सच होते हैं सुना मैंने ज़माने से कि सपने सच नहीं होते, जमाना कहता है क्यों ऐसा,कोई अपने नहीं होते। जरा आओ मेरे साथी कि आँखें फाड़ के देखो, ये बादल घर में आ बैठे, जमीं पे जो नहीं होते। तपती है रेत धोरों में जलती अंगार सी साथी, प्रहरी सीमा पे हरदम ही होते या नहीं होते। दो मीठे बोल ऐ! साथी जरा दुश्मन को भी कह दे, उसकी आँख में आँसू होते या नहीं होते। दिल.. से अगर मानो, अपना साथी किसी को तुम, तेरी मुश्किल में हरदम वो, साथ होते या नहीं होते। अपने हाथों को हरदम तुम,सच्चा साथी समझ लेना, तेरी मेहनत से फिर सपने,सच होते या नहीं होते। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

दर्द

#कहानी #दर्द साधारण किसान गोपाल अपने बुजुर्ग माता-पिता के साथ सांवली गाँव में रहता था। खेत में रखवाली करते समय पिता जी को गाय ने सींग मारकर घायल कर दिया।तब मुश्किल से उनकी जान बची पर बिस्तर पकड लिया। गोपाल को उच्च शिक्षा दिलाने की इच्छा अधूरी रह गई। अनपढ़ माँ खेतीबाड़ी के काम में साथ देने के अलावा अन्य कार्य नहीं कर सकती थी।पिता का उसे न पढ़ा पाने का दर्द गोपाल महसूस कर सकता था। खेतों में काम करते हुए कैसे-जैसे उसने बारहवीं कक्षा पास कर घर की सारी जिम्मेदारी संभाल ली। सारे गाँव वाले गोपाल की तारीफ करते और अपने बच्चों को उसका उदाहरण देते। खेत में बीज,उत्पादन क्षमता बढ़ाने,ऋण या अनाज बेचने संबंधी हर सलाह गाँव वाले गोपाल से ही लिया करते। खाली समय में वो अपने फोन से विभिन्न जानकारियाँ जुटाता और गाँव वालों को दिया करता। अब ऐसे गुणी लड़के को लडकियों की क्या कमी। दूर-दूर से रिश्ते आते थे।पर रामखिलावन चाचा तो गोपाल को कब से अपने दामाद के रूप में देखते थे। वो जानते थे कि कविता और गोपाल भी एक-दूसरे को पसंद करते थे। इसलिए मौका देखकर उन्होंने गोपाल के माता-पिता से मिलकर शादी की बात की औ

#हादसा-हास्य

#हादसा हादसा भी तो हमारे जीवन का बन गया हैं हिस्सा, ये हक़ीकत है दोस्तों न समझो इसे तुम किस्सा। पहले हादसे की शुरुआत तो घर से ही जो गई, हमारे खर्राटों की वजह से ,श्रीमती जी की नींद टूट गई। हमारे घर में चलती मैडम की ही मर्जी है बात मनवाने के लिए देनी पड़ती उनको अर्जी है। माना कि मन सुबह-सुबह मेरा चाय का प्यासा है, मिल गई तो ठीक वरना ये भी मेरे साथ एक हादसा है। अल सुबह घर में युद्ध के बादल घिरे हुए हैं, हम भी 'हादसा' होने से पहले ही डरे हुए हैं। पता है हमें कि एक बार तो टक्कर खाएँगे, अब तो काम पे निकलते हैं वरना अब चक्कर ही आएँगे। लगता है आज हमने खुद हादसों को घर बुलाया है, तभी तो 1990 वाले स्कूटर को पंचर पाया है। सोचा अब तो पैदल जाने में ही है भलाई, वरना बोस की कडक आवाज भी देगी सुनाई। इतने में भागता हुआ,माँ का जासूस आया, और हमारा लगभग फटा हुआ खाली बटुआ हमें थमाया। जरा सी दूर ही पहुचे थे कि झमा-झम बारिश होने लगी, अब तो समय से ना पहुँच पाने के डर से आत्मा हमरी रोने लगी। अचानक एक ऑटो वाले को हम पर तरस आया, जानकार होने के कारण पास आकर ऑटो लगाया। हमने खुले पैसे ना होने क