दोहे लेकर पत्थर हाथ में,हिंसक हुआ समाज, धर्मों में मानव बंटा,लुटी देश की लाज। हिंसा की राहें तजें, तजिए सब हथियार, मौन की शक्ति देखिए,भरे दिलों में प्यार। अपने हाथों पर सदा,कर लीजे विशवास, हाथों के हथियार से, छूना है आकाश। सबकी काया एक सी,अलग न कोई भाय, दाता के दर पर सभी,आये ज्यों ही जाय। जालिम जिद के कारणे,जलते ज़िंदा लोग, खुद के ही नुकसान का,लगा जीव को रोग। #सुनीता बिश्नोलिया #सपना आँखों का हर सपना ही सदा पूरा तो नहीं होता, जिद कर लो तो कोई सपना अधूरा भी नहीं रहता। उम्मीद-आशा और विश्वास हो अपने कर्मों पर, कोई लक्ष्य अपनी पहुँच से दूर तो नहीं होता। आजाद भारत का सपना देखा था उन सपूतों ने छोड़ देते वो हिम्मत तो देश आजाद नहीं होता। शिक्षा के उजाले का स्वप्न सलोना ले नयन में, लेकर के कटोरे निकले हैं हाथों बस्ता नहीं होता। किसी के तोड़ता है सपनों के महल अपनी खुदगर्जी में, दूजों के सपनों के टूटने का दर्द उनको जरा सा नहीं होता। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर सो रहे इस ज़माने को,जगाने की जरुरत है, नकल कर पढ़ने वालों को,सुधरने की जरुरत है। पैसों से खेलता है जो, हिमाक़त देखिए उनकी, फिरता
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia