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मातृ दिवस #माँ - - - एक माँ ऎसी भी - श्रमसाध्या

श्रमसाध्या दो वक्त की रोटी को बिटिया,               श्रम करना नहीं मज़बूरी है, कातर न जमाना कह पाए,              'श्रमसाध्या' हूँ कर्म जरुरी है। इन प्रस्तर के टुकड़ों में,                मैं भी मजबूत बनी पत्थर, थामी हथौड़ी  हाथों में,                फैलाऊँ न किसी दर पर। तुम्हें जेठ माह की गर्मी में,                शीतलता मेरा ह्रदय देगा, मैं दुग्ध का पान कराऊँ तुम्हें,                 दो बूंद तो दूध बना होगा। मैं धूप में जलता एक तरु,                   पर  तेरी छाया हूँ बिटिया। संघर्ष ज़माने से कर लूँ,                  इस अंक में तुझको भर बिटिया। अंतर में छिपालूँ तुझे लाडली,                  ये जग बैरी न  देख  सखे, 'नरभक्षी'.. नजरें लाडो,                कोमल तेरी काया छू  न सके। चंदा की उजली किरण तुझको,              मैला न कोई कहीं कर जाए, पत्थर सी ठोस तुझे कर दूँ                 बन सूर्य किरण जग पे छाए। मेरी माँ #सुनीता बिश्नोलिया