एक बाजी और.... हवा के ठंडे झोंकों का आनंद लेते धीरे-धीरे रोज की तरह गुनगुनाते मास्टरजी मंदिर में दर्शन करके घर लौट रहे हैं।रात के लगभग बारह बज गए इसलिए सड़कें पूरी तरह खाली है। रात में गलियों में कुत्ते या दूसरे जानवर छिपकर बैठे होते हैं इसलिए वो रात के समय गालियों से घर ना जाकर कहारों वाली सड़क से बालाजी के दर्शन करते हुए घर जाया करते थे। और ये उनका रोज का नियम था साढ़े ग्यारह बारह बजने को वो कोई खास देर नहीं मानते थे। रोज की तरह आज भी मास्टर जी सुनसान सड़क पर गुनगुनाते हुए चले जा रहे थे। रास्ते में सिर्फ उनकी जूतियों की चरम - चूं के अलावा कोई और आवाज़ सुनाई नहीं दे रही इधर से रोज का आना-जाना था इसलिए किसी तरह का डर-भय तो था नहीं इसलिए मास्टर जी अपनी धुन में चल रहे हैं। अचानक उन्हें लगा कि कोई उनका पीछा कर रहा है एेसा लगा कि किसी के चलने और दूसरी जूतियों की चरम-चूं का अपना पीछा करने का अहसास हुआ। फिर उन्होंने इसे अपना वहम समझा और चलते रह रहे पर अब उन्हें एेसा लगा कि जूतियों के चरम-चूं, चरम-चूं की आवाजें उनके बेहद निकट आ गई है। मास्टर जी ने पीछे मुड़कर देखा तो कोई नहीं द
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia