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समीक्षा-भाग - 1.राजस्थानी काव्य-संग्रह काची-कूंपळ - शकुंतला शर्मा

    शकुंतला शर्मा - समीक्षा- भाग -  'काची-कूंपळ' काव्य संग्रह  लोकार्पण - काची-कूंपळ   "म्हारा बाबूजी तो कैंवता अबे कांई पढाणो है। छोरी है पढ़ाई छुडाकै ब्याव करणो जरुरी है, पढ़ावण रो खर्चो करणो जरुरी कोनी। "  "पण म्हारी माँ कैंवती आ म्हारी लाडो फेल न हुवै तांई तो पढली। "    माँ का विश्वास और शिक्षा की लगन लिए बालिका शकुंतला पढ़ती गई और आगे बढ़ती गई।      ना वो तब फेल हुई ना ही जीवन में  आगे ही कभी फेल नहीं हुई और पास होने का सिलसिला आज तक बदस्तूर जारी है।       तभी तो M. A. M.Ed आर. ई एस, आर. पी. एस प्रधानाचार्य तथा सहायक निदेशक शिक्षा संकुल जयपुर के पद तक पहुंचकर अपनी प्रतिभा सिद्ध की ।     किशोरावस्था से ही कहानी-किस्सों, कविताओं आदि में रुचि होने के कारण साहित्य और साहित्यकारों के प्रति सम्मान के साथ ही हृदय में साहित्य सृजन की अग्नि सुगबुगाने लगी। ये सेवानिवृति के बाद यह सुगबुगाहट बढ़ गई और धीरे धीरे शकुंतला जी को साहित्य सृजन की ओर ले गई।  विषय पर गहरी पकड़ और सौंदर्यबोध की सृजिका शकुंतला जी अपने अद्भुत लेखन कौशल द्वा