वर्तिका (काव्य संग्रह) युवा कवयित्री सुनीता बिश्नोलिया के प्रथम काव्य-संग्रह से गुज़रते हुए वही अनुभूति होती है, जो किसी भी कवि के पहले-पहल काव्यांगन में प्रवेश करने पर होती है। अब जब बेसाख्ता सामने आए हुए कदाचारों, दुर्व्यवहारों और अव्यवस्थाओं से गुज़रती है,तो उसे भाषा के नए-नए मुहावरों का संबल लेना होता है। साथ ही गई के समस्याओं का एकमुश्त दबाव रचनाकार को विकसित कर देता है। ऐसे ही जीवन की स्थिति में छंदों में तोड़फोड़ होना स्वभाविक है सुनीता को परंपराओं से मुंह पर है अतः संग्रह की अधिसंख्य कविताएं छांदोग्य है तथापि उसने चाहे भावुकता से सहित ठेका वस्तु का निर्वाह किया है इस संग्रह में कवियत्री में मौजूदा समाज के अनेक विसंगतियां हुआ है और उनका अपने तंई निदान शोधने की चेष्टा की है। सुनीता एक अध्यापिका है, अतः स्वभावतः सामाजिक विद्रूपताओं को देखने का उसका नज़रिया अध्यापकीय है। एक अध्यापक सदैव त्रुटियों पर अंगुली रखता है, ठीक उसी तरह कवयित्री ने हर छोटी- बड़ी विसंगतियों का संज्ञान लिया है।भाषा चाहे अभिध्यात्यक हो गयी हो पर उसे कोई भी कदाचार जह
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia