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अवरुद्ध कंठ - कविता

     कंठ हुए अवरुद्ध  गाने को आतुर कोकिल के  कंठों में गीत मचलते हैं,  मधु रस बांटे वो दुनिया में,  गीत हृदय में पलते हैं।।  कहो कहाँ तक मौन रहे वो  कंठ ही जिसकी थाती है,  अंतर्द्वंद से कैसे जीते  अंखियन नीर बहाती है। देख उजड़ती अपनी दुनिया युद्ध स्वयं से चलते हैं,  मधु रस बांटे वो दुनिया में,  गीत हृदय में पलते हैं।।  बुरे समय का साथी तरुवर ठूंठ हुआ बिन गीतों के पत्ता-पत्ता गिरा बहारें  बीत गईं बिन प्रीतों के।  मन मयूर भी भूल थिरकना आज गमों में पलते हैं  मधु रस बांटे वो दुनिया में,  गीत हृदय में पलते हैं।। दादुर की बोली सुनकर  अवरुद्ध कंठ सहलाती है  अंतर्मन में छिपी वेदना  मगर हास बिखराती है।  पीड़ा के धागों में लिपटे,  कहाँ घाव फिर सिलते हैं  मधु रस बांटे वो दुनिया में,  गीत हृदय में पलते हैं।। सुनीता बिश्नोलिया