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कोरोना में कुल्फीवाले

कोरोना वायरस ने अच्छी खासी चलती-फिरती दिनचर्या को बिगाड़ दिया और घर बैठने पर मजबूर लोगों को जीने के नए तरीके सिखा दिए। सुबह जल्दी उठकर फटाफट घर के काम निपटाकर जल्दबाज़ी में घर से निकल जाने वाली महिलाओं को भी उठने में आलस आने लगा। मेरी भी स्कूल बंद है और स्कूल का काम घर से ही कर रही हूँ इसलिए ड्रॉइंग रूम में ही अपना स्कूल लगाकर बैठी रहती हूँ ताकि घर के किसी सदस्य को को मेरे कारण दिक्कत ना आए। और मैं अपना काम करती रहूँ। ड्रॉइंग रूम की खिड़की घर की मुख्य बालकनी में खुलती हैं इसलिए मैं सारा दिन वहाँ पर बैठी बालकनी में पक्षियों की आवाजाही को देखते हुए उनके मधुर स्वर को सुनकर आनन्दित होती रहती हूँ। पक्षियों का कर्णप्रिय स्वर और बालकनी में लगे पौधों के इतने हरे-भरे होने का अहसास  शायद पहली बार हुआ।मनी प्लांट का इतनी तेजी से बढ़ना और इस मौसम में गेंदे पर इतने सारे फ़ूलों का खिलना छँटाई के अभाव में बड़े हुए बोनसाई के पौधों के नीचे कबूतर के बच्चों को बड़े होते देखना कोरोना के बुरे काल का सुखद अनुभव है।       बालकनी में पक्षियों का कलरव बढ़ते देख लिखना पढ़ना भूलकर उन्हें देखकर बचपन के दिनों को