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मेरी ताकत मेरी कलम

 मेरे जीवन की थाती   कहना चाहती हूँ सब    मौन होने से पहले   चलाना चाहती हूँ कलम   होश खोने से पहले   मेरे शब्द ही मेरा विश्वास,    मेरी थाती हैं,   मैं मिट्टी का दिया   ये जलती बाती है।   प्रकाशित है महल    प्रेम की लौ से मेरे अंतर का,   एक कोने में भर के रखा है    स्वच्छ जल, नील सर का।    बाँटना चाहती हूँ प्रकाश   जो थोड़ा बहुत    आया है मेरे हिस्से,   न होंगे कल.. कोई नहीं    याद तो रहेंगे    मेरे किस्से।   पढ़ती रहती हूँ उसकी लिखी     प्रेम की जो पाती है,    मैं मिट्टी का दिया और    ये जलती बाती है।  सुनीता बिश्नोलिया