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सितंबर, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गुलजार हुए स्कूल

#राजस्थान पत्रिका       "मैम स्कूल कब खुलेगा, हमें स्कूल आना है।   आपसे मिलना है, फ्रेंडस से मिलना है। "     "मैम प्लीज एक बार स्कूल दिखा दीजिए।"   प्लीज मैम हमारी क्लास दिखा दीजिए.. प्लीज.. प्लीज।"    ऑनलाइन पढ़ाते हुए बच्चों का स्कूल आने के लिए इस तरह मचलना देखकर चाहते हुए भी  उन्हें स्कूल नहीं बुला पाते थे । हाँ लेपटॉप के साथ ही क्लास को मोबाइल से जोड़कर बच्चों को दूर से ही विद्यालय का भ्रमण अवश्य करवा दिया करते थे । बच्चों की खास फरमाइश पर उन्हें स्कूल के पसंदीदा स्थान दिखाकर उनके चेहरे पर मुस्कराहट बिखरने में तब भी शिक्षकों ने कसर नहीं छोड़ी और अब जब बच्चे स्कूल आने लगे हैं तब भी शिक्षक दोगुनी ऊर्जा से जिम्मेदारियाँ निभा रहे हैं।                  स्कूल स्टाफ हो या छात्र सभी को थर्मल स्क्रीनिंग और हैंड सेनेटाइज करने के बाद ही  स्कूल में प्रवेश की अनुमति दी जाती है।           स्कूल के मुख्य गेट पर खड़े गार्ड से लेकर शिक्षक तक सभी मास्क पहने हुए और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हैं।          अधिकांश बच्चे अब स्कूल आने लगे हैं। स्कूल आक

हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं  शब्दों की सरिता बहे, बोले मीठे बोल।  हिंदी भाषा है रही कानों में रस घोल।।  पश्चिम के तूफान में, नहीं पड़ी कमजोर।  हिंदी शब्दों की लहर,करती रही हिलोर।  सोने सी महँगी बड़ी, हीरे सी अनमोल  इसे चुरा पाए नहीं, भारत आए चोर।।  सरस शब्द ही जान है, इनसे है पहचान।  हिंदी की गाथा सकल, गाता सदा जहान। नव सृजन, नव गीत और, दोहा, रोला,छंद रस की गागर अंक भर,गाती मीठे गान।।  शब्द-  शब्द सम्मान है, होते गहरे अर्थ।  थोड़े में ज्यादा कहें, नहीं बहाओ व्यर्थ । आँचल में इसके कई, भाषा करें किलोल हिंदी भाषा हिन्द की, सच में बहुत समर्थ।।   सुनीता बिश्नोलिया © ® जयपुर 

इमली का बूटा

   इमली का बूटा...      इमली... नाम सुनते ही आ गया ना मुँह में पानी। मुँह में पानी तो मेरे भी आ गया पर मुझे तो इमली की कहानी ही कहनी है तो संभालना पड़ेगा अपने आपको।      हाँ तो यहाँ मैं बात करने वाली हूँ इमली की.. नहीं.. नहीं सिर्फ इमली नहीं इमली के पेड़ की। इमली का पेड़ हाँ भई बहुत ऊँचा और घना पेड़ होता है इमली का।मुझे इमली का पेड़ बहुत पसंद है क्योंकि बचपन से ही देखते आई हूँ इमली के पेड़ को।     सीकर में देवीपुरा में हनुमान जी का बहुत ही भव्य मंदिर है। ये मंदिर देवीपुरा बालाजी के नाम से प्रसिद्ध है।    पिताजी बालाजी के पक्के भक्त थे इसलिए वो इस मंदिर में रोज जाया करते थे इसलिए हम भी कभी- कभी उनकी उंगली पकड़ कर उनके साथ चले जाते थे।      पिताजी के साथ हमारे मंदिर जाने का कारण हमारी भगवान में आस्था कतई नहीं थी।    हमारी आस्था का केंद्र था मंदिर में खड़ा इमली का पेड़। जिसकी सघन शाखाओं पर पक्षी किलोल करते तो हम बच्चे मुँह में पानी भरे एक दूसरे को उसकी शाखाओं से लटकती कच्ची-पक्की  लटकती इमलियां दिखाने के लिए आँखें गोल-गोल करते।

बढ़ती महंगाई - महंगा गैस सिलेंडर

  बढ़ती महंगाई से तंग आकर         एक फैसला कर लिया..।        एक ही बार बनाऊँगी खाना         मैंने ये निश्चय कर लिया।         पहले ही दिन पेट में कूदते चूहों ने         घायल कर दिया         एक टाइम खाने का फैसला मैंने         तत्काल बदल दिया।         सब्जियां मंहगी और गैस दुश्मन बन गया         बढ़ती देख अपनी वैल्यू        मुआ सिलेंडर भी तन गया।         सुबह खाएंगे दही-चूड़ा ( दही-चिवड़ा)          तो शाम को दाल बनाऊँगी          और मैं कुशल गृहणी की तरह          घर चलाऊंगी।       इधर-उधर देखा तो दालों के खाली डिब्बे         बड़बड़ा रहे थे        देखकर अकड़ ढीली मेरी , सिलेंडर          महाशय मुस्कुरा रहे थे।        गैस पर पतीला चढ़ा देखकर झल्लाई,         खुद के ही लिए चाय बनती देख     खिसियाई।          चाय का कोई ऑप्शन नहीं         ये तो कमज़ोरी है,          बिन गैस बनेगी नहीं,          गैस की सीना-जोरी है।     ध्यान आया.. क्यों ना पैट्रोल बचाया जाए     हर समान में 'वेट' है तो क्यों न     पैदल चलाकर घर वालों का      वेट ही कम किया जाए।     आसमान पर चढ़े पैट्रोल से     नज़र मिलाने क

धरती धोरां री

धरती धोरां री      हर वर्ष  'शिक्षक दिवस' से पूर्व शैक्षणिक भ्रमण हेतु छात्रों को ऐतिहासिक स्थलों के दर्शन हेतु जाया करते हैं पिछले दो सालों से कहीं जाना नहीं हो रहा। इसीलिए भ्रमण की यादें. जब निकल पड़ा था हमारा कारवां कुछ नए अनुभव समेटने । उद्देश्य छात्रों को गाँवों से जोड़ने,प्रकृति के अंचल में समाप्त होते रेतीले धोरों में खुले आसमान के नीचे स्वच्छंद इस पेड़ से उड़ते पक्षियों को निहारने की सुखानुभूति प्रदान करना।     #कुछ छात्रों का रेतीले टीलों पर दौड़कर चढ़ जाना कुछ का धीरे -धीरे लक्ष्य प्राप्त करना और कुछ का मार्ग में ही पस्त हो जाना। आस-पास में बकरी और गायों को चराने वाले बच्चों,महिलाओं को बिना किसी परेशानी के पहाड़ी की चोटी पर चढ़ता देखकर पहाड़ तो नहीं पर पुनः रेत के टीलों पर चढ़ने का प्रयास कर सफलता प्राप्त करने की खुशी से झूमते बच्चों को देखकर प्रसन्नता का अनुभव तो हुआ किन्तु उनकी..हमारी जीवन शैली पर प्रश्न चिन्ह लगता दिखाई दिया     #कुछ दृश्य मन को आनन्दित करनेवाले थे तो कुछ दृश्यों ने मन में आक्रोश भर दिया। मेरा मानना है अगर हम गाँवों को कुछ अच्छा नहीं