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महादेवी वर्मा

                                 महादेवी वर्मा  सपनों के वो जाल बना,          चाहती थी मधु-मदिरा का मोल,  मधुर-मधुर दीपक सी जली,             वो नीर भरी दुःख की बदली।,     अठखेलियाँ करते गिल्लू को निहारती,  सोना के सौंदर्य पर रीझती और उसकी अकाल मृत्यु पर अश्रु बहाती,       दुर्मुख ख़रगोश की बातों में खोई ।  मोर नीलकंठ और उसकी प्रेयसी राधा से ईर्ष्या रखने वाली मोरनी कुब्जा के माध्यम से प्रेम की प्राप्ति हेतु छल-बल का प्रयोग और प्रेम पर प्राणों को समर्पित करते पक्षियों की दुनिया के रहस्यों को उद्घाटित करती महादेवी।        घर में आदर-सत्कार सहित लाई गौरा गाय से स्नेह और गौरा के दुग्ध प्राप्ति हेतु  कुत्ते-बिल्ली जैसे जानवरों का अनुशासन  तथा स्वार्थ के वशीभूत होकर गाय की हत्या के षड्यंत्रकारी का भेद खोलकर गौरा गाय के अंतिम समय में उसके साथ रह कर उच्च मानवीय मूल्यों का निर्वहन करती रहस्यवाद और छायावाद की मुख्य कवयित्री महादेवी वर्मा की संस्मरणात्मक कहानियों से ज्ञात होता है कि वो करुणा और मानवीय भावों के साथ ही चित्रात्म