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ईशमधु तलवार जयंती

जीवन की दुर्गम राहों में, तुम चलते रहते थे ! तेरी छाया में ऐ! तरुवर, पुष्प पला करते थे।  घुप्प अंधेरों की महफ़िल में  रात चांदनी मुश्किल थी, राह  कटे बेखौफ तभी,  किस्सों के दीप जलाया करते थे।  जीवन की दुर्गम राहों में, तुम चलते रहते थे ! चुप्पी नहीं, बोलना होगा  नहीं बैठना, चलना होगा,  खड़े सवालों के घेरों को  राहों के तुम अवरोधों को, ठोकर मार गिराते  थे,  जीवन की दुर्गम राहों में, तुम चलते रहते थे ! एक कोना तय अपना था  कौन जानता था हमको  नाम दिया पहचान मिली साथ तुम्हारा पाकर के।  भूले हम थे अनजाने,  तुम हाथ हर इक सर धरते थे।  जीवन की दुर्गम राहों में, तुम चलते रहते थे ! राह बहुत बाकी थी राही   इतनी भी क्या जल्दी थी,   तेरी शब्दों की ताकत से   हिम सी पीर पिघलती थी,  रुक गए तुम ,  तुम्हारे आगे दंभ और आलस कहाँ ठहरते थे  जीवन की दुर्गम राहों में, तुम चलते रहते थे ! सुनीता बिश्नोलिया

गांधी जयंती - महात्मा गांधी

गांधी जयंती  बापू को शत शत नमन 🙏🙏 गाँधी का  सपना भारत हो,              शिक्षित, स्वच्छ, समर्थ,  सम नर -नारी हों और समझें,               हम धर्मों का अर्थ ।     मीठे वचनों  का  जल  बरसे                   भीगे हर इक मन    त्यागें कटु वचन हर जन और,                    गाएं हरी भजन । राह झूठ की छोडें मानव                 मन सत्य हो ज्यों दर्पण  पर सेवा पर उपकार करें,                 कर तन-मन, धन अर्पण । द्वेष, दंभ, मन से निकले,                 हो ह्रदय प्रेम  संचार,  घृणा, क्रोध के भाव न जागें,               बहे शांति की मधुर  बयार । सदकर्मों की ज्योति से हो,                जगमग भारत  देश   हाथों पर विश्वास स्वयं के                 बदल तू खुद परिवेश  । स्कूल हुए गुलजार सुनीता बिश्नोलिया        

भारतीय संस्कृति

भारतीय संस्कृति गांधी जयंती गुलजार हुए स्कूल रंग बिरंगी, अनोखी, अलबेली है भारतीय संस्कृति,विशाल ह्रदय वाली, विदेशी संस्कृतियों को ह्रदय में समाहित करके भी अपने  स्वरुप को नहीं खोने वाली है भारतीय संस्कृति । संस्कृति सिखाती है विनय,प्रेम, सहिष्णुता आदर- सम्मान जिसका पालन करना हम भारतीयों को जन्म से ही सिखा देने की परम्परा है या कहें संस्कृति ही है।  जब भी भारतीय संस्कृति की बात होती है तो सबकी निगाहें महिला और महिलाओं के परिधानों पर आकर अटक जाती है क्यों... क्योंकि हमारी सोच इससे आगे बढ ही नहीं पाती है ।                                            जिस व्यक्ति की आदत महिलाओं को घूंघट में देखने की पड़ गई है वह किसी महिला को पाश्चात्य परिधान में पूरे ढके हुए बदन में देख कर भी उस पर संस्कृति के हनन का आरोप लगाता है।        हमारी संस्कृति इतनी पिछड़ी हुई नहीं वरन ये उस व्यक्ति का दृष्टि -दोष कहलाएगा...           महिला का पाश्चात्य परिधान में रहना सांस्कृतिक अस्मिता का ह्वास नहीं वरन परम्परावादी सोच के आगे एक कदम है।                         वास्तव में पाश्चात्य संस्कृति