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जुलाई, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मित्रता दिवस - friendship day

सभी मित्रों को मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं 🌹🌹❤️💕💕💕💐💐❤️💕💕किसी ने सच ही कहा है - "मित्रता खुशी का सबसे अच्छा जरिया। बिना मित्रों के मनपसंद चीज़ भी उबाऊ लगने लगती है।"      साथ सखा के धूप भी, लगती ठंडी छांव।   दुनिया की दोपहर में,नहीं जले फिर पांव।1।    कारज होते सिद्ध सब, थाम मित्र का हाथ।    पुष्प कंटकों में खिलें,मित्र अगर हो साथ।2।     कृष्ण-सुदामा सा नहीं, मित्रों का व्यवहार।  छल-छल बहती है मगर, मध्य प्रेम की धार।3।    सुनीता बिश्नोलिया ©® जयपुर

हरी मिठाई... लाल अमरूद

      हरी मिठाई मैं भी सुदामा देवी माँ अनोखी     हमारे गांव तलवाड़ा की धर्मशाला में आए दिन समारोह होता था। कभी शादी समारोह तो कभी किसी के मरने के अवसर पर भोज होता था। हम लोग घर से पानी का लोटा लेकर जाते थे। रिवाज के अनुसार तभी मृत्यु भोज में विशेष व्यंजन नहीं बनाए जाते थे। एक बार किसी बुजुर्ग के मृत्यु पर मृत्यु भोज में मिठाइयाँ बनाई गई हमने अपने बड़ों से पूछा कि मृत्यु भोज में तो मिठाई नहीं बनाई जाती तब जवाब मिला की जिनकी मृत्यु हुई है उनकी आयु 100 वर्ष की थी जब कोई अपनी आयु पूरी कर कर मरता है तब मृत्यु भोज में मिठाइयाँ बन सकती हैं। बस फिर क्या था हम गणना करने लगे किस-किस की मृत्यु पर मिठाईयाँ बन सकती हैं। हमारी गैंग में शैलबाला जो हमारे दूर के चाचा की लड़की थी उसके दादाजी भी बुजुर्ग थे उनकी बड़ी होटल थी बस स्टैंड पर हमने कई बार उनकी होटल में हरी परत वाली मिठाइयाँ देखी थी।  अब हर रोज हम शैलबाला से एक ही बात पूछते और उससे कहते कि जब तुम्हारे दादा जी का मृत्यु भोज होगा तो तुम जिद करके मृत्यु भोज में हरे परत वाली मिठाई रखवाना वह भी मित्रतावश  हाँ कह द

मीठा पान - टीना जोशी

मीठा पान मैं भी सुदामा देवी माँ क्यों लड़ती झगड़ती हैं लड़कियाँ अनोखी दादी कहती है बच्चे भगवान का रूप होते हैं।तो हमने भी मान लिया कि बच्चे भगवान का रूप होता है। एक दिन हम मंदिर गए मंदिर में सभी लोग भगवान की मूर्ति पर पैसे चढ़ा  थे। ये देख   हमारे मन में एक प्रश्न कौंधा कि ये पैसे कौन लेता है? भगवान तो बाजार में कभी देखे नहीं और उन्हें कोई चीज खरीदने की कहाँ जरूरत है।  वो जो चाहते हैं वह जादू से उनके पास आ जाता है तो यह पैसे किसके हैं फिर दादी की बात याद आई कि बच्चे भगवान का रूप होते हैं तो शायद यह पैसे हमारे हैं बहुत मनन चिंतन हुआ इस विषय पर फिर अंत में निर्णय लिया गया कि पैसे हम बच्चों के हैं आज किसी ने पूरा ₹1 चढ़ाया था ₹1 हम बच्चों का हुआ यह मानकर हमने ₹1 ले लिया और फिर हम बाजार को गए बाजार में कुछ रंग बिरंगी गोलियां खरीदी चॉकलेट खरीदी और एक पान भी खरीदा उस पान के तीन हिस्से हुए बड़ी दीदी मेरा और छाया का। हम तीनों ने बड़े मजे किए उस दिन और पान तो बहुत देर तक खाया फिर मन में एक विचार आया कि यह बड़े लोग पान खाकर थूक क्यों देते हैं? जबकि यह तो इतना मीठा और रसीला होता है पत

देवी माँ

    देवी माँ मैं भी सुदामा  बचपन में बेसब्री से इंतजार होता था गर्मी की छुट्टियों का और जब छुट्टियाँ होती तो मैं और मेरी बड़ी बहन गाँव  जाते अपनी दादी के पास हमारा गाँव ज्यादा दूर नहीं था 15 किलोमीटर की दूरी पर ही था। वहां पर हम 6 -7 लड़कियों की गैंग थीऔर उस गैंग की मुखिया हमारी बड़ी दीदी थी हमारी उस गैंग में मेरे बुआ की लड़की छाया , मेरे चाचा की लड़की शैलबाला पड़ोस की सीमा, रचना ,निशा थी ।हम सब तालाब में नहाने जाते वहाँ पर रंग-बिरंगे कमल के फूल तोड़ते  आम के पेड़ों के पास झूला झूलते छोटी-छोटी अमिया तोड़ते खूब मजे करते । बुआ की लड़की छाया ने बताया कि हमारे गाँव में एक औरत को देवी आती है बस फिर क्या था हम भी वहाँ पर पहुंच गए हमें सबसे ज्यादा डर था इस साल के परीक्षा परिणाम का, भीड़ में जैसे -तैसे करके हम देवी माँ के पास पहुंचे और पूछा कि क्या हम इस साल पास हो जाएंगे? देवी माँ ने बोला हाँ ज़रूर मेहनत करो। बस फिर क्या था खुशी का कोई ठिकाना ही नहीं था और इस खुशी को सेलिब्रेट भी करना था लेकिन इतने पैसे कहाँ से आते ? घर आकर हम सब ने निर्णय लिया कि क्यों ना हम भी देवी माँ वाला खेल

मैं भी सुदामा - टीना जोशी

          हँसमुख और खुश मिजाज़ टीना जोशी के मुख पर पर आज  भी एक मासूम बच्ची की मुस्कराहट खेलती है। वो लिखती हैं बचपन की मीठी - मासूम और सुखद स्मृतियों को।उसी नटखट अंदाज में जिस अंदाज में बच्चे अपनी चपलता और चंचलता से मोहित करते हैं अपनों को। आइए हम भी टीना जी के साथ चलते हैं उनके बचपन की दुनिया में जी लेते हैं अपना बचपन।                   मैं भी सुदामा  देवी माँ मीठा पान हरी मिठाई, लाल अमरूद,              एक बात मेरे मन में कई बार आती है सोचती हूँ कहूँ या नहीं चलिए कह ही देती हूँ....जापान जैसे विकसित देश में प्रारंभ के 7 वर्ष बच्चों को तमीज और तहजीब सिखाने में बिताए जाते हैं। लेकिन हमारे भारत में प्राथमिक शिक्षा को बिल्कुल भी प्राथमिकता नहीं दी जाती है। इसकी जीती जागती मिसाल है मेरी ये कहानी कैसे..?   आप पढ़िए फिर आप अपने आप मेरी बात मानने को मजबूर होंगे चलिए तो सुनिए..          हम तीन भाई बहन हैं बड़ी दीदी फिर मैं और मेरा एक छोटा भाई। वर्तिका       मैं बहुत छोटी थी पर.. दीदी को स्कूल जाते देखकर न जाने मेरे मन में स्कूल जाने की इच्छा जाग्रत होने लगी और मैं भी जिद करने लगी।

मीरा बाई चानू :- चांदी की लड़की

      मीरा बाई चानू  मीरा बाई चानू के ओलंपिक के भारोत्तोलन में रजत पदक जीतने पर      बड़े भाइयों से ज्यादा              लकड़ियां उठाकर       सिद्ध तो उन्हीं दिनों      कर चुकी थी वो खुद को     पर मानता कौन है...!         संघर्ष  के दिनों में उसने      झेला था तिरस्कार और तनाव           तो लगता अपना कौन है..!       सफलता चूमेगी कदम एक दिन        ये बस वही जानती थी        टूटकर बिखरी नहीं            वो स्वयं को पहचानती थी।      छिले हुए हाथों  के           उसके असफल प्रयासों पर             हँसने वालो        अब तो मानते हो ना        'डिड नॉट फिनिश' लिखी                 मिट्टी की लड़की        चांदी की है!        अरे! अब तो पहचानते हों ना।       सुनीता बिश्नोलिया             जयपुर 

गुरु बिन ज्ञान कहाँ

गुरु बिन ज्ञान कहाँ  गंगा का सा नीर है,पावन गुरु का ज्ञान।  ज्ञान-वारि निर्मल करे,मन को पियुष समान।1।  गुरु घड़ता सिस कुंभ को,पानी से सहलाय।  कच्चे फिर उस कुंभ को,परखे आग तपाय।2। आज सकल संसार में,धन से सबको प्यार।   बन गुरुवर कुछ कर रहे, विद्या का व्यापार।3। नारी अस्मिता संघर्ष और यथार्थ तम खेनें संसार का, देकर सच्चा ज्ञान। 'सुनीति' हे गुरु वंदना,हरो हृदय अज्ञान।4। सागर के सम ज्ञान का, गुरु गहरा भण्डार। सच्चे मोती ज्ञान के, गुरु हिय भरे अपार।5।  सुनीता बिश्नोलिया

नारी अस्मिता-संघर्ष और यथार्थ"

नारी अस्मिता-संघर्ष और यथार्थ" अनोखी का संघर्ष : फूल से से तलवार   नारी अस्मिता-संघर्ष और यथार्थ"*     संस्करण 2021  में शामिल करने एवं पुस्तक की प्रति उपलब्ध करवाने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद Dr.Manisa Sharma जी।       नारी अस्मिता : अर्थ परिभाषा और यथार्थ       (ऐतिहासिक, सामाजिक और साहित्यिक परिप्रेक्ष्य) संपादन- डॉ. मनीषा शर्मा, डॉ. सुधा राठी, डॉ. अनन्ता माथुर  के संपादन में एक स्त्री के समग्र स्वरुप के दर्शन के उद्देश्य से तैयार की गई बहुत ही महत्तवपूर्ण पुस्तक है। पुस्तक की यही विशेषता भी है कि नारी जीवन से जुड़े विविध पहलुओं का शोध, लेखन और सभी कार्य महिला महिला रचनाकारों द्वारा ही संपादित किए गए हैं। गुरु बिन ज्ञान कहाँ         डॉ. मनीषा शर्मा बताती हैं कि मेरे घर में सहायिका आती थी 18 - 20 साल के आसपास की उम्र वाली। यथा नाम तथा गुण वाली 'खुशी' हमेशा चहकती  दिखाई देती थी।  एक दिन उसने इसी तरह चहकते हुए बताया कि कल उसके पति ने उसकी सर्विस(पिटाई)  की। बच्चों ने आश्चर्य से उसे देखते हुए पूछा आप फिर भी इतनी खुशी से यह बात कह रही हैं

बरसात - जमके बरसे मन फिर क्यों तरसे

कवयित्री #शिवानी जयपुर के साथ लीजिए पहली बारिश का अद्भुत आनन्द  शिवानी कहती हैं -  सुकून से सो रहे थे पंछी आज बादलों ने फिर हम से की गुफ्तगू आज पहली बारिश का स्वागत ज़रूरी है भई 😁😁 अरे बादल जरा घेरो,      मेघ- मन आसमां को तुम             कि ऎसे जोर से बरसों,                    धरा को दो नया जीवन।  काया जल रही है तुम,         शीतल बूंदे बरसाओ,             है प्यासी ये धरा बादल,                प्रेम जल शब्द छलकाओ।  कवि गाओ राग ऐसा,      जागे सोते हुए सारे,            तेरे शब्दों की शीतलता,                 ह्रदय में ऐसे बस जाए।  मन के घन गरज कर तुम,        विषमता जग की सम कर दो,                मुक्त कर दो रूढ़ियों से,                     सुमन- सौरभ बिखरा दो  पिघल जाएँ हृदय पत्थर,          गीत गाओ अति मधुरिम,                  भरम की गाँठ सब खोलो,                        मिटाओ भेद सारे तुम।  जमे शैवाल बह जाएँ,         बहो बन तेज धारा तुम                 बाँध शब्दों के ना टूटे,                        मीठी सी बहे सरगम।। सुनीता बिश्नोलिया ©® फिर फिर जावे बादली

दोहा गीत - फिर-फिर जावे बादली (बरखा गीत)

बरसात का गीत.. बरखा गीत  दोहा गीत - - - - फिर-फिर जावे बादली_ बैठी हूँ मैं बावरी, ले बरखा की आस।  दिन-गिन सावन के कटें,ये मन हुआ उदास।।  गहरे बादल हैं घिरे, बहती मंद समीर।  फिर-फिर जावे बादली, फिर मन हुआ अधीर।।  फिर भी मन में आस है, देख गगन में रंग  चमक रही है दामिनी, हृदय मेघ का चीर।।  दूर देश बरसी घटा, है मुझको अहसास।  दिन-गिन सावन के कटें,ये मन हुआ उदास।।  जमके बरसे मन फिर क्यों तरसे थके-थके देखो नयन, रस्ता रहे निहार। इन आँखों में है छिपा, बनकर आँसू प्यार।।  कह कब तक न आएगी, धोरां वाले देश  आन बुझा मन- प्यास तू, छेड़ मेघ मल्हार।।  सूखी धरती प्रेम की, सूखा सावन मास।  दिन-गिन सावन के कटें, ये मन हुआ उदास।।  सुनीता बिश्नोलिया ©®