गुरु बिन ज्ञान कहाँ गंगा का सा नीर है,पावन गुरु का ज्ञान। ज्ञान-वारि निर्मल करे,मन को पियुष समान।1। गुरु घड़ता सिस कुंभ को,पानी से सहलाय। कच्चे फिर उस कुंभ को,परखे आग तपाय।2। आज सकल संसार में,धन से सबको प्यार। बन गुरुवर कुछ कर रहे, विद्या का व्यापार।3। नारी अस्मिता संघर्ष और यथार्थ तम खेनें संसार का, देकर सच्चा ज्ञान। 'सुनीति' हे गुरु वंदना,हरो हृदय अज्ञान।4। सागर के सम ज्ञान का, गुरु गहरा भण्डार। सच्चे मोती ज्ञान के, गुरु हिय भरे अपार।5। सुनीता बिश्नोलिया
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia