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मई, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सुप्रभात #suprbhat #सुप्रभात #goodmorning

सुप्रभात 🙏🙏#नमस्कार दोस्तों #स्वस्थ रहें #मस्त रहें 🌹🌹🌹🌹🌻🌻🌻 सृष्टि की रचना से अब तक धरा पर  विपदा के सागर कितने ही आए।  विपदा के आगे मगर ना कभी भी  कदम उठ गए जो पिछले हटाए।  खड़े हो गए काल के जाके सम्मुख  हमें काल से फिर, टकराना होगा।। #सुनीता बिश्नोलिया #सुनीति #जीवनजय

#Corona कोरोनाकाल में हिम्मत प्रदान करती कविता - #हरिवंशरायबच्चन

नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्णान फिर-फिर! वह उठी आंधी कि नभ में छा गया सहसा अंधेरा, धूलि धूसर बादलों ने भूमि को इस भांति घेरा, रात-सा दिन हो गया, फिर रात आ‌ई और काली, लग रहा था अब न होगा इस निशा का फिर सवेरा, रात के उत्पात-भय से भीत जन-जन, भीत कण-कण किंतु प्राची से उषा की मोहिनी मुस्कान फिर-फिर! नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्णान फिर-फिर! चित्र आभार वह चले झोंके कि कांपे भीम कायावान भूधर, जड़ समेत उखड़-पुखड़कर गिर पड़े, टूटे विटप वर, हाय, तिनकों से विनिर्मित घोंसलो पर क्या न बीती, डगमगा‌ए जबकि कंकड़, ईंट, पत्थर के महल-घर; बोल आशा के विहंगम, किस जगह पर तू छिपा था, जो गगन पर चढ़ उठाता गर्व से निज तान फिर-फिर! नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्णान फिर-फिर! क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों में उषा है मुसकराती, घोर गर्जनमय गगन के कंठ में खग पंक्ति गाती; एक चिड़िया चोंच में तिनका लि‌ए जो जा रही है, वह सहज में ही पवन उंचास को नीचा दिखाती! नाश के दुख से कभी दबता नहीं निर्माण का सुख प्रलय की निस्तब्धता से सृष्टि का नव गान फिर-फिर! नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्णान फिर-फिर! स

सूरमा - रामधारी सिंह ' दिनकर' - # पाठ्यपुस्तक - # नई आशाएँ

पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '-    सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर '    सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है,     कायर को ही दहलाती है |    सूरमा नहीं विचलत होते,     क्षण एक नहीं धीरज खोते |   विघ्नों को गले लगाते हैं,       काँटों  में राह बनाते हैं |    मुँह से कभी ना उफ कहते हैं,    संकट का चरण न गहते हैं |    जो आ पड़ता सब सहते हैं,     उद्योग- निरत नित रहते हैं |    शूलों का मूल नसाने हैं ,     बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं |         है कौन विघ्न ऐसा जग में,      टिक सके आदमी के मग में?      खम ठोक ठेलता है जब नर,     पर्वत के जाते पाँव उखड़ |     मानव जब जोर लगाता है,      पत्थर पानी बन जाता है |           गुण बड़े एक से एक प्रखर,       हैं छिपे मानवों के भीतर       मेहंदी में जैसे लाली हो,       वर्तिका बीच उजियाली हो |      बत्ती  जो नहीं जलाता है,      रोशनी नहीं वह पाता है |     कवि परिचय -    #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर

नारी - सहनशील है धरती की तरह

नारी - सहनशील है धरती की तरह नहीं अब नहीं..  नहीं  है नारी बेचारी !    गौर से देखो पालती है जग  को    पालनहारिणी है हर नारी !   ज़रा समझो,  ज़रा झांको तो इतिहास में           जो  भरा  है  नारी के बलिदान की गाथाओं से,  चाहे हो वह स्वतंत्रता आंदोलन  या कोई हो हक की जंग!    हर किरदार  में श्रेष्ठ, नारी ने,     किया था अथक परिश्रम    जो करती है नव सृजन,   धन्य है ये जग  पाकर माँ की ममता की छांव।     ईश्वर भी  ऋणी है उसका    कितनी सबल कितनी प्रबल है नारी!   फिर भी लोग कहते हैं  इसे बेचारी!   देख लो ज़रा नजर घुमाकर  किरण बेदी ,भावना कांत  जैसी सक्षम नारी   देती हैं पुरुषों को भी  मात   सहनशीलता है धरती की तरह ,   पर .. ना करना इसके अहं पर चोट   वरना  बहुत पछताओगे,  कब सीता से काली बन जाए,   एहसास भी ना कर पाओगे!   एहसास भी कर ना पाओगे! भूमिका_ सिंह_ जयपुर मुश्किल घड़ी माँ का साथ माँ की सीख

माँ का साथ #माँ - Vaishnavi

माँ का साथ  एक दिन मीनू रास्ते से जा रही थी | तभी सड़क के किनारे उसे किसी के रोने की आवाज़ आई | उसने देखा की एक बूढी औरत रो रही थी | मीनू ने उनसे पूछा "क्या हुआ दादीमा? आप इस तरह क्यूँ रो रही हैं?" उन्होंने कहा "मेरे बहु-बेटे ने मुझे घर से बाहर निकाल दिया है | वह कहते है की मैं उनके लिए बोझ हूँ |" मीनू को यह सुनकर अच्छा नहीं लगा | वह उन्हें अपने साथ अपने घर ले गई | जब उसने यह बात अपने माता पिता को बताई तो उन्होंने कहा " बेटी हम भी इन्हें हमारे साथ रखना चाहते हैं पर तुम तो जानता हो की हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है | मेरा काम भी अच्छा नहीं चल रहा है | पहले ही घाटा हो चुका है | और जो कुछ भी मैं कमा रहा हूँ वो भी घर चलाने के लिए काफी नहीं | एक और सदस्य का खर्चा कैसे उठा सकते हैं |"  मीनू उदास थी पर काफी चर्चा के बाद  दादीमा को वृद्धआश्रम ले जाने का फैसला हुआ | उन लोगों पर बोझ ना बनने के लिए, दादीमा ने भी सहमति दे दी | कुछ दिनों बाद एक वृद्धआश्रम का बंदोबस्त कर उन्हें वहाँ छोड़ आए | मीनू उदास रहने लगी | परंतु कुछ समय बाद अचानक मानो क

कोरोना काल का मुश्किल दौर - मुश्किल घड़ी #corona हिम्मत और हौंसला बनाए रखने के लिए पढ़ें ये गीत

मुश्किल घड़ी - कोरोना काल. #Corona  मुश्किल   घड़ी   दौर   मुश्किल  बड़ा है  मगर  मुश्किल ों से निकलना पड़ेगा ।              भंवर में फँसी नाव को भी तो पहले               बुद्धि के बल पर तुम्हीं ने निकाला।              आशा का दीपक मन में जलाकर               सागर में नैया को तुम्हीं ने संभाला।               काल की तरहा उठती लहरों में डटकर               पार  मुश्किल  ये सागर करना पड़ेगा।।  सृष्टि की रचना से अब तक धरा पर  विपदा के सागर कितने ही आए।  विपदा के आगे मगर ना कभी भी  कदम उठ गए जो पिछले हटाए।  खड़े हो गए काल के जाके सम्मुख  हमें काल से फिर, टकराना होगा।।              सदा  मुश्किल ों पर विजय होती आई              जय आगे भी होगी होती रहेगी।              जगमग जले जोत एेसी बिखेरो              जोत तूफान में भी जलती रहे एेसी              आशा की बाती बुद्धि का दीपक              सागर के उर पर जलाना पड़ेगा।।  सुनीता बिश्नोलिया  जयपुर 

ईद मुबारक eidmubarak

ईद मुबारक    झोली भर उम्मीद,      रोशनी आशाओं की लेकर चाँद ईद का  हँसे गगन में      उजली किरणें बिखराकर। 

मेरी माँ, मेरी जान - हर जन्म में आप हो मेरी माँ Poorva Batra

माँ की ममता मांगा है अगले जन्म में आपके ही। मांगा है अगले जन्म में आपके ही। चाहे मैं इनसान बनूं या नहीं। बनोगे अगले जन्म में आप मेरी ही। फूल हों या कांटे-फूल हों या कांटे। सब खिलजाता हैं। आपकी हँसी से, पूरा जग मुस्कुराता हैं। पूरा जग मुस्कुराता हैं। वादा करती हूं आपसे। वादा करती हूँ आपसे। हम रहेंगे हमेशा साथ। चाहे यहाँ हूँ या नहीं । छोडूंगी ना आपका‌ हाथ। छोडूंगी ना आपका‌ हाथ। नफ़रत करती हूं मैं उनसे। नफ़रत करती हूं मैं उनसे। जो नहीं करते अपनी माँ का मान। मेरे लिए तो मेरी माँ ही मेरी शान‌। मेरी माँ ही मेरी भगवान। मेरी मांँ ही मेरी भगवान। आपकी उम्मीदों को पूरा करने की‌ कोशिश करती हूँ । पूरी हों या ना प्यार में आपके बहुत करती हूँ । प्यार में आपके बहुत करती हूँ ।      पूर्वा_ बत्रा_ मुश्किल घड़ी

माँ की सीख - कहानी Riya Sharma

मां की शिक्षा ईशा एक बहुत ही समझदार और आज्ञाकारी लड़की है। करीबन 10 दिन पहले जब वह उठी तो उसने सोचा कि वह अपनी सहेली के घर चली जाए ।वह तैयार होकर घर से निकल ही रही थी कि उसने देखा कि घर में कोई नहीं है। जिसे वह बता कर जा सके। पापा दफ्तर गए थे , मां घर के काम से बाहर गई थी, और छोटा भाई सो रहा था। इसीलिए वह बिना बताए ही चली गई। उसकी मां जब घर आई तो ईशा को घर पर ना पाकर मां चिंतित हो गई । उसकी मां ने आस-पड़ोस में पूछा ।मगर जब ईशा का किसी को कुछ न पता था। तो उन्होंने ईशा के पापा को फोन किया। पापा घर आए और गली मोहल्ले में, पास के बाजारों में ढूंढा । मगर ईशा का किसी को कुछ भी नहीं पता था। 8 घंटे बाद जब इंशा की मां और पापा पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवाने जा ही रहे थे कि ईशा आ गई । ईशा को देखकर मा फूट-फूट कर रोने लगी और पापा की भी आंखें नम थी ‌। मां ने कहा कि बेटा तुम ठीक हो ना मेरी बच्ची इतनी देर कहाँ थी। इतना कहते- कहते माँ की आँखों में आँसू आ गए और उन्होंने ईशा को गले लगा लिया ।    बिना बताए घर से जाने पर मां ने  ईशा  पर गुस्सा भी किया और उसे घर का काम करने की सजा भी द

माँ री बिलोवणी

माँ पन्ना धाय मेरी माँ माँ री बिलोवणी मिक्सी चलाकै मक्खन निकाळण मैं  देर तो कोनी लागै पण कानां मेैं गूँजै है,  माँ री बिलोवणी री झगर-मगर।  बासी बुहारी काड कै, पीस्या करती गीहूं,बाजरो,   दळ कै मूंग,मोठ अर चणा,  माँ बैठ ज्याया करती  बिलोवण तांई।।  कितणो जरूरी काम होया करतो   सुंवारै-सुंवारै छा बिलोवणो। झगर-मगर री अवाज सूं खुल ज्याया करती नींद।  आपरै सागै लेगी माँ बिलोवणी  अर म्हारी मीठी नींद संभळागी संस्कार  जिम्मेदारी निभावण रा।  सुनीता बिश्नोलिया © ® 

माँ पन्नाधाय

माँ पन्ना धाय  एक माँ ऎसी भी  मेरी माँ माँ री बिलोवणी माँ पन्नाधाय  काळजै री कोर नै माता,                देख-देख मुस्कावै है, छाती सूँ दूध री नदी बह्वै,            टाबर सूँ जद बतळावै है। कान्हा री सी देख कै सूरत,            मायड़ यूँ इतरावै है, सोच काल री बात मावड़ी,          आँख्यां आँसू ल्यावै है।  फर्ज पै वारूं म्हारा पूत नै ,          हिवड़ा रो दरद लुकोवै है, घर मै बळतो 'दिवला नै  खुद           आज बुझाणव जावै है। लाड लड़ावै घणा बावली,            नयो लेख लिखण नै जावै है, प्रेम रो सागर छलकावै माँ,           धन ममता रो झळकावै है। सुनीता बिश्नोलिया 

#मातृ दिवस #मेरी_ माँ #माँ #mother's day

माँ की अधूरी इच्छा  माँ पेटी खोलकर दिखाओ ना  माँ क्या है इसमें  कितनी बार कहती थी मैं  माँ पेटी खोलती भी थी पर..  पेटी में बिछा लाल कपड़ा  कभी नहीं हटाती हमारे सामने  बहुत उत्सुकता थी,  लाल कपड़े के रहस्य को जानने की।  माँ कहती बहुत क़ीमती समान है  तुम्हारे काम का नहीं  मेरे बाद तुम्हीं को मिलेगी  मेरी पेटी की चाबी।  और एक दिन पेटी की चाबी रखकर  माँ विलीन हो गई उस अनंत में  जहाँ से कोई वापस नहीं लौटता।  संभालाई गई हमें पेटी की चाबी  कांपते हाथों से खोली थी पेटी और पाकर वो अनमोल खज़ाना  बहुत लड़े, बहुत रोए थे हम  अपना-अपना हक जताते हुए  हमारे छोटे-छोटे कपड़े,  हल्दी से मांडे हुए पोतड़े  और... और एक अँग्रेजी-हिंदी  सीखने की छोटी सी किताब....  माँ हमें पढ़ाने के  कितने जतन करती थीं।  सुबह जल्दी जगाना  और ना पढ़ने पर डांटते हुए  पढ़ाई का महत्त्व बताना  ओह! माँ हम पढ़ते रहे...  और पढ़ने की आपकी  इस इच्छा को  समझ भी ना सके  माँ आपके चेहरे पर  भी हँसी का लाल कपड़ा बिछा था  इसलिए आपके मन की पेटी  सामने होते हुए

मत कर माया को अहंकार मत कर काया को अभिमान कबीर Kaya dhul ho jasi - - #Kabir

कबीर.. मत कर माया को अहंकार           मत कर काया को अभिमान जीवन नश्वर है संसार में जो आया है उसे एक दिन जाना है। तेरे मेरे के मोह जाल में पड़ मनुष्य एक दूसरे से लड़ता है झगड़ता है।   जीवन के समस्त सुख और भोग - विलास में डूबे रहने के लिए वो अपनों को भी धोखा देने से बाज नहीं आता।     जैसे -  संसार में तनुधारियों का चार दिन का मेल है  इस मेल के ही मोह से जाता बिगड़ सब खेल है।   कबीरदास का  भी जीवन के प्रति स्पष्ट दृष्टिकोण था कि          पानी केरा बुदबुदा, अस मानुस की जात।               एक दिन छिप जाएगा,ज्यों तारा प्रभात।।  अर्थात्‌  मनुष्य का जीवन पानी के बुलबुले  भांति क्षणभंगुर है जैसे पानी का बुलबुला पानी पर क्षणिक बनता है वो या तो स्वयं मिट जाता है या एक फूंक से मिट जाता है वैसे ही    मनुष्य का शरीर, मनुष्य का जीवन भी क्षणभंगुर और नाशवान है। ।  अर्थात्‌ जिस प्रकार पूरी रात जगमगाने के बाद सुबह होते ही तारे छिप जाते हैं, उसी प्रकार मनुष्य शरीर भी निश्चित अवधि व्याधि अथवा किसी दुर्घटना के कारण एक दिन नष्ट हो जाएगी। इसीलिए कबीर का कहना. मानते हुए हमें

लघु कथा लेखन

लघु कथा लेखन  लघु कथा लेखन  लघु अर्थात 'संक्षिप्त   लघु कथा साहित्य की प्रचलित और लोकप्रिय विधा है।  देखा जाए तो यह उपन्यास का ही लघु संस्करण है।   हालांकि 'लघु' का मतलब संक्षिप्त होता है किंतु संक्षिप्त' होने के बावजूद भी पाठक  पर इसका प्रभाव दीर्घकालीन  होना आवश्यक है अर्थात लघु कथा गागर में सागर भरने वाली अनुपम विधा है।   किसी उपन्यास के समान इसमें भी पात्र कथानक, द्वंद समायोजन तथा समाधान जैसे तत्व विद्यमान होते हैं।   लघुकथा कल्पना प्रधान कृति है परंतु इसके प्रेरणा जीवन  की वास्तविकता तथा आसपास की घटनाओं से ही मिल जाती है।      अर्थात हम कह सकते हैं कि लघु कथाएं सीमित शब्दों में बहुत कुछ कह देने की योग्यता रखती  हैं तथा पाठकों के अंतर्मन पर पहुंचकर अपना संदेश उन तक पहुंचाती है और यही लघुकथा का  मुख्य उद्देश्य है।   अतः लघुकथा का वास्तविक उद्देश्य तभी सार्थक है जबइसे  पढ़कर   पाठक प्रभावी तथा संतुष्ट हो जाए।   ***लघु कथा लेखन के दौरान ध्यान रखने योग्य जरूरी बातें ----- ** अच्छी लघुकथा लिखने के लिए लेखक को एक अच्छा पाठक होना भी जरूरी

इंसानों की बस्ती में --मैं कभी बतलाता नहीं, पर अंधेरों से डरता हूँ मैं माँ

मैं कभी बतलाता नहीं, पर अँधेरों से डरता हूँ मैं माँ....  इंसानों की बस्ती में         कल शाम से ही वो हैरान परेशान सा भाग रहा है इधर-उधर।  नहीं सोया वो पूरी रात, उसके करुणक्रंदन ने नहीं सोने दिया मुझे भी।  उसका रोना सुनकर आँखें भीगती रही मेरी भी आँखें पूरी रात।     कोशिश बहुत की मैंने सोने की पर... रह- रह कर उसके रोने की आवाज़ के बीच बदलती रही करवट। बहुत कोशिश की उसकी आवाज़ को अपने कानों से दूर रखने की।  पर चलचित्र की भाँति चलने लगे उसके पिछले कुछ महीने।         चार बच्चों में से जीवित बचे ये दोनों बच्चे माँ की आँखों के तारे थे।         बहुत नटखट बहुत शरारती । माँ भी अपने बच्चों की निगरानी में इतनी चौकस कि किसी को हाथ भी नहीं लगाने देती।        अगर गलती से कोई उनकी तरफ़ आ भी जाता तो उसकी खैर नहीं।      अपने बच्चों पर वात्सल्य लुटाती उस माँ के बारे में सोचती हूँ तो गंगा-जमुना बह निकलती है आँखों से।        काँप जाती हूँ उसकी मन:स्थिति के बारे में सोचकर। वो माँ कैसे रह रही होगी अपने बच्चे से अलग होकर, कितना तड़पती होग