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मई, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कह मुकरी

#कह मुकरी वो आवे मन हर्षावे, मन में सखी मेरे नाचे मोर, भावे जिया को उसका शोर। ऐ सखी साजन...ना सखी बादल। वो आवे मन डर जावे, तन काँपे ना निकले बोल, मन में चलते कितने बोल। क्यों सखी साजन.....न सखी चोर। वो आवे जीना दुश्वार, नींद ना आवै जाये चैन करार आँखें भी करें उसका बखान, ऐ सखी साजन......न सखी बुखार। वो छुए तो तन सिहर उठे, प्यास जिया की बुझ जाए, मन में आवै एक संतोष, क्यों सखी साजन......ना सखी पानी। वो छू ले तो अगन लगे, तन बदन में जलन लगे अपने ताप से कर दे खाक। ऐ सखी साजन...ना सखी आग। #स्वरचित #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

मुआवजा--कहानी

#मुआवजा रेवती की आँखों से अविरल आँसू बह रहे थे । बार-बार वो चारों बच्चों का माथा चूम रही थी,ह्रदय में ममता हिलोरे ले रही थी। खेत से थक-हारकर लौटी सास बार-बार रोने का कारण पूछ रही थी। पर रेवती कुछ बोल पाने की स्थिति में नहीं थी।बस वो चुपचाप खाना खाना बनाने का इंतजाम करने लगी। दिनभर दूसरों के खेत में मजदूरी बदले सास को थोड़ा सा आटा,चावल और मुट्ठीभर दाल मिली। जो उसने लाकर बहु को दे दिया।हालांकि घर के सातों सदस्यों के लिए यह राशन अपर्याप्त था किन्तु सुबह की तरह बच्चे भूखे नहीं रहेंगे..आखरी बार उन्हें अच्छा खाना तो खाने को मिलेगा। इसी सोच में डूबी रोती हुई वो काम कर रही थी तभी सास उसके पास आई और बोली "बेटा क्यों अपना दिल जलाती हो,जिसे जाना था वो तो चला गया। पर हमें इन बच्चों के बारे में सोचना है इनका भविष्य बनाना है। माना कि कुम्भल कुम्भल पति था पर हमारा भी तो बेटा था। उसकी मौत के पाँचवे दिन जब मैं इन बच्चों का पेट भरने और हँसता चेहरा देखने के लिए काम पर जा सकती हूँ तो तुम्हे भी हिम्मत रखनी होगी इन बच्चों में ही अब हमें अपना कुम्भल खोजना होगा।" इतने में लाठी के सहारे चलते और

यात्रा-संस्मरण

#यात्रा-संस्मरण मई 1995 शादी के 20 दिन बाद पतिदेव के साथ पटना जाने के लिए दिल्ली पहुँची।पहली बार घरवालों से इतनी दूर और इतने लम्बे सफ़र पर जा रही थी सो थोड़ी घबराहट भी थी। साथ था बहुत सार सामान...एक बैग तो पूरा मेरी कॉलेज की किताबों का ही था। अब मैंने अपनी इच्छा से ही प्राइवेट पढ़ने का निर्णय किया था..क्योंकि अब पतिदेव के साथ जो रहना था। खैर स्टेशन तक पतिदेव के परम मित्र और मेरे भाई साथ आए थे। ट्रेन थोड़ी लेट थी ये सब बातें करने लगे थे लगभग घंटे भर बाद गाड़ी आ गई और हम रवाना हो गए। थोड़ी देर बाद पतिदेव ने देखा कि इनका पर्स नहीं है..यानि जेब कट चुकी थी। पहले तो इन्होंने मुझे नहीं बताया पर बाद में बोले कि शायद टिकिट भी पर्स में ही थी। तो मैंने बताया कि टिकिट मेरे पास है जोकि इनके मित्र ने बनवाए थे और मुझे दिए और मैंने अपने पर्स में रख लिए थे। मुझे लगा अब इनके पास पैसे नहीं होंगे पर्स के साथ निकल गए सो मैंने कहा आप चिंता न करें मेरे पास खूब पैसे हैं मुँह-दिखाई और जो माँ-पापा ने दिए। मेरे इतना कहते ही ये मुस्काए और बोले वाह बड़ी समझदार हो लेकिन ये पैसे तुम्हारे हैं तुम जैसे चाहो खर

पढना है

# मुझे पढ़ना है अभी महावर मेहंदी न, बाबुल बस्ता ला दो मेहंदीवाली कड़ियाँ ना बाबुल पैरों में डालो। न पँख मेरे काटो बाबुल, न बेड़ी पैरों में डालो। अभी मेरे पैरों में घुँघरू, आखर के बजने दो, अभी मेरे पैरों में पायल जूते की सजने दो। छनक उठेगी शब्द सरिता कल-कल छल-छल बहती सुप्त मयूरा मन का बाबुल, बन कोयल वीणा गाती। बाबुल आखर की दुनिया से, बस पहचान करा दो, फिर इन पैरों में जंजीरे मेंहदी की बंधवा दो। पंख मेरे पैरों को आखर अपने आप ही देंगे। लोह-श्रंखला मेंहंदी वाली, ये खुद ही तोड़ेंगे।। #सुनीता बिश्नोलिया

#उत्सव

#उत्सव घर में 'उत्सव' है सखी , मिल गाएँ मंगल गीत। इंदौर उत्सव स्थान है, करना हैं शुरू संगीत। शानदार उत्सव होगा, होगी शानदार हर बात, सखियाँ सब मिल जाएँगी, उत्सव वाली रात। हिल-मिल सखियाँ सब चली, मुख पे अनोखी शान, साहित्य का उत्सव यहाँ होगा, होगी सबसे पहचान। कविता मधुर सुनाएँगी, सखियों की क्या बात, सब बंधू वहीं लगाएँगे, उत्सव में अपनी जमात। बिटिया की शादी में जैसे, बहुत बटोही आते हैं, इस उत्सव में भी सखियों, आओ मेहमान बुलाते हैं। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

दोहे-पानी

#आज का दोहा #23/5/18 पानी-पानी जग हुआ,देखा ऐसा काज। पानी आँखों का मरा,तन नोचें बन बाज।। पंच-तत्व काया बनी,पानी है आधार। बिन पानी जीवन कहाँ,जल से हाहाकार। बिन पानी काया नहीं, पानी प्यास बुझाय। पानी से काया बनी,पानी बिन बह जाय।। सिर पे ले गागर चली, सखी कूप की ओर, रिक्त कूप को देख के,तकत रहि चहूँ ओर।। .उनका दुःख पहचानिए,तरस रहे इक बूँद। जल को सब रखें बचा,रहें न आँखें मूँद।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

#मंगल गीत

#मंगल गीत सखी गाओ मंगलगीत,आईss शुभ आज घड़ी है, खुशियाँ हैं चहुँ ओर,अयोध्याs सजी खड़ी है, पहने पुष्प-वल्लरी चीर,अयोध्या-अधीर बड़ी है। बाजे मधुर मृदंग,मल्हार ध्वनि कर्ण पड़ी है, ढोलऔर बाजे चंग,करने को सत्कार,सुहानी आज घडी है... सखी गाओ... सखी गाओ मंगलगीत,आई शुभ आज घड़ी है, करो कुंकुम केसर अभिषेक,डोली द्वार खड़ी है। गाओ गणनायक के गीत,पुष्प-पथ पर बिखराओ, मंगल हो हर काज प्रथम, गणपति को ध्याओ।। सखी गाओ मंगल... सुमन-सजीले रोली-अक्षत ,मिल बरसाओ, चरणों में जनक-नंदिनी के तुम थाल सजाओ। दशरथ-सुत श्री राम की खुशियाँ और बढाओ, तिलक लगाओ भाल,राह में दीप जलाओ। सखी गाओ मंगल.. सखी गाओ मंगलगीत,राम-सिया संग पधारे, करो पुष्पों की बरसात,धन्य हुए भाग हमारे। घर आई जानकी मात,रामजी दुल्हन लाए सखी गाओ मंगल गीत,'प्रभु' देखो हर्षाए। सखी गाओ मंगलगीत ,राम-सिया संग पधारे... #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

राम,लक्ष्मण...

#राम,सीता,लक्ष्मण,हनुमान,,रावन राम-नाम मुख से रटें , करते करते काले काम, पाप आचरण खुद करें,करें ईश्वर को बदनाम। कोमल सीता सी नहीं , रही आज की नार। दुष्टों का बिजली सी वो, करती हैं प्रतिकार। तलवारें भी तन रहीं, भाई-भाई के बीच राम-लखन को कोसता,तरकश हरदम खींच। भक्ति में डूबा नहीं, आज भक्त हनुमान। ईश्वर से पहले माँगता, कार्य पूर्ति प्रमाण। स्वर्ण महल चहूँ ओर है,रावण के भी आज मित्र मण्डली छुपा रही,उसके हर एक राज। #सुनीता बिश्नोलिया © #जयपुर (राजस्थान)

योग-संगम

#योग संगम दोहा- 1.भारत भू में योग की, बड़ी पुरानी रीत, भूल चला क्यों देश ये,सिखलाए जो प्रीत।। 2.नित्य योग सब कीजिए,दूर भगाएँ रोग। मन पर काबू पाइए, दूर हटेंगे भोग।। 3.संगम साथी आइये,मिल सीखेंगे योग, योग-गुरु कई हैं वहाँ,बड़ा अजब संजोग।। मुक्तक- 1.योग भारत की भूमि से,फैला है पूरी दुनिया में, योग के नाम से भारत,जाना जाता है दुनिया में। ऋषि-मुनियों की ये भूमि,योग-भूमि भी कहलाती, योग-मुनि देश भारत के,पूजे जाते हैं दुनिया में। 2.योग कर लो जहां वालो,ये न बेकार जाता है, ये जो चंचल है मनअपना,योग स्थिर बनाता है। नित्य जो योग करता है,होती रौनक हैचेहरे पर, योग काया के कष्टों को,जड़ से मिटाता है। 3.योग-संगम की शाला में,योग का पाठ सीखेंगे, योग नित-नेम से करके,स्वयं को स्वस्थ रखेंगे। योग शाला में चलते हैं,ऋषि-मुनियों से मिलते हैं, चलो संगम के साथी सब कदम मिलकर के रखेंगे। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

दया

दया #आँखों देखी... सिरहाने फ़क़ीर के, एक भूखा कुत्ता भी सोया है, मार खाके इन्सान की, आज वो बहुत रोया है। दोनों की आँखों में नींद तो नहीं पर पड़े रहने के सिवा कोई काम भी तो नहीं.. पैरों से लाचार फ़क़ीर पर किसी को दया नहीं आई थी। वो कुत्ता भी बहुत अलसाया था नींद उसे भी कैसे आती शायद उसने भी कुछ कहाँ खाया था। यों तो सारी कायनात जागती है उस चौराहे पर रात भर लेकिन उस फ़कीर की तो अपनी ही दुनिया है । जिस घर के पीछे कोने में वो भिखारी पड़ा है, उसी घर के नीचे साईकिल की दुकान है, साईकिलवाले का भी यहीं छोटा सा मकान है। उस घर से आती प्रेशर कूकर की सीटी सुन सुन साईकिलवाल सामान समेट चल दिया, पीछे दो ठंडी आहें छोड़कर.... रात बढ़ने के साथ कुत्ते और फ़क़ीर की उम्मीद भी साथ छोडती है... आज फिर वही भूख..वही तड़प..बेबसी, वो कुत्ते को सहलाने लगा, उसकी भूख का कारण खुद को बतलाने लगा। खुद पर चाहे किसी को दया नहीं आई पर वो उस श्वान पर दया और प्रेम लुटाने लगा। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

दोहे, राम ,सपना,जगाने की जरुरत है,जख्म,

दोहे लेकर पत्थर हाथ में,हिंसक हुआ समाज, धर्मों में मानव बंटा,लुटी देश की लाज। हिंसा की राहें तजें, तजिए सब हथियार, मौन की शक्ति देखिए,भरे दिलों में प्यार।। अपने हाथों पर सदा,कर लीजे विशवास, हाथों के हथियार से, छूना है आकाश। सबकी काया एक सी,अलग न कोई भाय, दाता के दर पर सभी,आये ज्यों ही जाय। जालिम जिद के कारणे,जलते ज़िंदा लोग, खुद के ही नुकसान का,लगा जीव को रोग। #सुनीता बिश्नोलिया #सपना आँखों का हर सपना ही सदा पूरा तो नहीं होता, जिद कर लो तो कोई सपना अधूरा भी नहीं रहता। उम्मीद-आशा और विश्वास हो अपने कर्मों पर, कोई लक्ष्य अपनी पहुँच से दूर तो नहीं होता। आजाद भारत का सपना देखा था उन सपूतों ने छोड़ देते वो हिम्मत तो देश आजाद नहीं होता। शिक्षा के उजाले का स्वप्न सलोना ले नयन में, लेकर के कटोरे निकले हैं हाथों बस्ता नहीं होता। किसी के तोड़ता है सपनों के महल अपनी खुदगर्जी में, दूजों के सपनों के टूटने का दर्द उनको जरा सा नहीं होता। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर सो रहे इस ज़माने को,जगाने की जरुरत है, नकल कर पढ़ने वालों को,सुधरने की जरुरत है। पैसों से खेलता है जो, हिमाक़त देखिए उनकी, फिरता

धरती

#धरती तपती धरती पर ओ ! बादल नेह- नीर बरसा दे, नादान मनुज की नासमझी की,धरती को तू ना सजा दे। सूरज आग उगलता मानव,तेरी ही लोलुपता से सम्पूर्ण पृथ्वी है संकट में मानव,तेरी हो नादानी से। वृक्ष बिना माँ धरती का बोलो, कैसे हो श्रृंगार, जल संचय करो धरा की, सुन लो करुण पुकार अभी समय है, अरे बावले,धरा का तू न दोहन कर, महलों में रहने की खातिर,ना पेड़ काट प्रदूषण कर। धूम्र के गुंबद,ग्राम-शहर में,धरती को मैला करते, देन धरा की कहके ये पर्वत को,थोथा करते। गर्म हवा के झोंको से,जल संचय ना हो पाते , हिम पिघल -पिघल ,तांडव लीला कर जाते। तो,तप्त धरा पे ओ!बादल ,नेह-मेह बरसा दे, रुदन करती अचला पे तू,प्रेम सुधा बरसा दे। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

#पर्यावरण

#पर्यावरण माननीय पार्षद महोदय मंच से उतरे इतने में एक दस वर्षीय बालक उनके पास पहुँच गया और निडर होकर बोला,सर आपके विचार बहुत ही सुन्दर हैं।वास्तव में आप देश के सच्चे सेवक हैं आप को प्रकृति और पर्यावरण की बहुत चिंता है...हम बच्चे आप से बहुत कुछ सीख सकते हैं। पार्षद जी खुश होकर बोले शाबास बेटा..हम जनता और प्रकृति के भलाई करते हैं तो हमें भी सच्चा सुख मिलता है।हमारी बातों को याद रखना और अपने आस-पास रहने वालों और अपने मित्रों को समझाना की पर्यावरण की रक्षा करना हमारा धर्म है। बच्चा कहता है जी धन्यवाद सर मैं आपकी बात अवश्य याद रखूँगा...किन्तु अब आपकी सभा के कारण हमारे उद्यान का जो नुकसान हुआ है उसे ठीक करवा दीजिए..क्या मतलब पार्षद महोदय पूछते हैं। बच्चे ने कहा सर आपकी बातें सुनने बहुत ज्यादा लोग आए सब आकर उद्यान में हर कहीं बैठ गए..देखिए काफी संख्या में छोटे पेड़-पौधे तोड़ गए,देखिए कितने फूल..पत्तियों को नुकसान पहुँचा गए हैं। और सर आपके देर से आने के कारण सभी ने चाय-नाश्ता भी यहीं किया..वो सारा कूड़ा भी यहीं फैला गए...उन्होंने पर्यावरण को बहुत नुकसान पहुँचाया..सर आपके भाषण के लिए जो मंच बना

वैश्विक ताप-कारण और निवारण

वैश्विक ताप--कारण और निवारण माँ वसुधा पर फ़ैल रहा है,आज धुँआ विषैला, हाय!तड़पती माँ का तन भी हुआ बड़ा मटमैला। जी हाँ आज वसुधा जल रही है ताप से,और मैली हो गई है हमारी ही गलतियों से। सारा संसार जल रहा है,गर्मी,धूप ,धुआँ ,प्रदूषण से। कारण है स्वयं हम हमारी आपसी प्रतियोगिता, भोग की इच्छा अर्थात उपभोक्तावाद। हर मनुष्य के मन में संसार की हर सुख सुविधा पाने की इच्छा..लालच। जितनी इच्छाएँ उतना ही उपभोग,अत्यधिक उपभोग से संसाधनों का दोहन,नित नई फैक्ट्री ,फिर धूम्र का गुब्बार। बढ़ती जनसंख्या का अपने स्वार्थसिद्धि हेतु संसाधनों का दुरुपयोग,पेड़ों की अंधाधुंध कटाई परिणामस्वरूप सिमटते ग्राम और बढ़ते शहर। कुटीर उद्योगों की समाप्ति और पूर्ण मशीनीकरण के कारण बिजली चालित उपकरणों पर निर्भरता जिससे बढ़ता ताप। आधुनिकता के कारण पैदल चलना बंद और पेट्रोल डीजल चलित वाहनों से बढ़ता प्रदूषण। विश्व के सभी देशों में बढती आपसी प्रतिस्पर्धा और एक दूसरे से आगे बढ़ने की होड़ , युद्ध के खतरे तथा अपनी शक्ति बढाने हेतु हथियारों का निर्माण और उपयोग। बढ़ता परमाणु परीक्षण ,बढ़ता आतंकवाद जिसके कारण हथियारों का दुरूपयोग और बढ़ता युद्ध

कहानी-शिक्षा

#शिक्षा ये कथा है जयपुर शहर में रहने वाले सोने-चाँदी के बहुत बड़े व्यापारी संपतलाल जी की। उनके व्यापार में तीन मित्रों की हिस्सेदारी थी।वो थोड़ा कम पढ़े लिखे थे इसलिए रोजाना का हिसाब मित्र ही कर लिया करते।दोनों मित्र भी बहुत ही ईमानदार इसलिए ईश्वर ने उन्हें धन-दौलत से लेकर दुनिया के हर सुख प्रदान किये..नहीं दिया था तो बस संतान सुख। जो कोई जिस मंदिर जाने की कहता वो संतान प्राप्ति का आशीर्वाद लेने उस मंदिर में पहुँच जाते। विवाह के आठ-दस वर्ष बाद ईश्वर ने उनकी झोली में डाली प्यारी सी बच्ची।अपनी पत्नी को ही अपना भाग्य समझने वाले संपत जी पुत्री जन्म के बाद तो माँ बेटी का विशेष ध्यान रखते। वो बेटी प्रिया से इतना अधिक प्रेम करते थे कि कई बार तो उसकी जिद के कारण दुकान पर नहीं जाते और इस कारण नुकसान भी हो जाता। संपत जी बड़े ही दयालु व्यक्ति थे वे अपने यहाँ काम करने वाले अधिकांशत: कर्मचारियों के बच्चों को बहुत प्रेम करते थे और जरूरत के अनुसार उनकी आर्थिक मदद भी कर दिया करते थे। उनके घर में काम करने वाला किसन अपनी पत्नी व बेटी के साथ घर के पीछे बने एक कमरे में रहता था।वो दोनों पति-पत्नी ही सेठजी के य

युद्ध की बातें करने वालो

#भारत पाक सीमा पर तनाव के बारे में कौन नहीं जानते.. ##युद्ध की बातें करने वालो युद्ध की बातें करने वालो,घर अपने में रहनेवालो , सीमा पर जाकर तो देखो,जीवन उनका जीकर देखो अपने घर को छोडा है ,हर मुशकिल का रुख मोडा है , देश कीरक्षा की खातिर,अपनों के सपने को पीछे छोड़ा है। दिन रात खड़े रहते हैं,जो अपने सीनों को ताने, भारत भू की रक्षा में ,हर सुख को बौना माने। ओ युद्ध की बातें करने वालो,सुख का जीवन जीने वालो........ युद्ध से हमें बचाने को ,रातों को पहरा देते हैं, अमन का पाठ पढ़ाते सैनिक,खुद ही पत्थर खाते हैं। लड़ते हैं इक दूजे से हम,हर सुख ही पा लेने को,    सीने पे गोली खाने को, तैयार है ये मर जाने को । दुश्मन की नापाक हरकतें ,हम से ज्यादा ये जानें, आतंकी के हर हाव भाव को वीर हमारे पहचानें। ओ युद्ध की बातें करने वालो,रातों को सुख से सोने वालो....... हम इन को क्या फ़र्ज सिखाते,क्यों युद्ध हेतु उकसाते हैं ये अपनी मर्जी से जाते हैं,दुश्मन सिर ले आते हैं। युद्ध-युद्ध ना नाम रटो तुम,शांति का आहवान करो तुम , युद्ध ना होने पाए,ऐसा कोई उपाय करो तुम। आतंकी को सजा मिले,सम्मान शहीद हर पाए ,

तमन्नाओं के जंगल में भटकता जा रहा हूँ मैं

#तमन्नाओं के जंगल में भटकता जा रहा हूँ मैं अश्क आँखों के खुद ही पिये जा रहा हूँ,मैं, तमन्नाओं के जंगल में भटकता जा रहा हूँ,मैं। जख्म देकर ज़माने ने छलनी दिल को किया, दिल जख्मों को खुद ही सिये जा रहा हूँ मैं। पाने को तमगा सबकी लालच भरी है निगाहें, तमन्नाओं को लालच से,आगे लिए जा रहा हूँ मैं। लोग हँसते हैं मेरी जिद को कहते तमाशा , अपनी जिद से ही लेकिन बढ़ा जा रहा हूँ मैं। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

गीत...नींद आती माँ मुझको

#गीत ... नींद आती है माँ मुझको, छुपा आँचल में माँ मुझको याद आती है लोरी माँ, सुना लोरी-मधुर मुझको। नींद आती है.... सुनो पापा मेरे प्यारे, झुलाओ बाँहों का झूला, तेरे पहलू में है सोया, देखो प्यारा तेरा लाला। नींद आती है...... बड़ी खुदगर्ज दुनिया है, रास ना मुझको आती है, आप दोनों की नजदीकी, यही बस मुझको भाती है। नींद आती है..... खुदा ने मुझसे क्यों छीना, साया मुझको बताओ ना, सूने से इस गुलिस्तां में, अपने संग में सुलाओ न। नींद आती है..... सुकूं पाता हूँ मैं माँ-पा, आपके बीच में सोकर, मैं दिन-भर खूब हूँ भटका, आपकी याद में रोकर। नींद आती है..... कोई अपना नहीं है माँ, छोड़ कर तुम कहाँ चलदी, सुन लो पापा मेरे प्यारे, आपको भी थी क्या जल्दी। नींद आती है.... छोड़ा किसके सहारे माँ, बताओ मुझको ना पापा, रात वो थी बड़ी काली,

रसिक इंद्र-हास्य रस

#हास्य रस #रसिक इंद्र पहन गरारा नारदजी ने नृत्य सभा में कीन्हा, डोल गया दिल इंद्र का एक देख दुपट्टा झीना। नारद जी भी लजा -लजा कर घूँघट में मुस्काते, दिखा इंद्र को नई अदाएँ अपनी और रिझाते। थिरक रही नारद की काया,ज्यों नखरेली नार, देख हंसीं ठुमके नारद के इंद्र को आया प्यार। पीछे-पीछे डोल रहे मय की माया में खोय रहे, इंद्र छिछोरे हुए अप्सरा जान के आपा खोय रहे। इंद्राणी आ गई सभा में लेकर रंभा और शंभा, हुई शर्म से पानी-पानी देख के पति निकम्मा। झट-पट खींचा घूंघट नारद का,और देख मुस्काई, वाह्ह नारद बहुत खूब क्या लाज न तुमको आई। देख मिलीभगत दोनों की इंद्र हुए बैचन, लुटी इज्जत भरे बाजार न मिले किसी से नैन। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

दोहे-धरती

#धरती-दोहे कानन-नग-नदियाँ सभी,धरती के श्रृंगार। दोहन इनका कम करें,मानें सब उपहार।। अचला का मन अचल है,डिगे न छोटी बात। पर मानव का लोभ क्यों, छीन रहा सौगात।। देख धरा की ये दशा,पीर उठी मन माय। जख्म जिगर में देय के,कोय नहीं सुख पाय।। अपने ही समझे नहीं,माँ अपनी की पीर, लालच ने सबको किया,पापी-दुष्ट-अधीर।। माँ का छलनी मन किया,गहरे देकर घाव। संसाधन को ढूंढने,स्वयं डुबोते नाव। आज अगर हम सोच ले, ले लें गर संज्ञान, संग धरा के बची रहे,हर प्राणी की जान।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

दोहे-यादें

#स्मृति/यादें #दोहे अलबेली उस शाम की,ताजा है हर याद। संगम-साथी संग में, मीठा सा संवाद।। स्मृतियाँ मेरे मन बसी,ज्यों गुलदस्ते फ़ूल। महक मुझे हर फूल की,कभी न पाए भूल।। संगम था साहित्य का,हिल-मिल मिलते लोग, यादें ही बस शेष हैं,अजब-गजब संजोग।। खुशियों में डूबे सभी,उत्सव वाली रात। संग सजीली लाय हैं,यादों की सौगात।। संगम के आलोक में,डूबा था इंदौर। यादें ही बस रह गई,ताली का वो शोर।। भूल न पाएँगे कभी,साहित्य-गुम्फित शाम। कविताओं में है लिखा,संगम का ही नाम।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

लघुकथा-जीजी की ननद

#लघुकथा-जीजी की ननद हर तरफ रोने की आवाज...जया भी अपने होश खो बैठी थी...वो दीदी को चुप नहीं करवा पा रही थी बल्कि वो और उनका परिवार ही जया को चुप करवा रहा था...। जया अपनी जीजी की ननद की लाश पर लिपट गई उसे उनकी अप्रत्याशित मृत्यु पर विश्वास नहीं हो रहा था...।हमउम्र होने के कारण दोनों में पक्की दोस्ती थी.. जया की आँखों में पुराणी यादें नाचने लगी..जब भी दोनों मिलती बहुत मस्ती करती.. जया उनकी मौत का जिम्मेदार खुद को मान रही थी..उसे याद आया कि दीदी की ननद के बलिदान के कारण ही उसे वरुण जैसे जीवन साथी मिले.. उन्होंने अपने मेरी ख़ुशी के लिए अपने प्रेम का त्याग किया..और खुद ने ऐसे व्यक्ति से शादी की जिसके कारण आज उनके साथ ये हादसा हुआ... जया का रो-रो कर बुरा हाल था.... #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

वतन के वास्ते

#वतन के वास्ते.. वतन के नाम पर जीवन,तमाम रक्खा हुआ है हमने तो वतन का नाम ही,मुहब्बत रक्खा हुआ है। हर साँस से सदा आती है,मादरे वतन के लिए, वतन के नाम का कफन,बाँध के रक्खा हुआ है। शोलों से गुजरता हूँ रोज,वतन के वास्ते यारो, मैंने तो हथेली पे अपनी जान को रक्खा हुआ है। दुश्मन छू भी न सके, मेरे देश की सरहद को, उनकी मौत को हाथों में,थाम के रक्खा हुआ है। हो जाऊँ गर कुर्बान,सरहद पे अपने वतन की इस दोस्त तिरंगे को,सीने से लगा रक्खा हुआ है। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

अंशुमाली

#अंशुमाली सागर की कोख में जैसे 'अंशुमाली' हुए पैदा मध्य सागर के ये लगते झांककर देखते चेहरा। अंशु इनकी है हरती तम,नित ये होती है 'अभ्युदित', अपना विस्तार सागर में देख सूरज है ज्यों गर्वित। पर.... शांत हृदय पर सागर के, आघात मनुज हर देता है, फिर भी अपने हृदय का मोती,ये मानव को देता है। जग का मैल समेटे सागर , हुआ बड़ा बदरंग है, अमूल्य निधि का स्वामी ये,देख जहां को दंग है। हृदय में सागर के भी पलता, प्रेम नदी को पाने , अपनी बाँहें फैलाकर,करता है निवेदन प्रेम का। स्नेह-मिलन नदिया से करने,करता है सागर गर्जन, पवन के संग हिलोरें ले, सागर करता है पूरे जतन। ह्रदय से मोती-माणक ला,लहरों की बाँहें फैलाता, अंतर का गहरा अनुराग तभी,ज्वार सा छलक उठता। अपने शांत ह्रदय से ये दिनकर को पूजा करता है, कडवाहट अपनी धोने,बन ऊष्मा सा उड़ जाता है। सृष्टि का नियम निरंतर है,सागर के मन में आशा है, बहता ना वो तोड़ नियम,पर क्रोध सुनामी जैसा है। नदिया भी प्रीत में है पागल,आती इसके आलिंगन में, चंचल नदिया के जल को ये,जलधि भर लेता अंतर में। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

कहानी-भूख

#कहानी-भूख जिधर नजर दौड़ाओ हर तरफ हरियाली सीताफल,केले अमरुद ,आम के वृक्षों से हरित उड़ीसा का छोटा सा ग्राम। केशुभाई अपने छोटे से परिवार के साथ इसी गाँव में रहता था। केशू भाऊ साहब के बागों में रखवाली का काम करता था बदले में उसे दो वक्त धान मिल जाता जिससे आधा-अधूरा पेट भर जाता और पाँच सौ ₹ मासिक पगार भी मिलती । बीवी भी दो तीन घरों में साफ-सफाई और बर्तन धोने का काम करती ।थोड़े धान और कुछ पैसे वो भी कमा लेती । ऐसे ही गुजारा चल रहा था। लेकिन इस बार बारिश न के बराबर हुई बगीचों में ऐसा कुछ नहीं हुआ जिसकी रखवाली के भाऊ साहब को चौकीदार रखना पड़े और फसल अच्छी न होने के कारण केशू की बीवी को भी घरों में काम मिलना बंद हो गया। अब तो उनके खाने के लाले पड़ गए ,रात को रुखा -सूखा मिल जाता तो दिन को नहीं..दिन को खाया तो रात को नहीं।इस अकाल के समय सरकार अपनी तरफ से गरीबों के भोजन-पानी की व्यवस्था कर रही थी पर न जाने क्यों वो व्यवस्थाएँ वो भोजन गरीबों तक ही नहीं पहुँच पा रहा था।हरा-भरा गाँव सूखने लगा था..केशूभाई की गृहस्थी,बच्चे,पत्नी और खुद भी लगभग सूख ही गए। धीरे-धीरे पूरे गाँव में हड्डियों के

ममता

#ममता माँ को याद रहा तेरा रुदन, तेरा हँसना याद माँ करती है, तेरे बचपन की यादों में गुम माँ अश्रुधार छिपाती है। इस विटप की छाँव भी अब माँ के , ह्रदय को दग्ध ही करती है, कृश-काय हुई तेरी याद में माँ, तेरी राह रात-दिन तकती है। हृदय के द्वार खुले माँ के, ज्यों खुला पड़ा दरवाजा, जान बसा परदेस पूत, माँ कहे लाल घर आजा। माना तू नादान बहुत था, बहकावे से बहक गया , माँ का आँचल छिटक बता, तू किस दुनिया में भटक गया। आजा रे! नादान परिंदे, तोड़ के सारी कड़ियाँ, क्यों रोक ना पाई तुझको, माँ की प्रेम भरी हथकड़ियाँ। माँ की आँखों का पगले , गुम हुआ देख उजियाला, झुकी पीठ से राह तके, माँ का जी मतवाला। जीर्ण-शीर्ण से खंडहर सी बैठी माँ पथ में पुष्प बिछाने, छोड़ छलावे का जीवन, तुझ बिन ये महल हुए वीराने। #मौलिक #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

स्वावलंबन

स्वावलंबन शक्ति का अहसास स्वयं की, करते मनुज स्वावलंबी है। कर्त्तव्य के पथ पर अविरल बढ़ते,सदा मनुज स्वावलंबी है। नहीं किसी का मुँह तकते और,साहस रखते वो बढ़ने का। उद्देश्य को वो प्रवृत्त रहते, दृढ़ रहते मनुज स्वावलंबी है। हैं बाधाओं से वो लड़ते ,खुद ईश्वर उनके साथ सदा। आत्मविश्वास से अडिग सदा,रहते मनुज स्वावलंबी है। चरण पखारे लक्ष्मी माँ,सफलता उनको चुनती है, आत्मनिर्भर आत्मविश्वासी,होता जो मनुज स्वावलंबी है। राष्ट्र का बल है राष्ट्र का गौरव,द्वार उन्नति का खोलें , भुजाओं की ताकत अपनी,दिखलाता मनुज स्वावलंबी है। अंतर्निहित शक्तियों को,पहचान मनुज जो जाते हैं, कोष कुबेर का कर्मठ जन, पाते वो मनुज स्वावलंबी हैं।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

#विकास

#विकास 1. नेता ही गटका रहे,देखो मोटा माल। विकास को भटका रहे,बुरा देश का हाल।। 2.मनुज की मेहनत कभी,नहीं निरर्थक जाय। विकास का पहिया सदा,श्रम से घूमा जाय।। 3.आँखें मलता उठ खड़ा,देखो फिर ये जीव। बस्ता छोड़ निकल पड़ी, नव विकास की नींव।। 4.शिक्षा से इस देश में,नित-नित हुआ उजास। विकसित बचपन हो रहा,भर मन में विश्वास।। 5.दोष रहित गर सोच हो,विकसित होगा देश। द्वेष मनों से जब मिटे,स्नेहिल हो परिवेश।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

संस्मरण- डर के वो पल

#डर के वो पल बात उस दिन की है जब पतिदेव 5-6 दिन के ट्यूर के बाद दिल्ली से वापस आने वाले थे। अभी आधा घंटे पहले ही उनसे बात हुई थी। वो करोल बाग दिल्ली में बच्चों के लिए शापिंग करके वापस आए और थोड़ी देर बाद ट्रेन में बैठने के लिए कह रहे थे। मैंने भी सोचा कि अब उनको चंडीगढ़ पहुँचने में देर लगेगी सो खाना तो नहीं खाएँगे। अब खाना नहीं बनाना तो टी.वी ही देख लेते हैं,मैंने ज्यों ही टी.वी चलाया देख के घबराहट हो उठी । फटाफट मैंने मोबाइल उठाया और पतिदेव को लगाया। बहुत कोशिश की फोन नहीं लगा। इतने में नीचे के फ्लोर में रहने वाले मकान मालिक अंकल-आंटी आ गए और पतिदेव के बारे में पूछने लगे। फिर फोन लगाया फोन नहीं लगा..टी.वी पर दिल्ली में जगह-जगह बम-विस्फोट की घटना ..लाशें ...उफ्फ्फ। कभी नजरें टी.वी पर कभी हाथ और कान फोन पर ..इनका फोन नहीं लगा मुझे डर और घबराहट से रोना आ रहा था। अंकल -आंटी वहीँ बैठे मुझे इनके जल्दी आने की बात कह रहे थे। एक-डेढ़ घंटे के बाद इनका फोन आया पर कट गया पर इससे मेरी घबराहट और डर बढ़ गया। बच्चे भी पापा से बात करने के लिए रोने लगे। लगभग बीस-पच्चीस मिनिट बाद पतिदेव का फोन

कहानी-महत्वकांक्षा

#कहानी-महत्त्व़ाकांक्षा राजकीय अधिकारी हरिओम जी अपने नाम की भाँति हरि के बहुत ही भक्त बड़े भक्त थे। ईश्वर में अपार श्रद्धा के कारण वो यथासंभव मंदिर में दान किया करते थे। शांत चित्त सुलझे हुए व्यक्तित्व के हरिओम जी के दोनों बच्चे बहुत ही अच्छी विद्यालय में पढ़कर निकले। इतने अच्छे गुणों के होने पर भी उनकी अति महत्त्वाकांक्षी प्रवृति के कारण घर में हर कभी माहौल गरमा जाता था। वो चाहते थे कि उनके दोनों बेटे भी सरकारी अफसर बनें जबकि बच्चे निजी कंपनी में कार्य करने के इच्छुक थे। हरिओम जी जबरदस्ती अपनी महत्त्वकांक्षाओं का बोझ अपने बच्चों पर डालकर उन्हें सरकारी नौकरी की तैयारी करवाया करते थे। बिना मन से बच्चे परीक्षाएँ देते पर कहीं चयन नहीं हो पाता। इस कारण वे थोड़े चिड़चिड़े हो गए और बच्चों और पत्नी पर गुस्सा निकाला करते। इस कारण बच्चे भी अवसाद में रहने लगे। बच्चों की ये हालत देखकर हरिओम जी बड़े दुखी होते पर अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को नहीं त्यागना चाहते। एक दिन ऑफिस में नंदन जी की पुत्री के सरकारी अफसर बन पाने के पीछे का राज जानकर उन्होंने भी वही मार्ग अपनाने की सोची। विज्ञप्

तू माझी

#तू माझी तू माझी मैं पतवार पिया, मैं नाव तू खेवनहार, तुझ बिन सागर ये पार न हो , मैं मझधार तू तारनहार। तुझ से जुड़ी मेरी जीवन-नैया, जीवन का तू आधार। हो संग तेरे हर सुबह-शाम, है तुझसे मेरा संसार। अनमोल पिया जीवन के क्षण, तू प्रेम की मधुर बयार। बांधू कैसे आज समय को, ये बहता है बन नीर। प्रीत की साखी ये नदिया, है जल में भी संगीत, तेरे साथ का हर अहसास प्रिय, ज्यों है मादक गीत । है दूर क्षितिज में बदरा भी, बिजली को हृदय बसाए, उस पर्वत को भी देखो पिया, सब पे प्यार लुटाए, पर्वत का अंचल पाकर नदिया, कितनी है हर्षाय, मैं भी मांगूँ यही आज दुआ , ये पल कहीं बीत ना जाए। #सुनीता

तेरे बिन अधूरी

#तेरे बिन अधूरी है अधूरी तेरे बिन,मेरी ये काया। सोच सपने सुहाने ये मन मुस्कुराया जीवन में हर स्वप्न ,संग तेरे सजाया घनी धूप में तुम ही,हो मेरी छाया हर बुरे दौर में ,एक दूजे का साया तेरे साथ मिल,फर्ज हर है निभाया। तुम्ही ने मुझे 'रस्ता' सीधा सुझाया भी कहने दो ,मौका है आया मैं सबसे सुखी 'राज' ,तुमको जो पाया मैं जो रूठी तुम्हीं ने है मुझको मनाया। शरमा के मन ,पुष्प सा है मेरा मुस्कुराया न मन में कोई गम ,न डर भी समाया मैं बैठी हूँ 'निर्भय',जो तुम मेरा साया एक हँसी पे ,हर सुख था लुटाया मुझको कहने दो.. तुम बिन है आधी सी काय मैं तो भोली थी, जीना तुमने सिखाया असली संसार से,तुमने मुझको मिलाया आज बैठी तेरे साथ, गर्व मुझमे समाया तुम्ही 'प्राण' मेरे...'प्रिया ' तुमने बनाया कैसे भूलूंगी तूने ,हर वादा निभाया, राह काँटों की पे फूल, तूने बिछाया। मेरी खुशियों का हर 'राज'तुम मे

विज्ञान-मनहर घनाक्षरी

मनहर घनाक्षरी #विज्ञान 8,8,8,7 पर यति 31 वर्ण, अंत गुरु एक कोशिश.... हर पथ पर बढ़ा, विज्ञान रथ पे चढ़ा मनुज आगे है बढ़ा, बिज्ञान भाग्य लिखे। सीधा बड़ा मनुष्य है सुलझा रहा रहस्य है, सच्चे साथी सदृश्य है, विज्ञान ज्ञान सीखें। अनूप रूप शक्ति सा, है ठंडी छाँव धूप सा। रोद्र शिव स्वरूप सा, अद्भुत ज्ञान देखें। धार ज्यों तलवार है, तेज ज्यों तलवार है। ये उन्नति का द्वार है, विशिष्ट ज्ञान सीखें। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

₹रंगों का संसार

रंगों का संसार हजारों रंग बिखरे हैं जमीं से आसमां तक, मिलन धरती गगन का रंग दिखलाते हैं नटखट। उमड़ती है लहर चंचल निकल सागर के दिल से, जमीं सूखी हुई खुश आज फिर सागर से मिलके। आसमां ज्यों जमीं की गोद में सर को झुकाए, जमीं खुश है गगन की प्रीत को मन में छुपाए। मिलन का गीत गुनगुना रही सागर की लहरें, मचलती तोड़ने प्राचीर और दुनिया के पहरे। पाषण भी खंडित हुआ लहरों से मिलके, यही लहरें छिपा रखती हैं,तूफां अपने दिल के।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

कह मुकरी

#कह मुकरी वो आवे मन हर्षावे, मन में सखी मेरे नाचे मोर, भावे जिया को उसका शोर। ऐ सखी साजन...ना सखी बादल। वो आवे मन डर जावे, तन काँपे ना निकले बोल, मन में चलते कितने बोल। क्यों सखी साजन.....न सखी चोर। वो आवे जीना दुश्वार, नींद ना आवै जाये चैन करार आँखें भी करें उसका बखान, ऐ सखी साजन......न सखी बुखार। वो छुए तो तन सिहर उठे, प्यास जिया की बुझ जाए, मन में आवै एक संतोष, क्यों सखी साजन......ना सखी पानी। वो छू ले तो अगन लगे, तन बदन में जलन लगे अपने ताप से कर दे खाक। ऐ सखी साजन...ना सखी आग। # #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

यज्ञ

#-यज्ञ मन पावन मन की इच्छाएँ, मन के धुलते कपट-क्लेश, 'यज्ञ' में जल जाते मानव के, पाप और आपस के द्वेष। मात-तात सा आराधक कोई, नहीं उपासक धरती पर, अखंड 'यज्ञ' करते हित-संतति, हवन की भाँति खुद जलकर। वैराग्य वृत्ति वाला परिमल, वो छोड़ पुष्प उत्सुक होकर, 'यज्ञ' देशहित करते नित, सीमा पर लाल खड़े होकर। आत्मविस्मृत-आत्मतेज से, भुजबल से आलौकिक होकर, 'यज्ञ' वो करते बोझा ढोकर , धूप में जल दिनभर खपकर। उदात्त-ह्रदय सरित्पति सम, स्निग्ध-शांत सुंदर वाणी, शिक्षा 'यज्ञ' में डाल रहे हैं, समिधाएँ गुरुवर पाणि। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

#उलझन

#उलझन मन में उलझन कृष्ण है, और गहरा अंतर्द्वंद, मूरत तेरी को छोड़ कन्हैया, क्या करलूँ आँखें बंद। कान्हा तेरा नाम जपूँ, दुनिया को आए न रास, उलझन में बन मीरा बन भटकूँ , मोहे है तुझसे ही आस। नाम तेरी की दीवानी, रटती हूँ सुबहा-शाम, निश्छल निर्मल मेरा मन, उलझन में भगवान। सास-ननदिया ताने मारे, जग करता बदनाम, पति ने मुख मोसे कान्हा मोड़ा, उलझन ये हरो घनश्याम। #स्वरचित #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

हरिवंश राय बच्चन

#हरिवंश राय बच्चन सन सत्ताइस के शुभ दिवस, चमका एक सितारा था, ये जग उसको प्यारा था, वो जग का राज दुलारा था। मन में उपजे उन्माद विकट कवि छायावादी हुए प्रकट लेकर कविता में तरुणाई, हाला भी निकल बाहर आई। अलंकार कुछ अधिक हुए, वो 'पदम्' झुका पाकर के पद्म। विद्या का दान महान कहा, आचरण न रखा कभी छद्म। वो कोटर का नन्हा पंछी कभी न टूटा तूफानों से, साथी पंछी राह में छूटा, फिर खड़े हुए लड़ बाधा से। खुद न कभी छलकाए जाम, जग को दिखाया हाला धाम। औरों के जीवन में ज्योति, भरने की कसम खा बैठे थे, राह पथिक को दिखलाने, खुद बनके सितारा बैठे थे। पाकर के वो 'अमित-अजित' तनय हर्षाए हुए धन्य-धन्य। #सुनीता बिश्नोलिया

सूर्योदय

#सूर्योदय भानू है ज्यों कनक-घट, राही हैं हम गए ठिठक, स्वर्ण सी ये रश्मियाँ, आच्छादित धरा घने विटप। क्षितिज में प्रतीत है उदित, उत्तरोत्तर ताप अपरिमित, अभिभूत है नयन सभी, दिनकर को देख अवतरित। अद्घोषक उषा काल का, अंशुमाली आ रहा है, विचरण करे गगन में ये, सृष्टि को जगा रहे। पथिक हैं पथ पर खड़े, सूर्य -रोशनी पाकर बढ़े, माना घना ये ताप है, राह सूरज दिखाता आप है। नयनाभिराम दृश्य को,दृग , दृग भर रहे नयन में हैं, दर्शनीय सूर्य-रश्मियाँ, आह्लाद सबके मन में है। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

माँ

#माँ जीवन झोंका चूल्हे में, चक्की के पाटों बीच फँसी, सामंजस्य माँ का देखो, मुश्किल सहकर भी रोज हँसी। फूँक-फूँक कर चूल्हे को, आँखें अविरल बहती हैं, लेकिन मेरी माँ हाथों से चक्की, पीस के भी हर्षाती हैं। हर दाने के साथ श्वेद की, बूँदें माँ की बहती हैं, चुपचाप मेरी माँ चक्की पर व्यायाम नियम से करतीं हैं। होले से माँ के मुख से, कुछ शब्द बहा करते हैं, संगीत घर्र-घर्र चक्की के, दो पाट दिया करते हैं। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

पन्नाधाय की ममता

#माँ की ममता (वात्सल्य रस) राजस्थान में की वीरमाता पन्ना धाय ने राणा उदयसिंह को बचाने के लिए अपने पुत्र का बलिदान दे दिया था...उसी पर आधारित मेरी राजस्थानी भाषा में लिखी गई कविता...तथा ..पुन:हिंदी में लिखित यही कविता... ( कालजे की कोर नै माता, देख-देख मुस्कावै है, छाती सूँ दूध री नदी बहवै,टाबर सूँ जद बतलावै है। कान्हा की सी देख के सूरत,या माता यूँ इतरावै है, सोच काल री बात या माता, आँख्यां मैं आँसू ल्यावै है। फर्ज पै वारण जाती माँ ,उनै हिवड़ा से चिपकावै है, एक रात रै खातिर 'दीप' जल्यो,वोअब बुझण नै जावै है। लाड लड़ावै घणा बावली, बलिदान करण नै जावै प्रेम रो सागर छलकाती,जीवण भर रो नेह लुटावै * * * * * * * यूँ ही नहीं संसार में, माँ को पूजा जाता है विपदा में मुख पे नाम प्रथम, माँ ही का तो आता है। मन की बात बताउंगी,एक भूली कथा सुनाऊंगी, पुत्र को धर्म पे किया अर्पण,उस धर्मा की बात बताऊँगी। जौहर की गाथा याद हमें मीरा के पद भी ना भूले, पुन:स्मृति में भरलो,पन्नाधाय को जो थे भूल चले। अपने ह्रदय के टुकड़े को माँ,देख-देख मु

मेरी माँ

# मेरी माँ वो दिन मैं ना भूल सकूंगी,जब माँ से लम्बी बात हुई, माँ ने जो ना कभी कही थी, क्यों वो हर एक बात कही। माँ ने मुझसे कहा फ़ोन पर ,जल्दी मिलने को आ जाना, याद बहुत आती है बेटी,मुँह अपना दिखला जाना। दूर बहुत बैठी है मुझसे, हो गयी बड़ी मैंने माना, अपने हर एक काम को बेटा,सदा यूँ ही करते जाना। पर बिटिया मेरी मिलने मुझसे , जल्दी से तुम आ जाना साथ मेरे नाती-नातिन को,भी तुम जरुर से ले आना। ऐसा माँ ना कहती थी, पर प्यार मुझे बहुत करती थी, वो चाहती थीं बेटी मेरी ,अपने घर में ही सुखी रहे,। अपनी सुविधा से आकर ,उनसे मिलती जुलती सदा रहे। बच्चों की थी तभी परीक्षा, माँ को मैंने समझाया था, ये सुनकर भी माँ ने मुझको,जल्दी आने को मनाया था। उस दिन माँ ने मिलने की ,इतनी जिद कर डाली थी, मैं भी दस दिनों के बाद उनसे मिलने को मानी थी। नहीं पता था माँ से मेरी ,ये थी अंतिम बात, माँ मेरी मुझे नहीं मिलेंगी, फिर न होगा उनका साथ। माँ का साया हमसे छीना ,उफ़ निर्मम ह्रदयाघात, यही थी माँ से मेरी लंबी, और अंतिम बात। काश! मैं उस दिन आ जाती ,माँ की गोदी में सो जाती

दोहे-गर्मी

#दोहे-गर्मी/ग्रीष्म गरमी में जियरा जले, माथे टपके श्वेद। पेड़ ठूँठ बन हैं खड़े, अब क्या करना खेद।। जी अलसा तन झुलसिया,लू भी चलती जोर। मनवा को चैना नहीं , तपे धरा हर ओर।। कहता तरु मुसकाय के,आ रे मानस पास। गरमी ही बतलायगी,मैं भी हूँ कुछ खास।। भरा ताल ज्यों सड़क पे,मनवा भी भरमाय। बिन बादल ही रे मना,ये गरमी नहलाय।। तपती धरती पर तपे,कई जले दिन रैन, बेघर खटते ताप में,सुने गरम वो बैन।। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

दोहे-बरसात

#दोहे-बरसात धरती का भी जल रहा,कोमल-कंचन गात, बदरा-बरसो आन के,शीतल हो धरती मात। हलवाहे खेतों चले,रिमझिम बरखा होय, बरखा की बौछार से,मनवा खिल-खिल जाय। सोया नन्हा बीज था,सूखे खेतों माय, बारिश अंग लगाय के, रहा बीज मुस्काय। मयुरा कूके बाग में,देख घटा घनघोर, बरसी बूंदे प्रेम की, मयुरा हुआ विभोर। छलक उठा दिल बांध का,बरसे जो घन श्याम, हरियाली वसुधा हुई,बारिश का अंजाम। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

मुक्तक

#मुक्तक (मात्रा भार-30) जो अपने हाथ के छाले,अपनी किस्मत समझता है, इन्हीं हाथों से जगति का,वो सुंदर गान लिखता है, खड़े पर्वत भी राहों से,हटते हैं देखकर उसको,। उसी दिलदार फक्कड़ को,जमाना मजदूर कहता है। 2.वो पत्थर तोड़कर अपनी सोई किस्मत जगाता है, पीठ पे बोझा ढो कर भी,गीत खुशियों के गाता है, नहीं डरता ज़माने से,नहीं डरता वो मेहनत से, अपने हाथों से राहों के पर्वतों को गिराता है। 3.प्यार गहरा उमड़ता है,पर जताया वो नहीं करता, ख़ुशी और गम में भी आँसू बहाया वो नहीं करता। #पिता हस्ती ही है ऐसी बराबर ना कोई जिसके, अपनी संतान के सपने पूरे जी जान से करता । #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

#बोलिए

#काफिया-आम #रदीफ- बोलिये लगता है आज इंसा का,क्यों दाम बोलिये, चाहते हैं क्यों हर बार सब,ईनाम बोलिये। बोली लगाते फिर रहे, इंसान हर तरफ, क्या हो रहा है देश का,अंजाम बोलिये। बाड़े में बंद ज्यों भेड़ हों,ये हाल हर तरफ, मतलब परस्त जहान का, ये काम बोलिये। खुदगर्ज हर कोई है ,ज़माने में हर तरफ, चाहता है आज हर कोई,सलाम बोलिये। बदली है आज चाल भी,सबकी हर तरफ, मंजिल की न खबर है किसे,बिन मुकाम बोलिये। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

कुंडलिया

#कुंडलिया बिन मौसम बरसात के,बुरा देश का हाल। मरते-रोते लोग हैं,मस्त जगत की चाल।। मस्त जगत की चाल,जगत डूबा है मद में। रहे ख़ुशी से झूम,सभी हैं ऊँचे कद में।। कहती 'सुनीति' सुनो ,बिताते मस्ती में दिन। हुआ चमन वीरान,देख बरखा मौसम बिन।। सुनीता बिश्नोलिया जयपुर

सपने भी सच होते हैं

#सपने सच होते हैं सुना मैंने ज़माने से कि सपने सच नहीं होते, जमाना कहता है क्यों ऐसा,कोई अपने नहीं होते। जरा आओ मेरे साथी कि आँखें फाड़ के देखो, ये बादल घर में आ बैठे, जमीं पे जो नहीं होते। तपती है रेत धोरों में जलती अंगार सी साथी, प्रहरी सीमा पे हरदम ही होते या नहीं होते। दो मीठे बोल ऐ! साथी जरा दुश्मन को भी कह दे, उसकी आँख में आँसू होते या नहीं होते। दिल.. से अगर मानो, अपना साथी किसी को तुम, तेरी मुश्किल में हरदम वो, साथ होते या नहीं होते। अपने हाथों को हरदम तुम,सच्चा साथी समझ लेना, तेरी मेहनत से फिर सपने,सच होते या नहीं होते। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

दर्द

#कहानी #दर्द साधारण किसान गोपाल अपने बुजुर्ग माता-पिता के साथ सांवली गाँव में रहता था। खेत में रखवाली करते समय पिता जी को गाय ने सींग मारकर घायल कर दिया।तब मुश्किल से उनकी जान बची पर बिस्तर पकड लिया। गोपाल को उच्च शिक्षा दिलाने की इच्छा अधूरी रह गई। अनपढ़ माँ खेतीबाड़ी के काम में साथ देने के अलावा अन्य कार्य नहीं कर सकती थी।पिता का उसे न पढ़ा पाने का दर्द गोपाल महसूस कर सकता था। खेतों में काम करते हुए कैसे-जैसे उसने बारहवीं कक्षा पास कर घर की सारी जिम्मेदारी संभाल ली। सारे गाँव वाले गोपाल की तारीफ करते और अपने बच्चों को उसका उदाहरण देते। खेत में बीज,उत्पादन क्षमता बढ़ाने,ऋण या अनाज बेचने संबंधी हर सलाह गाँव वाले गोपाल से ही लिया करते। खाली समय में वो अपने फोन से विभिन्न जानकारियाँ जुटाता और गाँव वालों को दिया करता। अब ऐसे गुणी लड़के को लडकियों की क्या कमी। दूर-दूर से रिश्ते आते थे।पर रामखिलावन चाचा तो गोपाल को कब से अपने दामाद के रूप में देखते थे। वो जानते थे कि कविता और गोपाल भी एक-दूसरे को पसंद करते थे। इसलिए मौका देखकर उन्होंने गोपाल के माता-पिता से मिलकर शादी की बात की औ

#हादसा-हास्य

#हादसा हादसा भी तो हमारे जीवन का बन गया हैं हिस्सा, ये हक़ीकत है दोस्तों न समझो इसे तुम किस्सा। पहले हादसे की शुरुआत तो घर से ही जो गई, हमारे खर्राटों की वजह से ,श्रीमती जी की नींद टूट गई। हमारे घर में चलती मैडम की ही मर्जी है बात मनवाने के लिए देनी पड़ती उनको अर्जी है। माना कि मन सुबह-सुबह मेरा चाय का प्यासा है, मिल गई तो ठीक वरना ये भी मेरे साथ एक हादसा है। अल सुबह घर में युद्ध के बादल घिरे हुए हैं, हम भी 'हादसा' होने से पहले ही डरे हुए हैं। पता है हमें कि एक बार तो टक्कर खाएँगे, अब तो काम पे निकलते हैं वरना अब चक्कर ही आएँगे। लगता है आज हमने खुद हादसों को घर बुलाया है, तभी तो 1990 वाले स्कूटर को पंचर पाया है। सोचा अब तो पैदल जाने में ही है भलाई, वरना बोस की कडक आवाज भी देगी सुनाई। इतने में भागता हुआ,माँ का जासूस आया, और हमारा लगभग फटा हुआ खाली बटुआ हमें थमाया। जरा सी दूर ही पहुचे थे कि झमा-झम बारिश होने लगी, अब तो समय से ना पहुँच पाने के डर से आत्मा हमरी रोने लगी। अचानक एक ऑटो वाले को हम पर तरस आया, जानकार होने के कारण पास आकर ऑटो लगाया। हमने खुले पैसे ना होने क

#अत्याचार

#अत्याचार सहमे-सहमे लोग दिखें,होता जहाँ व्यभिचार, डाल रखा डेरा निश्चित,है वो #अत्याचार। विस्तृत है इतिहास देश में,अत्याचारी लोगों का, करते हँसी का सौदा और मजा उठाते भोगों का। कंस और रावण सबसे हैं,इस पंक्ति में आगे, इनके अत्याचारों से,त्रस्त मनुज थे भागे। बहन देवकी को न बख्शा,उस निर्मोही शासक ने, एक-एक छीना संतानों को,अत्याचारी शोषक ने। गोकुल के हर जन पर डाला,अत्याचार का जाल, हर घर का छीना उजियारा और हर नन्हा बाल। निरीह प्रजा पर रावण ने भी घोर किया था अत्याचार, दुष्ट दानवों को सिखलाया,उसने ही पापाचार। विरह-वेदना दे सीता को,दुष्ट था वो मुस्काया, देख बिलखती सीता को,उसने अट्टहास लगाया। मुगलों ने भी भारत भू का,लूटा वैभव सारा, निर्दोष बिलखती जनता को,था अत्याचार से मारा। अंग्रेजों का हुआ देश में,पिछले दरवाजे आना, निर्मोही उस शासन ने,था चैन देश का छीना। खून पसीना हम थे बहाते और मलाई वो खा जाते आवाज कभी उठ जाती तो दमन-चक्र उनके चल जाते। ओरंगजेब-अन्यायी ने,देश में करने को अधिकार, घोर किए जनता पर उसने,निर्मम अत्याचार। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

उल्लास-कृष्ण जन्म--दोहे

‌#उल्लास ‌कृष्ण जन्म उल्लास में,डूबा गोकुल ग्राम। ‌आँसू बहते आँख से,माता के अविराम।। ‌ ‌कान्हा झूले पालने, माँ मन में हर्षाय, ‌नजर न मोहन को लगे,कजरा मात लगाय।। ‌ ‌देख शरारत कान्ह की,मात-पिता मुसकाय। ‌नन्द-यशोदा की ख़ुशी,नयनों में दिख जाय।। ‌ ‌तुतली बोली कृष्ण की,माँ को रही रिझात। ‌उमड़ रहा उल्लास जो,आँचल नहीं समात।। ‌ ‌मोहन माखन-मोद में,भर लीन्हों मुख माय। ‌मात यशोदा जो कहे,कान्हा मुख न दिखाय।। ‌ ‌कान्हा ने उल्लास में,सखियन चीर छुपाय । ‌सखियाँ रूठी कृष्ण से,नटखट वो मुसकाय।। ‌ ‌कृष्ण सामने जान के,सखियाँ ख़ुशी मनाय। ‌सुन मुरली घनश्याम की, सुध-बुध भूली जांय।। ‌ ‌कान्हा लेकर साथ में,ग्वाल-बाल की फ़ौज। ‌मन में भर उल्लास वो,करते कानन मौज।। ‌#सुनीता बिश्नोलिया ‌#जयपुर ‌ ‌ ‌ ‌ ‌ ‌

मोल-भाव--दोहे

#मोलभाव--दोहे मोल-भाव का चल रहा,देखो कारोबार। छिपे हुए हैं संत की,पहने खाल सियार।। मोल -भाव ही रह गया,अंतिम अब हथियार। जनता खोकर वोट भी, बैठी है लाचार।। गद्दी खातिर हो रहा,जग में हाहाकार। आम जनों से छिन गए,क्यों उनके अधिकार।। मोल-भाव मत कीजिए,रिश्ते हैं अनमोल। दौलत से भी हैं बड़े,रिश्ते तुले न तौल।। पैसों से मिलती नहीं,दुनिया में हर चीज। मोल-भाव मत कर मना,प्रेम-प्रीत का बीज।। शिक्षा का भी हो रहा,मोल-भाव जग माय। सच्चे गुरुवर है कहाँ,शिष्य कहाँ मिल पाय।। छुप-छुप छलिया कर रहे,शादी का व्यापार, मोल-भाव तय हो गया,तब रिश्ता स्वीकार।। मोल-भाव हैं कर रही,सखियाँ बीच बजार, बोल न पावे बीच में,दिखते सब लाचार।। #स्वरचित #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

पानी--हाइकु

#पानी (हाइकु) छोटी कहानी       नत हो निरंतर बहता पानी                                    जीवन दाता                        जल मन भरता,                                        देह निर्माता सूखा आँगन       है बिन जल सूना जल से गूँजे।                              रूठे मनावै                                         दृग जल बरसे                                 आस जगावे           नदिया पानी मन प्यास बुझावै                यही डुबोये                                          शीतल पानी                                                  बहता पल-पल                                           चंचल जल      ठंडा सा सोता                निर्मल सा निर्झर       जल भण्डार                                            प्यारे से पल                                                  नयनों का निर्झर                                            होता सजल    चंचल नदी            बहती अविरल जल से भरी।                                            पानी की काया