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युवाओं में आक्रोश कम करने के लिए जरूरत है स्वस्थ एवं पोषक वातावरण की

  युवाओं में आक्रोश कम करने के लिए जरूरत है स्वस्थ एवं पोषक वातावरण की            स्कूल हो अथवा कॉलेज, बीच बाज़ार  हो या घर, युवा चाहे शहरी हो अथवा ग्रामीण। गुस्सा और आक्रोश उसके नाक पर बैठा रहता है। छोटी छोटी बातों में लड़ने-झगड़ने को आतुर है आज का युवा। युवाओं में बढ़ता आक्रोश और हिंसा की प्रवृत्ति  किसी एक क्षेत्र या एक देश की समस्या नहीं।              यह विश्वव्यापी समस्या रूपी नाग हर देश के युवाओं को अपने पाश में जकड़ कर सरकारी संपत्ति  को नुकसान पहुँचाते हुए कभी भड़काऊ भाषणों से,मारपीट,आगजनी और कभी हथियारों से विष उगल रहा है।   इसका ताजा उदाहरण है अमेरीका के टेक्सास में एक युवा का पाशविक रूप।   ये विचारणीय है कि माता-पिता के पास न रहकर दादी की परवरिश में रहने वाला युवा भला इतना हिंसक कैसे हो गया । क्या ये माता - पिता के दिए संस्कार थे..? या दादी के पालन-पोषण में कमी थी ?     तो क्या उन्नीस मासूम बच्चों तथा अपनी दादी एवं दो अध्यापिकाओं का हत्यारा युवक मानसिक रोगी था? या अपनी जीवनशैली पर महिला मित्रों की टिप्पणियां नहीं झेल पाया।     ऎसा