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इमली का बूटा

   इमली का बूटा...      इमली... नाम सुनते ही आ गया ना मुँह में पानी। मुँह में पानी तो मेरे भी आ गया पर मुझे तो इमली की कहानी ही कहनी है तो संभालना पड़ेगा अपने आपको।      हाँ तो यहाँ मैं बात करने वाली हूँ इमली की.. नहीं.. नहीं सिर्फ इमली नहीं इमली के पेड़ की। इमली का पेड़ हाँ भई बहुत ऊँचा और घना पेड़ होता है इमली का।मुझे इमली का पेड़ बहुत पसंद है क्योंकि बचपन से ही देखते आई हूँ इमली के पेड़ को।     सीकर में देवीपुरा में हनुमान जी का बहुत ही भव्य मंदिर है। ये मंदिर देवीपुरा बालाजी के नाम से प्रसिद्ध है।    पिताजी बालाजी के पक्के भक्त थे इसलिए वो इस मंदिर में रोज जाया करते थे इसलिए हम भी कभी- कभी उनकी उंगली पकड़ कर उनके साथ चले जाते थे।      पिताजी के साथ हमारे मंदिर जाने का कारण हमारी भगवान में आस्था कतई नहीं थी।    हमारी आस्था का केंद्र था मंदिर में खड़ा इमली का पेड़। जिसकी सघन शाखाओं पर पक्षी किलोल करते तो हम बच्चे मुँह में पानी भरे एक दूसरे को उसकी शाखाओं से लटकती कच्ची-पक्की  लटकती इमलियां दिखाने के लिए आँखें गोल-गोल करते।