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नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं Happy New Year 2021

नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं   नए वर्ष के आगमन का  शोर है माना निशा के बाद में नवभोर है। हर तरफ़ फैली हुई हैं व्याधियां,   ले उड़े ना हमको काली आँधियाँ।।  देखना कुछ, पीछे छूटा था कहीं,   मन बैठा होगा,आज भी फिर से वहीं, याद रख,मत भूलना जख्मों को तू पहचान दुनिया में,तेरे अपनों को तू।।   नीर शीतल, मेघ की सौगात है,  पहचान तुझमें भी,खास कुछ बात हैं,  तेज़ है तूफान, तीखी धार है,  थाम कर रखना तुम्हें पतवार है ।। रास्तों में गूंजते, आह्वान हैं,  मत भूल तेरा,देश से ही मान है,  मुश्किलों में,  गीत गा तू प्रीत के,  तुम बाद में लिखना,तराने जीत के।।  कर्म से ही जीत,  तय होती है सुन-  कर्म ना छूटे, राह तू ऐसी  चुन।  नए वर्ष के आगमन का  शोर है आती निशा के बाद में नवभोर है।। सुनीता बिश्नोलिया ©®

प्रतियोगिता

सुप्रभात सोनचिरैया मैंने जीना सीख लिया - कहानी संघर्ष - कहानी अपनी-अपनी भेड़ों को लेकर साथ-साथ चलते गड़रिये नहीं हांकते,नहीं रोकते थे दूसरे झुंड में जाती भेड़ों को लौट आने के विश्वास से । रल-मिल कर एक-दूसरे के झुंड में उछलती-कूदती भेड़ें  आगे निकलने की होड़ के बिना चलती थी साथ-साथ । नहीं चाटती थी हाथ गड़रिये के ज्यादा घास पाने के लालच में छोड़ देती थी घास भी अपने हिस्से का दूसरे झुंड की भेड़ के लिए। गड़रिये भी बातें करते पेड़ों,पहाड़ों,मैदानों से और खेलते थे मिट्टी में लोट-लोट कर। प्याज-लहसुन के साथ खा लिया करते थे पोटली में बंधी रोटी। और गढ़-गढ़कर गीत गाते हुए बिता देते थे दिन हँसते हुए । साँझ होते ही लौट आती थी हर भेड़ अपने झुंड में पास अपने संगी-साथियों के । आज नहीं दिखती मिट्टी, मैदान, लौटने के लिए, प्याज,लहसुन और इतनी सयानी भेड़ें, गड़रिये और विश्वास। इंसान है जिसे भेड़चाल पसंद नहीं विश्वास,त्याग और प्रेम की.. बस ललक है आगे बढ़ने की कुचलते हुए इंसान को । सुनीता बिश्नोलिया ©®

नौसेना दिवस

नमन देश के नौजवानों को है  चीर देते हैं सागर का सीना भी वो,  हौंसला उनका गहरा है सागर से भी  नाप लेते हैं गहराई जलधि की वो  हाथ में प्राण लेकर के चलते चलें  और हँसते हुए जान दे देते हैं केसरी रंग उनके लहू का ही है  ख़ुद तिरंगे की है शान कहलाते वो। सुनीता बिश्नोलिया ©®

सुप्रभात

सुप्रभात सुप्रभात सुप्रभात  उठ जाओ बटोही लो सुबह हुई  रात बीती अँधेरी रोशनी अब हुई,  राह पर चल पड़ो रवि कहता तुम्हें मत रुको मंज़िलें अब तुम्हारी हुई।। सुनीता बिश्नोलिया © ®

जय हनुमान 🙏🙏

अंजना का लाल-लाली,                        सूर्य की से खेलता, चंचल-चपल-नादान बालक,                     ' राम' धुन में डोलता। दिव्य लेकर जन्म 'भक्त'                  हनुमान ने हुँकार की, संसार को भय-मुक्त कीन्हा,                 जगत ने जयकार की। वीर वो महावीर तब,            मोह राम के में पड़ गया, चरणों में पाने को जगह,             विपदा से हनुमत भिड़ गया। सागर को समझा तुच्छ ,               उसके पार 'बजरंगी' चला, पवन का वो पुत्र बाला,               पवन से भी द्रुत उड़ा। स्वर्ण-नगरी में पहुँच                हनुमत न खोया चमक में, माँ से मिला देने वो भगवन                     के संदेश के संकल्प में। वाटिका में देख माता को,                 को ह्रदय पुलकित हुआ, पर देख माता की दशा,                  संताप में वो भर उठा। देख कर चूड़ामणि ,                माँ को हुआ विश्वास अब, है श्री राम का ही दूत वानर,                 संशय मिटे माता के सब। रोक पाया न उन्हें,              निशिचर कोई भी लंक का, क्षुब्धा की तृप्ति की फलों से,                आशीष ले माँ अ