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नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं Happy New year

नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏🌼🌼 चलो भूलकर बीती बातें  नए तराने गाएं हम  नए वर्ष की नई सुबह में  हमने मन को बहलाया हाँ भूलेंगे उनको हम  जिनसे धोखा खाया  उनकी बातें मगर सुनेंगे  हृदय छिपाकर अपना ग़म  चलो भूलकर बीती बातें नए तराने गाएं हम।  बदलेंगे पत्ते तरुवर  अपना लिबास वो बदलेंगे  आज हमें कल किसी ओर को  चादर छल की वो सौंपेंगे दूर रहें उन खु़दगर्जों से किस्सा करदें यहीं खतम चलो भूलकर बीती बातें नए तराने गाएं हम।  उनके मनके भंवरे की  गुनगुन गुंजार भी गूंजे तो नए वर्ष में उस भंवरे की  बातों में ना जाना खो  हर डाली हर पुष्प पे साथी  बैठा होगा वो हरदम  चलो भूलकर बीती बातें नए तराने गाएं हम।  सुनीता बिश्नोलिया

स्वच्छ जयपुर - जयपुर स्थापना दिवस

स्वच्छ जयपुर "स्वच्छ नीर हो,स्वच्छ धरा हो, स्वच्छ हो नील गगन, स्वच्छ रहे धरती धोरों की,मिलकर करें समर्पण",। स्वच्छ हो ये शहर,स्वच्छ इसकी  डगर आओ श्रम  दान दें सभी,कस लें अब कमर, छोड़ो मत तुम कसर,...स्वच्छ हो ये शहर.., अरावली के अंक में ,किल्लोल करता जल महल, दर्प जयगढ़, नाहर गढ़,है मुकुट सम हवा महल, जय जय सवाई जयसिंह,जय आमेर का महल, ये जंतर -मंतर स्वच्छ हो,चलो कर दें हम पहल, फिर गुलाबी रंग इसका,हर तरफ बिखरे  विश्व में बन मोती माणक ,इस  मुकुट की छटा निखरे आओ मिलकर खाएं ये कसम, दर्पण सा हो शहर  आओ  श्रमदान दें सभी,कस लें अब कमर छोड़ो मत तुम कसर ,छोड़ो मत.... स्वच्छता के  तराने मिल के हम  गाएँगे , इस गुलाबी सुमन को और महकाएँगे। सुनीता बिश्नोलिया जयपुर

यह दंतुरित मुस्कान - नागार्जुन

  यह दंतुरित मुस्कान-नागार्जुन    तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान मृतक में भी डाल देगी जान धूली-धूसर तुम्हारे ये गात छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात परस पाकर तुम्हारी ही प्राण, पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल बाँस था कि बबूल? तुम मुझे पाए नहीं पहचान? देखते ही रहोगे अनिमेष! थक गए हो? आँख लूँ मैं फेर? क्या हुआ यदि हो सके परिचित न पहली बार? यदि तुम्हारी माँ न माध्यम बनी होगी आज मैं न सकता देख मैं न पाता जान तुम्हारी यह दंतुरित मुस्कान धन्य तुम, माँ भी तुम्‍हारी धन्य! चिर प्रवासी मैं इतर, मैं अन्य! इस अतिथि से प्रिय क्या रहा तम्हारा संपर्क उँगलियाँ माँ की कराती रही मधुपर्क देखते तुम इधर कनखी मार और होतीं जब कि आँखे चार तब तुम्हारी दंतुरित मुस्कान लगती बड़ी ही छविमान! यह दंतुरित मुस्कान-नागार्जुन            जनकवि नागार्जुन द्वारा लिखित इस       कविता में छोटे बच्चे की मनोहारी मुस्कान देखकर कवि के मन में जो भाव उमङते है,उन्हीं भावों को कवि ने इस कविता में अनेक बिम्बों के माध्यम से प्रकट किया है।    कवि का मानना है कि छोटे बच्च

वीना चौहान - साहित्य को समर्पित 💐💐जन्मदिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं वीना दी 🎂🎂💐🎂💐🎂

जन्मदिन की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं वीना दी 🎂🎂💐🎂💐🎂 कहती हैं सूरज की किरणें                     कर खुद पर विश्वास।          हारेगा सौ बार मनुज,                  मत छोड़ जीत की आस।।     "मंजिलें नेक हों तो सपने भी साकार होते हैं,     अरे सच्ची लगन हो तो रास्ते आसां होते हैं।"        जी हाँ बिल्कुल ये सही कहा है किसी ने        क्योंकि कार्य करने की ललक और हिम्मत भी व्यक्ति जुटा लेता है पर उद्देश्य स्पष्ट ना होने के कारण व्यक्ति असफल भी हो सकता है। किंतु कार्य अगर लोक कल्याण का हो और इसी जन कल्याण को करने की तीव्र उत्कंठा आपके जीवन का उद्देश्य और महिला लेखिकाओं को लेखन के अवसर प्रदान कर उन्हें मंज़िल की ओर अग्रसर करना आपका लक्ष्य बन जाए तो वास्तव में आप एक सच्चे साहित्यकार हैं। वर्तिका वर्तिका राजस्थान लेखिका संघ की पूर्व अध्यक्ष एवं नारी कभी ना हारी संस्था की संस्थापिका आदरणीय वीना चौहान दी आज किसी परिचय की मोहताज नहीं। भारत में ही नहीं वरन विदेशों में भी आप 'नारी कभी ना हारी' के माध्यम से महिलाओं को एक मंच पर लाने

सुप्रभात #Suprabhat #goodmorning

देता है उपदेश ज़माना        ख़ुद की लेकिन ख़बर कहाँ  दूजों में कमियाँ खोजें पर,         खुद की आती नजर कहाँ।  नुक्ताचीनी के कारण है,          मीठा सबका जीवन रस,  रोग छिपे हैं मीठे में ही          दिखते उनको मगर कहाँ।।  सुनीता बिश्नोलिया

सुप्रभात

सुप्रभात रंग मंच दुनिया सकल,अभिनय करना काम। ईश्वर नाच नचा रहा, बैठा डोरी थाम।।      सुनीता बिश्नोलिया 

सुप्रभात

सुप्रभात🙏🙏💐💐 पिताजी कहते थे अच्छी और बुरी परिस्थियाँ     तो संगिनी होंगी तुम्हारी     इसलिए हर परिस्थिति में मुस्कुराना।      क्योंकि साथियों के साथ मार्ग में हँसकर ना       चलो तो राह मुश्किल होती है     इसीलिए विकट परिस्थियों में भी           मुस्कुराती हूँ     विश्वास का दीप  जलाकर      अंधेरों को ठेंगा दिखाती हूँ।       सुनीता बिश्नोलिया 

मेरी ताकत मेरी कलम

 मेरे जीवन की थाती   कहना चाहती हूँ सब    मौन होने से पहले   चलाना चाहती हूँ कलम   होश खोने से पहले   मेरे शब्द ही मेरा विश्वास,    मेरी थाती हैं,   मैं मिट्टी का दिया   ये जलती बाती है।   प्रकाशित है महल    प्रेम की लौ से मेरे अंतर का,   एक कोने में भर के रखा है    स्वच्छ जल, नील सर का।    बाँटना चाहती हूँ प्रकाश   जो थोड़ा बहुत    आया है मेरे हिस्से,   न होंगे कल.. कोई नहीं    याद तो रहेंगे    मेरे किस्से।   पढ़ती रहती हूँ उसकी लिखी     प्रेम की जो पाती है,    मैं मिट्टी का दिया और    ये जलती बाती है।  सुनीता बिश्नोलिया 

हिंदी दिवस - मेरी पहचान हिंदी

   भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कहा  हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं  निज भाषा उन्नति अहे, सब उन्नति को मूल।  बिना निज भाषा ज्ञान के, मिटत ना हिये को शूल"    हिंदी आत्मविश्वास की भाषा है। गांधी जी भी कहते थे हिंदी आम-जन की भाषा है, हिंदी जन-जन को भाषा है। वो कहते थे हिंदी महज भाषा नहीं बल्कि ये हमको रचती है क्योंकि पे हमारे हृदय में बसती है। मेरा मानना है कि विचारों ही अभिव्यक्ति के लिए परिस्थितियों एवं स्थान के अनुकूल विभिन्न भाषाओं का ज्ञान-अनिवार्य है क्योंकि  भाषाएं हमें विश्व के विविध देशों से जोड़ती हैं। अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम होती है भाषा ।    मगर हिंदी हमारी मातृ भाषा है इसीलिए मेरी और आप सभी के मन की भाषा है। ये हमारे मन के सुप्त भावों को जगाकर अभिव्यक्ति हेतु प्रेरित करती हूँ। मन के बंद कपाटों के ताले खोलकर आत्मज्ञान प्राप्ति का सुगम मार्ग प्रशस्त करती है।    हिंदी भाषा किसी अन्य भाषा का विरोध नहीं करती वरन् हर भाषा के शब्दों को निविरोध स्वीकार कर स्वयं में समाहित कर लेती हैं संस्कृत से उपजी हमारी हिंदी भाषा। भारतेंदु हरिश्चंद्र कहते थे.    अंग्रेज़ी पढ़कर जदपि,

कठपुतली

                         प्रेम के धागे में बंधी        थिरकती रही         हर ताल पर।         मेरा संसार थे तुम         और तुम्हारी         उँगलियों से छोड़ी        ढील का सीमित दायरा।         धागे के खिंचाव और         इशारों पर नचाते         मीठे बोलों ने        तुम्हारी तय की हुई         हद में रखा मुझे..!        सागर के हृदय पर         मचलती लहरों को देखकर        जाना         प्रेम नाम बंधन का नहीं..!           और याद कर         अपना अस्तित्व         तोड़ दिए बंधन के धागे।         हाँ.. साथ रहूँगी सदा         पर....        तुम्हारे प्रेम में नाचती         कठपुतली बनकर नहीं।        किनारों से बाहर बहती         लहरों सी।          सुनीता बिश्नोलिया                                                                     

हिंदी प्रेम

 हिंदी प्रेम   रविवार का दिन था फिर भी सुमित्रा खोई हुई थी अपनी किताबों में।    पर रोज की तरह आज वो किताबें पढ़ नहीं रही बल्कि उन्हें अपनी लाइब्रेरी में करीने से रख रही थी ।साथ ही बेटे के दोस्त रवि को उसके एन.जो.ओ की लाइब्रेरी में देने के लिए कहानियों एवं व्याकरण की कुछ किताबें अलग-अलग दो कार्टूनों में रख रही थी ।      तभी दरवाज़े की घंटी बज उठी तो सुमित्रा ने   सोचा - "कौन हो सकता है..? रवि तो शाम को चार बजे आने वाला था।" सोचते हुए सुमित्रा ने दरवाज़ा खोला तो बाहर खड़े लोगों को  पहचानने को कोशिश करने लगी। तभी उनमें से लगभग चालीस वर्षीय व्यक्ति ने उन्हें आगे बढ़कर नमस्कार करते हुए कहा - "नमस्कार मैम... पहचाना मुझे   उसकी बोली सुनते ही जैसे सुमित्रा को सब याद आ गया और वो बोली -" अभय ! कैसे भूल सकती हूँ तुम्हें! "  " मैम मैं भी आपको हर रोज याद करता हूँ।"  ये सुनकर सुमित्रा ने मुस्कुराकर कहा -"सुना है बहुत बड़ी कंपनी में काम कर रहे हो आजकल।   सुमित्रा की बात के जवाब में अभय ने बहुत ही विनम्रता से कहा -" आपकी शिक्षा और संस्कार ही मेरी

सूर्योदय - झीलों की नगरी उदयपुर

 रमा मेहता ट्रस्ट द्वारा आयोजित तीन दिवसीय 'कहानी लेखन' 'कार्यशाला' के तहत पिछले महीने झीलों की नगरी उदयपुर जाना हुआ।       झीलों की नगरी में सबसे पहले बात करुँगी  बड़गाँव स्थित 'कृषि विज्ञान केंद्र' की जहाँ हमें ठहराया गया। शहर के फ्लैटों से निकलकर कृषि विज्ञान केंद्र के हरे-भरे प्रांगण में पहुंचकर लगा जैसे हम स्वर्ग में आ गई। अरावली पर्वत शृंखला से घिरे वहाँ के हरितिम वातावरण को देख हमारे हृदय में बचपन हिलोरें लेने लगा लगा।     मैं, शिवानी और तारावती सुबह उगते सूरज के साथ खिलखिलाती तो संध्या के सूरज को पकड़कर डूबने से रोकती।      हम तीनों अलसुबह चाय  का कप उठाकर सीधे कृषि भवन की छत पर जा बैठती। जिधर भी नज़र घुमाओ हर तरफ़ हरी-भरी पहाडियाँ और इन्हीं हरीतिम पहाड़ियों के बीच दूर से दिखाई देती महाराणा प्रताप की बड़ी सी मूर्ति जैसे हमें अपने पास बुला रही हो।   चिड़ियों की चहचहाहट,सुग्गे के स्वर और मोर की मीठी बोली सुनकर हृदय के तार-तार से स्वर लहरी फूट पड़ती और आँखों के आगे बचपन की यादें चित्रवत चलने लगती और अभिशप्त सी

खिलखिला उठे ज़िंदगी - वट वृक्ष

खिलखिला उठे ज़िंदगी - वरिष्ठ साहित्यकार आदरणीय श्याम जांगिड़ कहते हैं  ‘‘माँ..सुनो, सुनती क्यों नहीं माँ । मुझसे कैसी नाराजगी है बताओ ना।  अब तक तुम्हारे अमृत से ही जिन्दा हूँ माँ! पर कब तक रहूंगा जिंदा तुम्हारे प्रेम के अमृत की मीठी धार के बिना।  हाँ! सूखते जा रहे हैं तुम्हारे हृदय में स्थित अमृत के अतुलित भंडार । चाहे मेरी उम्र हजार साल भी हो जाए  फिर भी तुम्हारे अंक में खुद को बच्चा ही समझता रहूँगा। तुम्हारे आँचल की ओट में छिपकर बंद कर लेना चाहता हूँ अपनी आँखें। अब नहीं देख सकता इस दुनिया का दर्द।  हर तरफ जलती चिताएं,चीख-पुकार,हाहाकार, मनुष्य का करुण क्रंदन। इन सूखते जल स्रोतों के बीच भी तुम्हारे हृदय से चिपककर मैं महसूस कर सकता हूँ तुम्हारे वात्सल्य की उष्मा।     तुम्हारी तेज चलती साँसे और हृदय में हो रही उथल-पुथल नहीं छिपी है मुझसे!       तुम ही बताओ माँ! तुम्हारा ये बूढ़ा बेटा कैसे बचाए इंसानों को।   बहुत सजा सह चुका इंसान बस अब नहीं। नहे ईश्वर! मैं कर ही क्या सकता हूँ रोने के अलावा…।   अरे! लाल फूलों से लदे मेरे नन्हें गुड़हल मेरे  रोने पर इतना विस्मय ना करो ।     पूछ

माटी री सोरम

माटी री सोरम   लिखूं कविता म्हारै गांव री  मुखड़े पै मुस्कान रवैली माटी री सोरम माटी री  काना  बातां आप कैवैली  बातां ऊँची हेल्यां री बै  साथी संग सहेलियाँ री वै  गिणिया करती बैठी तारा भोली बातां पहल्यां री बै गळी-कूंचळ्यां री बातां नै लिखतां आँख्यां खूब बवैली माटी री सोरम माटी री  काना  बातां आप कैवैली।    गुड्डी-गुड्डा ताळ-तळाई ईसर-गोरां खूब जिमाई खेल-खिलौणा बाळ पणै रा   किस्सा है ये अपणैपण रा  रेतीला धोरां री बातां  हाल तकै तो और हुवैली   माटी री सोरम माटी री  काना  बातां आप कैवैली।  तीज-तिवारां ब्याव-सगाई बन्ना-बन्नी म्है बी गाई घूघरिया घमकाया करती म्हारै गाँव  री बूढी ताई भूल्या-बिसर्या गीतां री हिवड़ै सूं रस धार बवैली माटी री सोरम माटी री  काना  बातां आप कैवैली।।  जिण टीबां पै लोट्या करता इण आँख्यां सूं देख्या मरता देख सिमटता गाँव-गळ्यां नै झर-झर-झर-झर आँसू  झरता नई मंजिलां रै सामी पण बूढी हेल्यां खड़ी रैवैली माटी री सोरम माटी री  काना  बातां आप कैवैली।।

सांस्कृतिक – झरोखा बाबा रामदेवजी

बाबा रामदेव जयंती पर आदरणीय डॉ आईदानसिंह भाटी द्वारा दी गई बहुत ही सुंदर और विस्तृत जानकारी  सांस्कृतिक – झरोखा                  बाबा रामदेवजी   बाबा रामदेवजी का अवतरण विक्रम स. 1409 में हुआ | चैत्र सुदी पञ्चमी सोमवार को इनका जन्म हुआ था, किन्तु लोक मानस में भाद्रपद सुदी दि्वतीया ‘बाबा री बीज’ के नाम से ख्यात है|  बाबा रामदेवजी मध्यकाल की अराजकता में मानवीय मूल्यों के लिए संघर्ष करने वाले अद्भुत करुणा पुरुष हैं| उनके पूर्वजों का दिल्ली पर शासन था | तंवर अनंगपाल दिल्ली के अंतिम तंवर (तंवर, तुंवर अथवा तोमर एक ही शब्द के विभिन्न रूप हैं) सम्राट थे | वे दिल्ली छोड़कर ‘नराणा’ गाँव में आकर रहने लगे जो वर्तमान समय में जयपुर जिले में स्थित है | इसी के आसपास का क्षेत्र आजकल ‘तंवरावटी’ कहलाता है | दिल्ली के शासक निरंतर तंवरों पर हमले करते रहते थे, क्योंकि वे जानते थे कि दिल्ली के असली हकदार तंवर हैं| इसलिए तंवर रणसी अथवा रिणसी के पुत्र अजैसी  (अजमाल) को वंश बचाने की समझदारी के तहत मारवाड़ की तरफ भेज दिया | वे वर्तमान बाड़मेर जिले की शिव तहसील के ‘उँडू – काशमीर’ गाँव के पश्चि

सत्ता की गलियाँ

सत्ता के रंग सत्ता की गलियों में मैंने          अजब तमाशा देखा है। साधू के चोले को पहने          धूर्त बगुला देखा है। इनकी बातें ये ही जाने            बिन पेंदे के लोटे हैं मासूमों पर जाल फेंकते            खुद आसामी मोटे हैं। वोटों की खातिर इन सबको             रंग बदलते देखा है। साधू के चोले को पहने          धूर्त बगुला देखा है। करें चाशनी से भी मीठी           बातों के ये जादूगर कहा आज का कल भूलें         रहना थोडा सब बचकर।  वादों के जालों में जन को           इन्हें फँसाते देखा है। साधू के चोले को पहने            धूर्त बगुला देखा है। बरसात अच्छी है खेल-खेलते ऐसा ये तो        लोगों को बहकाते हैं। छत भी नहीं नसीब ये उनको        महलों के स्वप्न दिखाते हैं। जिनको रोटी की ठोर नहीं       संग उनके खाते देखा है। साधू के चोले को पहने              धूर्त बगुला देखा है। #सुनीता बिश्नोलिया©