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जनवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

#योग का महत्त्व

                              योग का महत्त्व कर्म योगियों की कर्म स्थली,ज्ञान -दान दाताओं  के ज्ञान से परिपूर्ण,ऋषि-मुनियों की योग स्थली भारत-भूमि। संसार को योग द्वारा रोगों से मुक्त करने का संदेश  देते हुए आज हमने योग का परचम  विश्व में फहरा दिया। योग के प्रभाव से व्याधियों के दूर होने के  कारण ही आज योग को भारत में ही नहीं वरन दुनिया के अधिकतर देशों में अपनाया जा रहा है। आज की तेज रफ़्तार जिंदगी में खुद को स्वस्थ और उर्जावान बनाये रखना बेहद आवश्यक है। इस बात को समझलेने के ही कारण ही लोगों का रुझान व्यायाम और योग के प्रति  बढ़ा है। आप  कम-काजी हो या  विद्यार्थी, उद्यमी हो या फिर   खिलाड़ी, हर किसी की जरुरत  है योग।कुछ देर योग करके अत्यधिक  काम या पढ़ाई के दबाव  के बावजूद भी खुद को तारो ताजा महसूस कर सकते हैं। योग हमारी स्मरण शक्ति ,रचनात्मकता बढ़ाते हुए हमें तनाव मुक्त भी करता है।योग से न केवल व्यक्ति  शारीरिक एवम मानसिक दृष्टि सी मजबूत होता है वरन ये हमारी रोगप्रतिरोधक क्षमता  को भी बढ़ाता है।अतः यदि हमें दिन भर उर्जावान रहना है,रोगों से दूर , ताजगी भरा जीवन  जीना है तो नियमित रूप

महादेवी

#महादेवी वर्मा (महादेवी की कुछ कविताओं के शीर्षक के आधार पर....) प्रतिक्षण प्रतिपल,दीपशिखा सी,जल कर की थी आरती, नव-नेह को रचकर हृदय में,थी अनंत को पुकारती। सपनों के वो जाल बना,चाहती थी मधु-मदिरा का मोल, मधुर-मधुर दीपक सी जली,वो नीर भरी दुःख की बदली। बिन गरजे वो मधु बूंदों सी,बरसाती थी आखर, गूढ़ रहस्य से जीवन में,आशा थी पाने को निर्झर। अनंत पथ में लिखा करती,वो सस्मित सपनो की बातें, मुस्कान भरा ना फूल खिला,थी पीड़ा से भरी सारी रातें। जीवन में उसके मुस्काया कभी, लाली में चुपचाप प्रभात, व्यथा-विरह की मीठी पा,थामा फिर साकी का हाथ। चाहत थी उसकी भी अनोखा,पाने को सपनों का नया संसार, ना मिला कोई था दूर क्षितिज तक,बही आँसू की अविरल धार। राह देख ना कभी थकी,सहती थी मन के हर छाले, उम्मीद से आलि से कहती,क्या प्रिय हैं आने वाले। हृदय को द्रवित करती शब्दों से,ज्यों तरल लोह की धार, करुण-वेदना,विरह-मिलन से, था भरा पड़ा संसार। 'महादेवी' ने देशप्रेम के,फूलों की भी गुंथी माला, मस्तक देने की कहकर हृदयों में भरती थी ज्वाला। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

नारी की उड़ान

अरमानों को पंख लगा                    उड़ान भरती नारी । विश्वास-दीप जला,                  जहां को रोशन करती नारी। तम हरती वो जग का                 और विश्वास भरे डग भरती, लाज चुनरिया को खिसका,                        सम्मान नयन से करती। होड़ नहीं अपनी राहों पर,                      हो निश्चिन्त वो आगे बढती, कमजोर नहीं शक्तिस्वरूपा है                   अधिकारों को वो लड़ती। आज ये निखर गईं ,                      परम्परावादी सोच खुद ही बिखर गई।                अब बदल गया है हर  नारी का कोमल सा व्यक्तित्व,                  लड़ जाती है ज़माने से बचाने 'नारी'अपना अस्तित्व।                    पंछियों सी उड़ान भरती हैं, नर नहीं जहां में राज नारी करती हैं। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

भारत का बदलता परिवेश

#भारत का बदलता परिवेश भारत नहीं बदला...वही हिन्द,वही हिंदुस्तान की पवित्र माटी,वही लोग..किन्तु लग गया है सभी को भोग का रोग,और बदल गई है परिपाटी,सामाजिक मूल्य..सामाजिक सरोकार सभी कुछ तो समाप्त होते जा रहे हैं। आज भी लोगों के हृदय में जोश है,जज्बा है,लगन है ....किन्तु देश के लिए नहीं वरन स्वयं के लिए। सच आत्म केन्द्रित हो गया है आज व्यक्ति। कभी युवाओं ने देशहित प्राणों की बाजी लगाईं थी...अंग्रेजों के टकराए थे....स्वतंत्रता आन्दोलन रूपी हवन में स्वयं समिधाएँ बन कूद गए थे...किन्तु आज स्वार्थ सिद्धि हेतु देश को ही हवन कुण्ड में झोंका जा रहा है। कभी आरक्षण के नाम पर तो कभी जाती धर्म के नाम पर तो कभी अपनी तुच्छ सी मांग के नाम पर देश में तबाही मचाई जाती है।जहाँ महिला को माँ के रूप में पूजा जाता है वहीं उसके नाक काटने तक की बात की जाती है। कुछ लोग देश की सुंदर तस्वीर बना कर विश्व के सामने सुंदर भारत की छवि बनाने में लगे हैं....तो कुछ उस छवि को ख़राब करने में लगे हैं। युवाओं का एक वर्ग तो बात बात में अति उत्साह के कारण ऐसे कार्य कर जाता है कि देश विकास के मार्ग से अवरुद्ध होकर पुन:कुछ महीने पीछ

भारत में सांस्कृतिक संक्रमण

#भारत में सांस्कृतिक संक्रमण मुद्दा बहुत गहन है श्रीमन् संस्कृति झेल रही है संक्रमण। मात्र संक्रमण नहीं...शायद , पाश्चत्य संस्कृति का आक्रमण। या विश्व की पुरातन संस्कृति को दबाने की बहुत बड़ी साजिश। सिमटते परिवार,रिश्तों का व्यापार, खान-पान,दैनिक क्रियाएँ सभी कुछ तो हो गया है संक्रमित। हर वर्ग पाश्चत्य की और हो रहा है आकर्षित। त्योहारों की संख्या बढ़ गई पश्चिम के त्योहारों की ,लिस्ट भी तो जुड़ गई। भारतीय त्योंहार गिनती के मनते हैं, लेकिन दिल नहीं अब दिखावे के फूल खिलते हैं। सच कहा था बापू ने... सांस्कृतिक अस्मिता नष्ट हो गई, अधिकारों के नाम पर पोशाक थोड़ी कट गई है। भूल गए पीले चावल,अब तो शादी का निमंत्रण पत्र भी जरुरी नहीं, डिजिटल दुनिया है साहब संस्कृति के पीछे भागना अब शायद जरूरी नहीं??? शादी में मेहमानों का आना,रिश्ते निभाना, औपचारिकता रह गई,भोजनोपरांत लिफाफा देना, सांस्कृतिक ज

स्वामी विवेकानंद

    # स्वामी विवेकानंद      आदर्श  विश्व के  अजर -अमर,        ज्ञान-ज्योति दी जग में भर।        थी तीक्ष्ण बुद्धि और ह्रदय विशाल,          विवेक भरा भारत का लाल। नाम नरेन्द्र पा कर के सम कार्य किए थे उसने, बुद्धि देख से चकरा जाते,गुरुजन भी थे जो उसके। विश्व को धर्म का पाठ पढ़ाने,चला राही वो मतवाला, लगातार वो चला बटोही और उसे मिला नहीं निवाला। मुश्किल झेली पार समुंदर क्षीण हो गई काया, लोभ-मोह में पड़ा नहीं,ना चाही इसने माया। कर्म-धर्म का ज्ञान जहां को दिया,ओज के स्वर में, दांतों तले दबा अँगुली,जन आन गिरे चरणों में। कर्मठ ने कर्म निरंतर करके स्वास्थ्य गिराया अपना, देह त्याग तरुणाई में,स्वप्न अधूरा छोड़ गया वि अपना। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर   

सिनेमा और समाज

#सिनेमा और समाज समाज और सिनेमा ...सिनेमा और समाज ...जिस प्रकार समान दिखने वाले इन दोनों वाक्यों में मुझे थोड़ा सा अंतर प्रतीत होता है। पहला की समाज और सामाजिक घटनाओं के फलस्वरूप और उनके प्रभाव के कारण सिनेमा अथवा फिल्म का निर्माण...दूसरा सिनेमा के पड़ते गहरे प्रभाव के फलस्वरूप सामाजिक रीतियों में बदलाव और सिनेमा के अनुसार होते दैनिक कार्य। नौजवान क्या सिनेमा पर तो हर उम्र के व्यक्ति अपनी जान छिड़कते हैं....समाज का कोई भी वर्ग इसके प्रभाव से अछूता नहीं है।ये वो शक्तिशाली माध्यम है जो मानव जीवन पर गहरा प्रभाव डालता है....चाहे वो अच्छा हो अथवा बुरा। पैसों के लोभ में कई फ़िल्म निर्माता धाड़,हिंसा,यौन-प्रदर्शन आदि का सहारा लेते हैं। मैं नहीं कहती की फैशन करना बुरा है..किन्तु फूहड़ता अर्थात् सांस्कृतिक अस्मिता का हनन भी सिनेमा ही सिखाता है..पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण और हर दिन महिलाओं के छोटे होते कपड़े भी सिनेमा की ही देन है। कहीं आप मुझे महिला एवं महिला की स्वतंत्रता की विरोधी ना समझें इसलिए मैं स्पष्ट कर दूँ कि मैं छोटे कपड़ों की नहीं वरन कपड़े पहनने के तरीके ,समय और स्थान की बात पर बल दे रह

सर्दी की रात

#सर्दी की रात घने कोहरे से लिपटी रात... सांय-सांय करती हवाएँ सर्द एसी वाली गाड़ी में बैठ देर रात घर लौटते,कुछ ऐसा देखा, और मैं सिहर गई, खेत में नहीं आज फुटपाथ पर सोता #हल्कू देख रुक गई जबरा तो नहीं... हाँ फुटपाथ पर सोते उन लोगों को गर्माते साथी कुत्ते देखे। दांत किट-किटाती सर्दी में वो एक दूसरे का सहारा बने थे, सिकुड़ कर सोये ठण्ड में काँपते सोने की असफल कोशिश करते आदमी के साथ चिपका हुआ उसके शरीर को गर्माता,खुद को बचाता शायद उसके लिए भी सर्दी का आसरा वो कुत्ता देखा समझ नहीं आ रहा था आखिर कौन किस का आसरा ले रहा है? आधी रात ओस से भीग चुकी बीसियों छेद वाली वो कंबल में खुद को लपेटता वो मजबूर देखा स्वयं को बहुत कोसा...उसकी दशा से पीड़ित सी महसूस कर अपनी शाल उढ़ा कर चली आई पर एक...को!!!! आँखों में अश्रुधार और प्रश्न लिए चली आई किसी को क्यों नहीं दिखता ये हल्कू....???

उम्मीद

#उम्मीद #उम्मीद का अंकुर बंद तालों में भी खिलता, खोल तो ह्रदय के द्वार,यहाँ प्यार बेपनाह मिलता है। क्यों सड़ी-गली परम्पराओं की बेड़ियों में जकड़े हो, तोड़ के आगे आओ, क्यों बेवजह इन्हें पकड़े हो। मन में दबी इच्छाएँ, बंद तालों में दिख जाती हैं, पम्पराएँ सारी नहीं , बस कुछ ही पीछे ले जाती हैं। कब तक यों करोगे गुलामी , किसी और के दर पे आ के खोल दे ये ताला , जो लगा है ते घर पे । #उम्मीद के दामन को , ना छोड़, तू प्यारे सफलताएँ हैं बुलाती , तुझे बांहें पसारे। खुश हो कि तेरे मन में उगा,#उम्मीद का बूटा, अब भूल भी उस दिन को , जब दिल तेरा टूटा। अंकुर को उठा हाथ में , और माटी में लगा दे, तू तोड़ के हर ताले को 'पुष्प ' आशा के खिला दे। उम्मीद भरे पँखों से उड़ ,ऊँचा रे...! पंछी हर हद से गुजर जा, ओ!हारे हुए पंछी.. मंजिल को ऐ पंछी तू, अपने कदमों में झुका ले, हुँक्कार के प्रहार से ,सब तोड़ दे ताले .. बंधन के ओ! पंछी ना पी तू विष के पियाले, हर तोड़ के ताला ,आ... मुक्ति को गले से लगा ले। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर (राजस्थान )