मीठी बोली मारवाड़ी ,सबसे पहले इसी भाषा में बोलना और अपने भावों को व्यक्त करना सीखा। राजस्थान के टीलों, धोरों, हवेलियों, महलों और चौबारों में खनकती, इत्र सी महकती, कानों में मिश्री की सी मिठास घोलती हैं राजस्थानी बोली। कहते हैं हर पाँच कोस में राजस्थानी भाषा का स्वरुप थोड़ा सा बदल जाता है। हाँ जरूर बदलता है लेकिन इसकी विविधता और परिवर्तनशीलता ही इसकी मुख्य विशेषता है। इसीलिए तो देश के लगभग पाँच करोङ लोगों द्वारा बोली जाती है राजस्थानी भाषाएं। राजस्थानी भाषाओं में प्राप्त प्राचीन साहित्य, लोक गीत, संगीत, नृत्य, नाटक, कथा, कहानी लोगों के मन को लुभाते और मनोरंजन तो करते हैं पर इन भाषाओं को सरकारी मान्यता प्राप्त नहीं है। इसी कारण इन्हें विद्यालयों में पढ़ाया नहीं जाता। जहाँ पढ़े-लिखे लोग अंग्रेजी बोलने में अपनी शान समझते हैं वहीं उनके द्वारा राजस्थानी भाषा को दैनिक रूप से बोलचाल में प्रयोग करना ही बंद कर दिया गया है। जिससे राजस्थानी भाषाओं का विस्तार तो नहीं हुआ वरन ये संकुचित होकर ह्वास की ओर जरूर अग्रसर हो रही है।
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia