सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

मई, 2022 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

संस्कार

संस्कार हर देश की अपनी अलग संस्कृति और संस्कार होते हैं जो व्यक्ति जहाँ रहता है उसे वहीं की संस्कृति प्रभावित करती है उसका आचरण भी उसी अनुसार होता है। सच ही कहा है बच्चे की प्रथम पाठशाला उसका घर होता है और माँ प्रथम गुरु।ये बात पूर्णत:सत्य है कि बच्चे पर माँ और परिवार का बहुत प्रभाव पड़ता है। कामकाजी परिवारों में बच्चों को नौकरों के हाथों छोड़ दिया जाता है छोटी उम्र में ही क्रेच या विद्यालय भेज दिया जाता है ऐसे में बच्चे में माँ  के अतिरिक्त अन्य लोगों का प्रभाव पड़ता है...और वो सभी समान रूप से संस्कृत हों ये आवश्यक नहीं। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहने हेतु अथवा समाज में रहने के लिए उसे कुछ नियमों अर्थात् संस्कारों की आवश्यकता रहती है।जो वो प्राप्त करता है अपने घर से....अपनी संस्कृति से। कुछ लोग संस्कार और संस्कृति को बिल्कुल अलग-अलग मानते हैं,किन्तु मेरा मानना है कि संस्कार और संस्कृति एक दूजे के पूरक हैं क्योंकि मनुष्य में संस्कारों का पोषण उसकी संकृति से ही पोषित होगा और स्वयं द्वारा ग्रहण किए गए संस्कारों को हीअपने स्वभाव के अनुसार वो आने वाली पीढ़

पत्रकार

बहुत आसान है किसी की     प्रशंसा में काग़ज़ रंगना     कितना मूर्ख है ना वो    सच उजागर करने में     काग़ज काले करता है।     फूलों की तरह बिखरा     झूठ छोड़कर वो     सच की शूलें चुनता है।     ईंट-पत्थर,लाठी और     कटुवाणी का हमला झेलकर भी     अपनी बात पर अटल रहता है ।    कितना मूर्ख है ना वो    झूठ के लिहाफ तले भी उसे     सिर्फ सच का कोना दिखता है।     आलीशान कोठी नहीं     दो कमरों के घर में रहता है     कितना मूर्ख है ना वो     बेहिसाब पैसे  के भाव में भी     जाने क्यों नहीं बिकता है।    हमारी नजरों मूर्ख है वो     पर खुद को सच्चा पत्रकार     कहता है.. बात तो सही है..।     चलो देखते हैं    चापलूसों की दुनिया में     वो कब तक टिकता है।      सुनीता बिश्नोलिया      

युवाओं में आक्रोश कम करने के लिए जरूरत है स्वस्थ एवं पोषक वातावरण की

  युवाओं में आक्रोश कम करने के लिए जरूरत है स्वस्थ एवं पोषक वातावरण की            स्कूल हो अथवा कॉलेज, बीच बाज़ार  हो या घर, युवा चाहे शहरी हो अथवा ग्रामीण। गुस्सा और आक्रोश उसके नाक पर बैठा रहता है। छोटी छोटी बातों में लड़ने-झगड़ने को आतुर है आज का युवा। युवाओं में बढ़ता आक्रोश और हिंसा की प्रवृत्ति  किसी एक क्षेत्र या एक देश की समस्या नहीं।              यह विश्वव्यापी समस्या रूपी नाग हर देश के युवाओं को अपने पाश में जकड़ कर सरकारी संपत्ति  को नुकसान पहुँचाते हुए कभी भड़काऊ भाषणों से,मारपीट,आगजनी और कभी हथियारों से विष उगल रहा है।   इसका ताजा उदाहरण है अमेरीका के टेक्सास में एक युवा का पाशविक रूप।   ये विचारणीय है कि माता-पिता के पास न रहकर दादी की परवरिश में रहने वाला युवा भला इतना हिंसक कैसे हो गया । क्या ये माता - पिता के दिए संस्कार थे..? या दादी के पालन-पोषण में कमी थी ?     तो क्या उन्नीस मासूम बच्चों तथा अपनी दादी एवं दो अध्यापिकाओं का हत्यारा युवक मानसिक रोगी था? या अपनी जीवनशैली पर महिला मित्रों की टिप्पणियां नहीं झेल पाया।     ऎसा