सुप्रभात ये बैरागी दिवस बावरा,समय की बहती धारा है जीता जो क़ीमत पहचाना,जो ना जाना हारा है पल-पल,क्षण-क्षण बीत रहा,जो मोती से मंहगा है आज दौड़ सूरज संग की तो,आगे वक्त तुम्हारा है। सुनीता बिश्नोलिया
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia