सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

अगस्त, 2021 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

बस एक ख्वाब ज़रा सा है

#बस एक ख्वाब ज़रा सा है  स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं              ~~~~~~~~ भूलें द्वेष-दंभ को त्यागें,बस छोटी सी आशा है।  एक रहे यह भारत अपना,मेरा ख्वाब जरा सा है।।                               (१) गीत प्रीत के गूंजें हर सू,मधुर रागिनी बजने दो।  देश भक्ति के मधुर तरानों,वाली महफिल सजने दो।। भिन्न-भिन्न परिवेश हमारा,भिन्न हमारी भाषा है।  एक रहे यह भारत अपना,मेरा ख्वाब जरा सा है।।                               (२) रंग केसरी की आभा को,इस जग में बिखराने दो।  श्वेत रंग सौहार्द सिखाता,जगति को बतलाने दो।। रंग हरा वसुधा का गौरव,भारत की परिभाषा है।  एक रहे यह भारत अपना,मेरा ख्वाब जरा सा है।।                             (३) शिक्षा के आलोक से जग-अँधियार मिटाने दो।  बस श्रेष्ठ जगत से हो भारत,कर्मों से दिखाने दो।।  वीर सपूतों की ये धरती, करती हमसे आशा है  एक रहे यह भारत अपना,मेरा ख्वाब जरा सा है।।                              (४) जाति - धर्म की तोड़ दीवारें, संग सभी को आने दो।  गंगा- जमुना दोनों ही को, गान देश का गाने दो।।  पेट भरे हर उस जन का जो, कब से भूखा-प्यासा है।  एक रह

शहादत का रंग बसंती

स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं शहादत का रंग बसंती खुनक राख की गर्मी आज भी है हवाओं में शहादत का रंग बसंती आज भी है घटाओं में। खुद को गाफिल न समझ ऐ! नौजवां देश के तू बसा हर शख्स की आज भी है दुआओं में। वतन पे टूटते जुल्मों को सहा अपने बदन पे आसीरी के दिए निशां आज भी हैं दिशाओं में। 'सुनीति' हिम्मत से तेरी वतन से भागा फिरंगी जज्बे के तराने गूंजते आज भी हैं फिजाओं में।। #सुनीता बिश्नोलिया©

अवरुद्ध कंठ - कविता

     कंठ हुए अवरुद्ध  गाने को आतुर कोकिल के  कंठों में गीत मचलते हैं,  मधु रस बांटे वो दुनिया में,  गीत हृदय में पलते हैं।।  कहो कहाँ तक मौन रहे वो  कंठ ही जिसकी थाती है,  अंतर्द्वंद से कैसे जीते  अंखियन नीर बहाती है। देख उजड़ती अपनी दुनिया युद्ध स्वयं से चलते हैं,  मधु रस बांटे वो दुनिया में,  गीत हृदय में पलते हैं।।  बुरे समय का साथी तरुवर ठूंठ हुआ बिन गीतों के पत्ता-पत्ता गिरा बहारें  बीत गईं बिन प्रीतों के।  मन मयूर भी भूल थिरकना आज गमों में पलते हैं  मधु रस बांटे वो दुनिया में,  गीत हृदय में पलते हैं।। दादुर की बोली सुनकर  अवरुद्ध कंठ सहलाती है  अंतर्मन में छिपी वेदना  मगर हास बिखराती है।  पीड़ा के धागों में लिपटे,  कहाँ घाव फिर सिलते हैं  मधु रस बांटे वो दुनिया में,  गीत हृदय में पलते हैं।। सुनीता बिश्नोलिया 

बारिश की बूँदों सी लड़कियाँ

बारिश बूँदों सी लड़कियाँ  नारी अस्मिता : संघर्ष और यथार्थ    उछलना-कूदना, नाचना - नचाना, दौड़ना-भागना, चीखना-चिल्लाना, कभी गरजते हुए तो कभी बिन मौसम कभी भी कहीं भी टपक पड़ती थीं हम लड़कियाँ।            आज उन दिनों को याद करके बहुत हँसी भी आती है तो सखियों की याद भी।  वर्तिका   मोतियों की सी माला हम सखियाँ कब टूटकर  अलग होती गई पता ही नहीं चला। लेकिन वो मोती सच्चे और कीमती थे तभी तो सब किसी ना किसी घर की शोभा बढ़ा रहे हैं।     आज भी उन मोतियों की चमक बरकार है।  सोशल मीडिया की मेहरबानी से दूर से ही सही पर बन गई  है माला. हम सखियों की। हम अनीता-सुनीता बहनों के अलावा भी दो बहनें अनिता - सुनिता  तारा, पिंकी, साबू, संपत्ति, सजना, शारदा,बानो, शबनम जाहिदा, ऋतु, नीतू, आशा पुष्पा, सुमन, सरोज,मोनू,  (मोनिका) मीनू, पूनम,राजू,रंजू, गुड़िया, सरला, सुनीता सोनी, प्रीतिआदि अनेक, लड़कियाँ। कभी पोषम पा तो कभी सितोलिया, गेंद गट्टे तो कभी इमली के बीजों को दो टुकड़े करके उछालना, कभी पकड़म- पकड़ाई खेलते हुए गिर जाना तो कभी लुका-छिपी खेलते हुए झगड़ पड़ना तो कभी गुड्डे-गुड़ि