होली ओ रे! यशोदा के लाल तूने रंग दीन्हें गाल नन्द बाबा के गोपाल काहे हुआ तू वाचाल। नटखट ओ मुरारी सखियन देंगी गारी तूने फिर बनवारी काहे मारी पिचकारी। तू क्यों होली के बहाने मोहे आया है सताने काहे छेड़े ओ दीवाने हट! मारूँगी मैं ताने। सुन मुरली की धुन मेरा नाचे तन मन मत छेड़ कोई राग मत सुलगा रे आग ओ रे ओ रे बनवारी तेरी मति गई मारी तूने छेड़ी काहे तान गया काहे ना तू मान। ओ रे श्याम सलोने, ना कर छूने के बहाने, तूने डाला रंग लाल फेंका प्रेम वाला जाल। फँस गई मैं मुरारी मोहे आवे आवे लाज भारी छोड़... बांके बिहारी तू जीता ले मैं हारी।। होली है सुनीता बिश्नोलिया
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia