प्रेम के धागे में बंधी थिरकती रही हर ताल पर। मेरा संसार थे तुम और तुम्हारी उँगलियों से छोड़ी ढील का सीमित दायरा। धागे के खिंचाव और इशारों पर नचाते मीठे बोलों ने तुम्हारी तय की हुई हद में रखा मुझे..! सागर के हृदय पर मचलती लहरों को देखकर जाना प्रेम नाम बंधन का नहीं..! और याद कर अपना अस्तित्व तोड़ दिए बंधन के धागे। हाँ.. साथ रहूँगी सदा पर.... तुम्हारे प्रेम में नाचती कठपुतली बनकर नहीं। किनारों से बाहर बहती लहरों सी। सुनीता बिश्नोलिया
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia