गौरैया दिवस चूं- चूं - चूं वो चहका करती, संग सखियों के फुदका करती। मनभावन गीत सुनाया करती गौरैया घर आया करती । मतवाली सी डोला करती मस्ती में वह बोला करती। मगर बोलती आज नहीं है दिखती भी वह बहुत नहीं है। पेड़ों की अब छाँव नहीं है गौरैया के गाँव नहीं है। गौरैया घर आए कैसे चूं-चूं चहक सुनाएं कैसे। बंद घरों में हम बैठे हैं मानव-मद में हम ऐंठे हैं। लोहे के अब वृक्ष बड़े हैं तनकर देखो खूब खड़े हैं। गौरैया की सांस छीनते पाषण हृदय क्यों नहीं पिघलते करुणा अपने हिये जगाएं आओ गौरैया को बचाएं। सुनीता बिश्नोलिया
साहित्य और साहित्यकार किस्से -कहानी, कविताओं का संसार Sunita Bishnolia