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फ़रवरी, 2018 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रंग

#रंग नीले-पीले,लाल-गुलाबी,जित देखो उत रंग हैं बिखरे, फाग का रंग चढ़ा धरती पर,रंग ही रंग हर तरफ हैं छितरे। उड़ते रंगों में लिपटी हुई ,धरती देखो बनी दुल्हनिया, फाग की मस्ती मुख पे लिए,बहु रंगों की ओढ़ चुनरिया, मोसम है मस्ताना और वात्सल्य लुटाती वसुधा, झूम रहा हर पल्लव संग मन में भर कर उत्साह। पुकार रहा मन आज मैं हर फूल को बाँहों में भर लूँ, ये रंग भरूँ हर जीवन में हर रंग को दिल में बसा लूँ। अलंकार अलबेले ये रंग,रूप धरा का और सँवारे, रंग बिरंगी पुष्प-लताएँ , कहीं खिले ये टेसू प्यारे, उड़ते हुए रंग कितने प्यारे,फाग की मस्ती में बहके सारे, धरती पर हैं अजब नज़ारे,आँखों को भाते हैं सारे। धरती का हर कोना भरा है,रंगों से लिपटी पूरी धरा है, बचा न कोने खाली कोना,रंगों ने न की शरारत जहाँ है। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

संस्कार

#संस्कार हर देश की अपनी अलग संस्कृति और संस्कार होते हैं जो व्यक्ति जहाँ रहता है उसे वहीँ की संस्कृति प्रभावित करती है उसका आचरण भी उसी अनुसार होता है। सच ही कहा है बच्चे की प्रथम पाठशाला उसका घर होता है और माँ प्रथम गुरु,और ये बात पूर्णत:सत्य है कि बच्चे पर माँ और परिवार का बहुत प्रभाव पड़ता है। कामकाजी परिवारों में बच्चों को नौकरों के हाथों छोड़ दिया जाता है छोटी उम्र में ही क्रेच या विद्यालय भेज दिया जाता है ऐसे में बच्चे में माँ के अतिरिक्त अन्य लोगों का प्रभाव पड़ता है...और वो सभी समान रूप से संस्कृत हों ये आवश्यक नहीं। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहने हेतु अथवा समाज में रहने के लिए उसे कुछ नियमों अर्थात् संस्कारों की आवश्यकता रहती है।जो वो प्राप्त करता है अपने घर से....अपनी संस्कृति से। कुछ लोग संस्कार और संस्कृति को बिल्कुल अलग-अलग मानते हैं,किन्तु मेरा मानना है कि संस्कार और संस्कृति एक दूजे के पूरक हैं क्योंकि मनुष्य में संस्कारों का पोषण उसकी संकृति से ही पोषित होगा और स्वयं द्वारा ग्रहण किए गए संस्कारों को हीअपने स्वभाव के अनुसार वो आने वाली पीढ़ी में संचरित करेगा.

श्रीदेवी

अमावस की काली रात ने छुपा लिया है जरुर तुम्हे। पर जुन्हाई कब तक छुपी रहेगी अँधेरे में। न भुला पाएगा जमाना तुम्हे भला चांदनी भी कहीं खोती है। #सुनीता बिश्नोलिया

श्रीदेवी

#श्रद्धांजलि श्रीदेवी उफ़ ! काल के क्रूर हाथ...         एक सितारा लूट गए। देखे थे अपनों ने सपने...         हाय अधूरे छूट गए। 'श्री' लुटाती सौम्य छवि       'सदमा' देकर चली गई। चंदा से निकली चटक 'चांदनी'            बादल में खो गई कहीं। नमन नमन अर्पण सुमन,           मिले  आत्मा को शांति। R.I . #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर          

संस्कार

#संस्कार हर देश की अपनी अलग संस्कृति और संस्कार होते हैं जो व्यक्ति जहाँ रहता है उसे वहीँ की संस्कृति प्रभावित करती है उसका आचरण भी उसी अनुसार होता है। सच ही कहा है बच्चे की प्रथम पाठशाला उसका घर होता है और माँ प्रथम गुरु,और ये बात पूर्णत:सत्य है कि बच्चे पर माँ और परिवार का बहुत प्रभाव पड़ता है। कामकाजी परिवारों में बच्चों को नौकरों के हाथों छोड़ दिया जाता है छोटी उम्र में ही क्रेच या विद्यालय भेज दिया जाता है ऐसे में बच्चे में माँ के अतिरिक्त अन्य लोगों का प्रभाव पड़ता है...और वो सभी समान रूप से संस्कृत हों ये आवश्यक नहीं। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और समाज में रहने हेतु अथवा समाज में रहने के लिए उसे कुछ नियमों अर्थात् संस्कारों की आवश्यकता रहती है।जो वो प्राप्त करता है अपने घर से....अपनी संस्कृति से। कुछ लोग संस्कार और संस्कृति को बिल्कुल अलग-अलग मानते हैं,किन्तु मेरा मानना है कि संस्कार और संस्कृति एक दूजे के पूरक हैं क्योंकि मनुष्य में संस्कारों का पोषण उसकी संकृति से ही पोषित होगा और स्वयं द्वारा ग्रहण किए गए संस्कारों को हीअपने स्वभाव के अनुसार वो आने वाली पीढ़ी में संचरित करेगा.

पत्र संतोष मैम के नाम

#तिथि-20/2/18 आदरणीया,संतोष मैम,         सादर चरण-स्पर्श,   मैंम मैं यहाँ कुशलता पूर्वक रहते हुए ईश्वर से आपकी कुशलता की मंगल कामना करती हूँ। मैंम मुझे आपके द्वारा हम छात्रों पढ़ाने-समझाने और प्यार करने का अन्दाज आज भी याद है...आज भी आपकी मीठी बोली कानों में गूँजती है,गूंजता है आपका हर प्रेरणादायी  शब्द जो आप कक्षा में बोला करतीं थी और प्रार्थना सभा में आपको सुन कर दिन बन जाया करता था। मैम आपका हिंदी के प्रति लगाव और छात्रों में हिंदी भाषा के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना और मुझे अपने हर कार्य का दायित्व संभला देना,मेरी कविताओं की प्रशंसा करना,नित्य लेखन हेतु प्रेरित करना ...जैसे कल ही की बात है।मैम आप मात्र शिक्षा के क्षेत्र में ही नहीं वरन हर क्षेत्र में निपुण थीं, जैसे-अंतर्विद्यालय स्तर पर गायन,वाद-विवाद,भाषण,नाटक आदि हेतु हमपर जितनी  मेहनत करतीं ...शायद उसी का प्रभाव मुझ पर पड़ा है जो मैं भी अपने छात्रों पर आप ही की भांति प्रभाव छोड़ने का प्रयास करती हूँ। मैम मुझे अच्छी तरह याद है..आपकी मेहनत,लगन और निष्ठा देखकर प्रधानाचार्य श्रीमती तारावती भादू ने प्रार्थना सभा में कहा था कि आप ब

धरा

#धरा धैर्य धरा का टूट रहा है,देख हमारे धंधे, स्वयं नष्ट करते वसुधा,तैयार कर रहे फंदे। माँ वसुधा पर फ़ैल रहा है,आज धुँआ विषैला, हाय!तड़पती माँ का तन भी हुआ बड़ा मटमैला। शहरों का विस्तार हुआ और सिमट गए हैं ग्राम, कंक्रीट के जंगल कहो धरा पे,क्यों हो गए हैं आम। आभूषण वृक्षों के माँ के,मानव ना तुम नोचो, नूतन वृक्ष लगा धरती को ,स्नेह-सुधा से सींचो। धरती का क्यों ह्रदय ,चीरते संसाधन पाने को, क्यों पर्वत का अस्तित्व मिटाते बन कर के अनजाने। देखो माँ की कृश काया,आँखों में अश्रु का सागर, फिर भी दे उपहार मनुज को,भरती लालच का गागर। पार कर गई पराकाष्ठा गर धरती के सहने की, अश्रु धार से नष्ट करेगी,जाति मनुज अभिमानी की। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

धोखा

#धोखा कोई तो बताए धोखा कहाँ नहीं होता, परम्परा पुरानी है वर्षों से चली आ रही है हर तरफ .छल,कपट और धोखा है। सब जानते हैं धोखे का परिणाम बुरा ही होता है, कैकई ने धोखे से ऐसा वचन लिया, फिर खुद ही वैधव्य का जहर पिया। रावण ने धोखे से सीता का हरण किया, इसी धोखे ने इसके पुत्रों के प्राणों का वरण किया। राम ने भी सीता को धोखा ही तो दिया था, गर्भवती को घर से निष्कासित जो कर दिया था। आज भी धोखेबाजों से भरी ये दुनिया है कदम-कदम पर धोखा और दगा देती ये दुनिया है। रिश्ते नाते भी भेंट चढ़ गए धोखेबाजों के, अपनों के धोखे के अपरिचित है मिजाजों से। #सुनीता बिश्नोलिया © #जयपुर

#अनाथ

#अनाथ माँ..माँ कहता हुआ बिल्लू जल्दी से घर में घुस गया।माँ ने उसके हाथ में कुत्ते का पिल्ला देखा तो वो चिल्लाई ..फिर ले आए तुम कुत्ता.. मैं इसे नहीं रखने दूँगी चलो छोड़ कर आओ इसे जहाँ से लाए हो। बिल्लू ने बड़ी मिन्नत की माँ इसे भूख लगी है खाना तो खिला दो।माँ का निर्मल मन पिघल गया..वो फटाफट रसोई में जाकर दूध लाई और उसे पिलाने की कोशिश करने लगी पर वो पिल्ला सहमा हुआ था..कूं..कूं कर रहा था..इस पर माँ से रहा ना गया उसने स्नेह से उसके सिर पर हाथ फेरा तो पिल्ला भी यह अपनत्व पाकर निहाल हो गया और चीभ से दूध चाटने लगा। दूध पिला कर माँ ने बिल्लू से कहा जाओ अब इसे छोड़ आओ इसकी माँ इसे ढूंढ रही होगी वो इसे ढूंढ़ते हुए यहाँ आ जाएगी..बिल्लू बोला नहीं माँ वो कभी नहीं आएगी,इसकी माँ को तो किसी गाड़ी ने टक्कर मार दी जिससे वो मर गई ये तो उसके पास बैठकर रो रहा था और बच्चे इसे तंग कर रहे थे इसलिए मैं इसे अपने साथ ले आया । माँ मेरी तरह इसकी भी माँ बन जाओ ना ..ये भी मेरी तरह अनाथ.. इतना सुनते ही माँ ने बिल्लू के मुँह पर हाथ रख दिया और बोली कौन है अनाथ ये तो अब यहीं रहेगा..तुम्हारे साथ। बिल्लू को भी दो वर्ष पूर्

क्या महिलाओं में साक्षरता बढ़ी है

#क्या महिलाओं में साक्षरता बढ़ी है अरस्तू ने कहा था नारी की उन्नति तथा अवनति पर ही राष्ट्र की उन्नति निर्भर करती है। बर्नाड शा का कहना है की किसी व्यक्ति का चरित्र कैसा है,यह उसकी माता को देखकर साफ़ बताया जा सकता है। सुशिक्षित नारी समाज में फैले दुराचार,रुढिवाद और अनाचार को नष्ट करने में सहायक हो सकती है,और इसका प्रमाण हम प्राचीन कल से ही जीजाबाई..रत्नावली आदि के रूप में प्राप्त कर चुके हैं। किन्तु प्रश्न यह है कि क्या महिलाओं में साक्षरता बढ़ी है...अवश्य बढ़ी है। हालांकि इसका प्रतिशत पुरुषों के मुकाबले बहुत कम है। प्राचीन काल में स्त्रियों को भी पुरुषों के समान ही शिक्षा दी जाती थी.....गार्गी,लीलावती,अनुसूया आदि विदुषियों को कौन नहीं जानता। आचार्य मंडन मिश्र की पत्नी ने जगत्गुरु शंकराचार्य को शास्त्रार्थ में बुरी तरह हराया। किन्तु समय -समय पर विदेशी आक्रमण होते रहने के कारण हमारे देश का शैक्षणिक विकास रुक गया... महिलाओं को घरों में कैद होकर अशिक्षा के घूंघट में विवश होकर रहना पड़ा। समाज के कुछ पुरातन पंथियों की स्त्री-शिक्षा की विरोधी सोच के कारण....स्त्री शिक्षा में पिछड़ गई...

#अपराधबोध

#अपराधबोध अपराध बोध उसी व्यक्ति को होता है जिसने अनजाने में अपराध किया हो। जो व्यक्ति जान बूझकर अपराध करता है वो वो मात्र अपराध बोध का भी दिखवा ही करता है। सत्य कह रही हूँ...आप ही बताइए क्या आपने कोई ऐसा व्यक्ति देखा है जो अनजाने किसी जानवर को मारता है और फिर कहता है कि मर गया इसलिए इसे खा ही लेता हूँ..वो हम पर और पर्यावरण पर अहसान जताता है कि पर्यावरण दूषित ना हो इसलिए खा लेना ही ठीक है। घर,परिवार,पड़ोस,समाज,गाँव,शहर ,देश आदि के मध्य जमीन के पीछे लड़ाई अथवा युद्ध हो जाता है..अपराधबोध के नाम पर मात्र अफ़सोस काश सामने वाला मेरी वाणी को हवा ना देता तो लड़ाई और युद्ध होने से बच जाता..किन्तु युद्ध तो हो गया जो विनाश होना था हो गया..बिना सोचे समझे आवेश में इतना बड़ा कदम नहीं उठाया जाता। क्षमा कीजिएअगर एक बलात्कारी,व्यभिचारी कुकृत्य करने के बाद अपराध बोध से ग्रसित होता है तो उसका अपराध अक्षम्य है,क्योंकि काम की ज्वाला उसके अपने हृदय में उत्पन्न हुईं थी ना कि किसी ने उकसाया,अत: ये महाअपराध है..अपराधबोध करने पर क्षमा का तो प्रश्न ही नहीं उठता। धर्मों के नाम पर दंगे,जाति के नाम पर अनुचित मांगे त

वसुधैव कुटुंबकम्

# वसुधैव कटुम्बकम     (गीत) वसुधा कुटुंब हमारा है और हम हैं वसुधा वासी, मिलजुल कर जो रहें धरती माँ हम पर स्नेह लुटाती। छोटे से परिवार में रहते,हिल-मिल जन क्यों सारे, क्यों लगते हैं कहो वो,एक-दूजे को खुद से प्यारे। अपना छोटा सा ही घर क्यों लगता स्वर्ग से सुंदर, क्यों खुशियों के बजते नित,गान भी घर के अन्दर। वसुधा कुटुंब....... एक दूजे के कष्ट में क्यों हर मुख पर दुःख छा जाता, कहो क्यों एक रूठे तो दूजा ,भाई उसे मनात। वैसे ही माँ वसुधा भी तो,घर है हमारा अपना, अखंड और सुंदर धरती का,सबका ही हो सपना। वसुधा कुटुंब... एक धरा है एक है अंबर,रहते चाहे रहते लोग अनेक, सीमाओं के नाम से बंट,क्यों बढ़ा आज इतना मतभेद। मनुज धरा का हर कहता,वसुधा को अपनी माँ, परिवार एक फिर हुआ स्वत: ही सबकी धरिणी माँ। वसुधा कुटुंब..... रक्त का वर्ण भी हर प्राणी का है होता एक सामान, ना हो कोई तुच्छ नजर में और ना कोई महान। जाति-पाति का भेद मध्य ना आए बंधु-बांधव के, वसुधा को कुटुंब समझ,दुःख बाँचे हर मानव के। वसुधा कुटुंब... म्यान से ना तलवार निकालें, देश-धर्म के नाम पर, प्रणों का उत्सर्ग करें हम ,मानवता

कसूर

कसूर (#मात्रा भार-26) गरीब की गरीबी ही उसका कसूर बन गई, चिथड़ों में लिपटी काया ही नासूर बन गई, घूरती निगाहों से बदन छुपाए तो कैसे, आज फिर कोई उन निगाहों की भेंट चढ़ गया। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

आग से सब कुछ स्वाहा होने के बाद....

#मुक्तक(मात्रा भार-30) उस बस्ती में घोर उदासी टूटा था कल काल जहाँ, सिसकती साँसों की वीणा आधी रात में आज वहाँ। अग्नि के विकराल रूप में समा गई कई जानें थीं, सपनों का संसार जहाँ था,आज बना शमशान वहाँ। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

जमाना बदल गया है

#जमाना बदल गया है आज बदले जमाने के दस्तूर सारे, ना फूलों की परवाह मसले जाते हैं सारे। ये बदली हवा है , ये बदली फिजा है, न परवाह किसी को,खुद के सिवा है। हवा का वो चलना,मन में फूलों का खिलना, आज भूले सभी हैं,एक दूजे से मिलना। देशभक्ति की तब एक आंधी चली थी, खुद की भक्ति की अब तो हवा बह रही है। प्यार की मन में सुरभि हवा ही थी भरती, आज खोई है प्यारी सी वो अनुभूति। आज काला धुँआ भी हवा में समाया , मन की कलुषता का मैला हवा में उड़ा या। हवा से सिहर उठता है ,मन ये माना, फिर हवा को विषैला,क्यों करता जमाना। तूफान बनके हवा जब है बहती, तोड़ अभिमान सबका रूप अपना दिखाती। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

बाल कविता

#बाल कविता कक्षा में टीचर ने बोला , टेस्ट तुम्हारा कल लूँगी, गर भूल गए पढ़ना कोई, खबर तुम्हारी फिर लूँगी। घर पर चर्चा करी नहीं, मम्मी की भी सुनी नहीं। जबरन माँ ने बस्ता खोला, खेलें आओ बंटू बोला। गोलू भईया खेले खूब पढ़ना तो वो गए थे भूल हुई रात वो थके बिचारे, सो गए देखते सपने प्यारे। स्कूल गए शामत आई, अब टीचर ने क्लास लगाई। जीरो नंबर देख डर गर गए, गोलू जी के तोते उड़ गए। बीमार है माँ गोलू बोला, भण्डार बहानों का खोला, टीचर ने घर पे फोन लगाया उफ्फ.झूठ बोल गोलू पछताया। कभी ना बच्चो बोलो झूठ, माँ -विद्या जाएगी रूठ। जो सच बोले वो मेवा पाए, झूठा हरदम शीश झुकाए। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

हम भी इंसान हैं

#हम भी इंसान हैं आँखें फाड़ कर यूँ ना देखो हमें, हम भी आदम हैं तुम्हारी ही तरह। देखो साँसें भी चलती हैं हमारी, भूख से आग भी लगती है, सर्दी में हड्डियाँ भी गलती हैं। पर..बहुत अंतर है हमारे बीच, तुम सच में मनुष्य कहलाते हो। हम..लावारिस,भिखमंगे,आश्रयहीन!! तुम्हारे पास चार दिवारी है सिर छिपाने को, अन्नभंडार है क्षुब्धा मिटाने को। पर हम तो मजबूत और मजबूर हैं!!! दो दिन बिन खाए सर्दी की रातें और चुभन भरे दिन सड़क पर ही काट लेते हैं भूख लगने पर मिट्टी फाँक लेते हैं, सर्दी में आकाश ही ओढ़ लेते हैं!! सरकारें आती जाती हैं,हमें नहीं भूलतीं, हर किसी की जुबान पर 'हम' ' मजलूमों' का नाम होता है, संसद में हंगामा और... सुविधाओं का बखान होता है, फिर भी ये फुटपाथ ही हमारा बिछौना, और चद्दर आसमान होता है। #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर (राजस्थान)

संवेदना

#संवेदना मानवीय #संवेदनाओं का कुआँ तो,कब का सूख गया । फँसकर दिखावे में खुद ही ,मनुष्य खुद से खो गया। जाड़े में ठिठुरते लोगों को देख कर,संवेदनाएँ जागती हैं.. काम पर जाते बच्चों के देख वही संवेदनाएं दम तोड़ती हैं। माँ अपने ही बच्चे को झाड़ियों में फेकती है, जानवर नोचते हैं उसे,ये देख शायद..!!!! वो संवेदनशील माँ आँसू भी बहाती है। सड़क पर घायल को देख संवेदनाएँ जाग उठती हैं, उसे बचाने का प्रयास नहीं करते हम, भीड़ बन खड़े रहते हैं..वो तड़पता है मदद के लिए, दम तोड़ने तक उसका...!! हम साथ देते हैं। वीडियो बनाते हैं..सरकारी मदद ना पहुँचने पर अपना, आक्रोश जताते हैं। तोड़-फोड़ आगजनी कर अपनी संवेदनशीलता का परिचय देते हैं। 'बलात्कार' शब्द सुनकर,#संवेदनाओं का ज्वार उमड़ता है, हर कोई पीडिता के घर की और निकल पड़ता है। दुःख जताते,नारे लगाते दोषी को पकड़ने के लिए हिंसा पर उतर आते हैं। 'पीड़िता' की संवेदनाओं के लुटेरे उसके साथ 'सेल्फी' खिंचवाकर संवेदनाओं का परिचय देते हैं। माता-पिता को वृद्धाश्रम भेज कर, समाजसेवी बनने की होड़ भी लगती है। आज #संवेदनाएं 'दिल' में नहीं साहब!!!! बाजार म

बाल विवाह एक कुप्रथा

#बाल विवाह एक कुप्रथा बाल विवाह कुप्रथा है आज आपको प्रत्यक्ष देखी वास्तविक घटना के बारे में बताती हूँ। मेरे पिताजी को पेड़-पौधों लगवाने की धुन सवार रहती थी,राजस्थान में कई जगह उन्होंने पौधे लगवाए थे। उनमें एक जगह है लोहागर्ल जो की उदयपुर के आस पास पड़ता है। उस जगह साल भर लोग तीर्थ स्थान के रूप पे आते रहते हैं तथा वहाँ बारहमासी परिक्रमा हुआ करती है। परिक्रमा पहाड़ों के चारों और जहाँ धूप,पानी की कमी आदि में भी लोग परिक्रमा लगाते। माँ और पिताजी ने प्रधानाध्यापक के पद से सेवानिवृत होने के बाद जैसे सारा जीवन परिक्रमा के मार्ग में पेड़ पौधे लगाने को ही समर्पित कर दिया। उन पेड़ पौधों की रखवाली के लिए उन्होंने व्यक्ति भी नियुक्त किए हुए थे..अपनी पेंशन से वो उन्हें तनख्वाह दिया करते,एक बार घर में एक अंकल जो पेड़ों की रखवाली करते थे आए। शांत रहने वाले पिताजी की अचानक गुस्से से भरी आवाज सुनकर हम चौंक गए। अंकल के जाने के बाद पता चला कि वो दो बेटियों के विवाह के लिए पैसे मांगने आए थे जो कि 7 और 10 वर्ष की थीं। पिताजी ने उन्हें उन बच्चियों की शादी ना करने की सख्त हिदायत दी और दूसरे दिन उनके गाँव पहुँच

भारतीय सेना

धैर्य ,साहस ,शौर्य,वीरता,पराक्रम,और गजब का अनुशासन.....सभी शब्द पूरक हैं भारतीय सेना और सेना के हर जवान। के। सेना के धैर्य की परीक्षा लेते हजारों स्कूली बच्चे..प्रश्नों की झड़ी लगाते बच्चे..एक के बाद दूसरा बच्चा हथियारों की जानकारी लेने को उत्सुक...और उतनी ही उत्सुकता से जवाब देते धैर्य में धरा की बराबरी करते सैनिक।उनके माथे पर तनिक भी थकावट और खिन्नता की सिलवटें नहीं दिखीं। छात्रों को हथियारों की जानकारी और दुश्मनों के बारे में बताते-बताते उनकी आँखों में उत्साह,साहस,वीरता की झलक तथा मस्तिष्क पर पराक्रम से उभरता श्वेद वाह्ह अद्भुत दृश्य था वो।जवानों द्वारा रोंगटे खड़े करने वाला शौर्य प्रदर्शन..अद्वितीय था। इन हाथों में भारत का रखा सूत्र देख कर लगा भारत माँ की तरफ उठती आँखों का जवाब देने में इनकी आँखें ही काफी हैं..धन्य है भारतीय सेना,इतनी चौकस,इतनी फुर्तीली अकल्पनीय। भारतीय सेना के साथ बिताया वो समय ..छात्रों के हृदय में भी जोश का संचार कर रहा था..जयहिंद। #सुनीता बिश्नोलिया

समय का सदुपयोग

#समय का सदुपयोग             समय कभी ठहरा नहीं,चाहे रोके राज रंक,              ये मनमौजी नीर सा बहे छोड़ कर पंक। वास्तव में समय नीर की भाँति निरंतर बहता रहता है। बड़े-बड़ों ने समय को बाँधने का प्रयास किया परन्तु बाँध नहीं पाए। प्रकृति की और से मानव को दिया गया अनमोल तोहफा है समय। जहाँ करोड़पति और रोडपति में अंतर नहीं किया जाता। हम मनुष्य आज भी समय के सदुपयोग की महत्ता नहीं समझ पाए हैं हमारी आदत है आज का काम कल पर टालने की क्योंकि कार्य को समय पर पूरा ना करना तो हम भारतीय यदा कदा भारतीय होने की निशानी मान बैठते हैं और इसके लिए अपनी पीठ भी थपथपाते हैं। समय वो वस्तु है जिसे खोकर प्राप्त नहीं किया जा सकता और हम अपने टाल मटोल करने के स्वभाव के कारण अपने लिए कार्य और समस्याओं का जंजाल खड़ा करते जाते हैं और एक दिन उस जाल में फँस कर छटपटाने लगते हैं किन्तु बाहर निकलने का कोई मार्ग नहीं दिखाई देता।             बीज धरा  की गोद में प्यासा समय बिताए              बरखा आने के तलक बीज खाद बन जाय। अथार्त जब पौधे को जरुरत है तब पानी नहीं मिलता तो वो प्यास के कारण अवश्य मर जाएगा,समय से बरसात न होन