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माटी री सोरम

माटी री सोरम   लिखूं कविता म्हारै गांव री  मुखड़े पै मुस्कान रवैली माटी री सोरम माटी री  काना  बातां आप कैवैली  बातां ऊँची हेल्यां री बै  साथी संग सहेलियाँ री वै  गिणिया करती बैठी तारा भोली बातां पहल्यां री बै गळी-कूंचळ्यां री बातां नै लिखतां आँख्यां खूब बवैली माटी री सोरम माटी री  काना  बातां आप कैवैली।    गुड्डी-गुड्डा ताळ-तळाई ईसर-गोरां खूब जिमाई खेल-खिलौणा बाळ पणै रा   किस्सा है ये अपणैपण रा  रेतीला धोरां री बातां  हाल तकै तो और हुवैली   माटी री सोरम माटी री  काना  बातां आप कैवैली।  तीज-तिवारां ब्याव-सगाई बन्ना-बन्नी म्है बी गाई घूघरिया घमकाया करती म्हारै गाँव  री बूढी ताई भूल्या-बिसर्या गीतां री हिवड़ै सूं रस धार बवैली माटी री सोरम माटी री  काना  बातां आप कैवैली।।  जिण टीबां पै लोट्या करता इण आँख्यां सूं देख्या मरता देख सिमटता गाँव-गळ्यां नै झर-झर-झर-झर आँसू  झरता नई मंजिलां रै सामी पण बूढी हेल्यां खड़ी रैवैली माटी री सोरम माटी री  काना  बातां आप कैवैली।।