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गुरु पूर्णिमा

गुरु पूर्णिमा
        तम खेनें संसार का, देकर सच्चा ज्ञान।
        'सुनीति' करे गुरु वंदना, गुरु हरिये अज्ञान।।
कभी 'विश्वगुरु' के सिंहासन पर आसीत हमारा प्यारा भारत देश। विभन्न संस्कृतियों की संगम स्थली,सांस्कृतिक वैभिन्य होते हुए भी एकता के सूत्र में बंधा है ।
वर्तिका  यद्यपि भारत तथा इसकी संस्कृति महान है किन्तु कई बार ऐसा लगता है जैसे आज भारत में लोगों का अपनी संस्कृति के प्रति लगाव या मोह कम हो रहा है और विदेशी संस्कृति का वर्चस्व बढ़ा है। मेरा मानना है कि हम भारतीयों के सरल स्वभाव एवं सभी देशों की संस्कृतियों को मान एवं सम्मान देने के कारण भी लोग ऐसा कह रहे हैं और सम्मान की कला सीखी हमने संस्कारों से ये संस्कार हमने सीखे माता-पिता एवं गुरुजनों से। 
प्रेम गुरु ही ऐसा व्यक्ति है जो छात्र के जीवन का सर्वांगीण विकास करने के साथ ही अज्ञान रूपी अंधकार में भटक रहे शिष्यों को सही एवं सरल मार्ग दिखाता है।
आषाढ़ माह की पूर्णिमा ही गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाई जाती है। गुरु पूर्णिमा अर्थात गुरु के प्रति श्रद्धा एवं समर्पण का पर्व सच्चे ह्रदय से गुरु का सम्मान एवं पूजन करने का गुरुपर्व। 
माना जाता है कि संस्कृत के प्रकांड पंडित और महाभारत के रचयिता आदि गुरु महर्षि वेद व्यास का जन्म भी गुरु पूर्णिमा के ही दिन हुआ। कहते हैं कि गुरु पूर्णिमा के दिन ही चार वेदों की रचना करने के कारण वे वेदव्यास कहलाए।
जीवन के हर क्षेत्र में गुरु की महत्ता है चाहे वो शिक्षा  नृत्यकला, चित्रकला, पाककला अथवा साईकिल पंचर निकालना ही क्यों न हो गुरु के आशीष और ज्ञान के बिना के बिना कोई भी कार्य संभव नहीं। गुरुनानक, कबीर आदि ने भी अपने दोहों एवं पदों के माध्यम से गुरु को ही हमारे जीवन से अज्ञान रूपी अंधकार को मिटाकर ज्ञान रूपी उजाले से समृद्ध करनेवाला कहकर गुरु की महत्ता को प्रतिपादित किया है।
परिवर्तन संसार का नियम है तथा वे परम्पराएँ जो हमारे तथा समाज के हित में हैं उन्हें मानना हमारा दायित्व है। प्राचीनकाल से ही गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुरु के सम्मान में गुरुकुलों में छात्रों द्वारा विशेष पूजा-अर्चना की जाती थी। वर्तमान समय में हमारे देश में गुरु पूर्णिमा के अवसर पर साहित्य, नाट्य, संगीत,चित्रकला आदि क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण योगदान देनेवाले विशेष व्यक्तियों को सम्मानित किया जाता है।
    "गंगा का सा नीर है,पावन गुरु का ज्ञान।
     ज्ञान-नीर निर्मल करे,मन को पियुष समान।।
#सुनीता बिश्नोलिया

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