सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

संदेश

सुप्रभात #Suprabhat #goodmorning

देता है उपदेश ज़माना        ख़ुद की लेकिन ख़बर कहाँ  दूजों में कमियाँ खोजें पर,         खुद की आती नजर कहाँ।  नुक्ताचीनी के कारण है,          मीठा सबका जीवन रस,  रोग छिपे हैं मीठे में ही          दिखते उनको मगर कहाँ।।  सुनीता बिश्नोलिया

सुप्रभात

सुप्रभात रंग मंच दुनिया सकल,अभिनय करना काम। ईश्वर नाच नचा रहा, बैठा डोरी थाम।।      सुनीता बिश्नोलिया 

सुप्रभात

सुप्रभात🙏🙏💐💐 पिताजी कहते थे अच्छी और बुरी परिस्थियाँ     तो संगिनी होंगी तुम्हारी     इसलिए हर परिस्थिति में मुस्कुराना।      क्योंकि साथियों के साथ मार्ग में हँसकर ना       चलो तो राह मुश्किल होती है     इसीलिए विकट परिस्थियों में भी           मुस्कुराती हूँ     विश्वास का दीप  जलाकर      अंधेरों को ठेंगा दिखाती हूँ।       सुनीता बिश्नोलिया 

मेरी ताकत मेरी कलम

 मेरे जीवन की थाती   कहना चाहती हूँ सब    मौन होने से पहले   चलाना चाहती हूँ कलम   होश खोने से पहले   मेरे शब्द ही मेरा विश्वास,    मेरी थाती हैं,   मैं मिट्टी का दिया   ये जलती बाती है।   प्रकाशित है महल    प्रेम की लौ से मेरे अंतर का,   एक कोने में भर के रखा है    स्वच्छ जल, नील सर का।    बाँटना चाहती हूँ प्रकाश   जो थोड़ा बहुत    आया है मेरे हिस्से,   न होंगे कल.. कोई नहीं    याद तो रहेंगे    मेरे किस्से।   पढ़ती रहती हूँ उसकी लिखी     प्रेम की जो पाती है,    मैं मिट्टी का दिया और    ये जलती बाती है।  सुनीता बिश्नोलिया 

हिंदी दिवस - मेरी पहचान हिंदी

   भारतेंदु हरिश्चंद्र ने कहा  हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं  निज भाषा उन्नति अहे, सब उन्नति को मूल।  बिना निज भाषा ज्ञान के, मिटत ना हिये को शूल"    हिंदी आत्मविश्वास की भाषा है। गांधी जी भी कहते थे हिंदी आम-जन की भाषा है, हिंदी जन-जन को भाषा है। वो कहते थे हिंदी महज भाषा नहीं बल्कि ये हमको रचती है क्योंकि पे हमारे हृदय में बसती है। मेरा मानना है कि विचारों ही अभिव्यक्ति के लिए परिस्थितियों एवं स्थान के अनुकूल विभिन्न भाषाओं का ज्ञान-अनिवार्य है क्योंकि  भाषाएं हमें विश्व के विविध देशों से जोड़ती हैं। अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम होती है भाषा ।    मगर हिंदी हमारी मातृ भाषा है इसीलिए मेरी और आप सभी के मन की भाषा है। ये हमारे मन के सुप्त भावों को जगाकर अभिव्यक्ति हेतु प्रेरित करती हूँ। मन के बंद कपाटों के ताले खोलकर आत्मज्ञान प्राप्ति का सुगम मार्ग प्रशस्त करती है।    हिंदी भाषा किसी अन्य भाषा का विरोध नहीं करती वरन् हर भाषा के शब्दों को निविरोध स्वीकार कर स्वयं में समाहित कर लेती हैं संस्कृत से उपजी हमारी हिंदी भाषा। भारतेंदु हरिश्चंद्र कहते थे.    अंग्रेज़ी पढ़कर जदपि,

कठपुतली

                         प्रेम के धागे में बंधी        थिरकती रही         हर ताल पर।         मेरा संसार थे तुम         और तुम्हारी         उँगलियों से छोड़ी        ढील का सीमित दायरा।         धागे के खिंचाव और         इशारों पर नचाते         मीठे बोलों ने        तुम्हारी तय की हुई         हद में रखा मुझे..!        सागर के हृदय पर         मचलती लहरों को देखकर        जाना         प्रेम नाम बंधन का नहीं..!           और याद कर         अपना अस्तित्व         तोड़ दिए बंधन के धागे।         हाँ.. साथ रहूँगी सदा         पर....        तुम्हारे प्रेम में नाचती         कठपुतली बनकर नहीं।        किनारों से बाहर बहती         लहरों सी।          सुनीता बिश्नोलिया                                                                     

हिंदी प्रेम

 हिंदी प्रेम   रविवार का दिन था फिर भी सुमित्रा खोई हुई थी अपनी किताबों में।    पर रोज की तरह आज वो किताबें पढ़ नहीं रही बल्कि उन्हें अपनी लाइब्रेरी में करीने से रख रही थी ।साथ ही बेटे के दोस्त रवि को उसके एन.जो.ओ की लाइब्रेरी में देने के लिए कहानियों एवं व्याकरण की कुछ किताबें अलग-अलग दो कार्टूनों में रख रही थी ।      तभी दरवाज़े की घंटी बज उठी तो सुमित्रा ने   सोचा - "कौन हो सकता है..? रवि तो शाम को चार बजे आने वाला था।" सोचते हुए सुमित्रा ने दरवाज़ा खोला तो बाहर खड़े लोगों को  पहचानने को कोशिश करने लगी। तभी उनमें से लगभग चालीस वर्षीय व्यक्ति ने उन्हें आगे बढ़कर नमस्कार करते हुए कहा - "नमस्कार मैम... पहचाना मुझे   उसकी बोली सुनते ही जैसे सुमित्रा को सब याद आ गया और वो बोली -" अभय ! कैसे भूल सकती हूँ तुम्हें! "  " मैम मैं भी आपको हर रोज याद करता हूँ।"  ये सुनकर सुमित्रा ने मुस्कुराकर कहा -"सुना है बहुत बड़ी कंपनी में काम कर रहे हो आजकल।   सुमित्रा की बात के जवाब में अभय ने बहुत ही विनम्रता से कहा -" आपकी शिक्षा और संस्कार ही मेरी