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हिंदी प्रेम

 हिंदी प्रेम 
 रविवार का दिन था फिर भी सुमित्रा खोई हुई थी अपनी किताबों में।
   पर रोज की तरह आज वो किताबें पढ़ नहीं रही बल्कि उन्हें अपनी लाइब्रेरी में करीने से रख रही थी ।साथ ही बेटे के दोस्त रवि को उसके एन.जो.ओ की लाइब्रेरी में देने के लिए कहानियों एवं व्याकरण की कुछ किताबें अलग-अलग दो कार्टूनों में रख रही थी । 
    तभी दरवाज़े की घंटी बज उठी तो सुमित्रा ने   सोचा - "कौन हो सकता है..? रवि तो शाम को चार बजे आने वाला था।" सोचते हुए सुमित्रा ने दरवाज़ा खोला तो बाहर खड़े लोगों को  पहचानने को कोशिश करने लगी। तभी उनमें से लगभग चालीस वर्षीय व्यक्ति ने उन्हें आगे बढ़कर नमस्कार करते हुए कहा - "नमस्कार मैम... पहचाना मुझे 
 उसकी बोली सुनते ही जैसे सुमित्रा को सब याद आ गया और वो बोली -" अभय ! कैसे भूल सकती हूँ तुम्हें! "
 " मैम मैं भी आपको हर रोज याद करता हूँ।"
 ये सुनकर सुमित्रा ने मुस्कुराकर कहा -"सुना है बहुत बड़ी कंपनी में काम कर रहे हो आजकल। 
 सुमित्रा की बात के जवाब में अभय ने बहुत ही विनम्रता से कहा -" आपकी शिक्षा और संस्कार ही मेरी सफलता का सूत्र है।" 
 प्रत्युत्तर में सुमित्रा बोली - "ये आपका, बडप्पन है बेटा। 
 अपने साथ आए लोगों से मिलवाते हुए अभय ने कहा -" मैम ये मेरे कुछ मित्र है। इंग्लैंड
में  हम सभी हिंदी क्लब के माध्यम से जुड़े हुए हैं.. इन्हे खास आपसे मिलवाने लाया हूँ ।" 
  इसपर सभी ने सुमित्रा का पुनः अभिवादन किया और सुमित्रा ने भी सभी को स्नेह सहित बैठने को कहा। 
    बातों ही बातों अभय ने बताया कि उसने अपने कुछ मित्रों के साथ मिलकर इंग्लैंड मे हिंदी क्लब' की स्थापना की और इसी के माध्यम से बहुत से भारतीय और अंग्रेज परिवार भी जुड़ गए। 
  अभय ने कहा - " मैम यह सब आप ही की प्रेरणा से संभव हो पाया।" 
  इस पर सुमित्रा बोली - "मेरी प्रेरणा से नहीं  तुम्हारी की लगन और हिंदी भाषा के प्रेम के कारण।" 
 ये सुनकर अभय ने कहा -"  इंग्लैंड में जाकर घर और बाहर पूरी तरह अंग्रेजी में खो गया था मैं.. और मेरा परिवार ।" 
  अभय के मित्र ने भी कहा - "हमें लगा कि हमारे  हिंदी भाषा वृक्ष के पत्ते मुरझा गए ।क्योंकि बच्चों को भारत लाते तो हिंदी ना आने के कारण परिवार के साथ उनकी संवादहीनता बढ़ने लगी।"
 ये सुनकर अभय फिर बोला -"  पीढ़ियों में दूरियां बढ़ने लगी भाषिक शाखाएं तले में समाने लगी।" 
  अभय और उसके मित्र की बात सुनकर सुमित्रा ने कहा -" सच कहते हैं आप अंग्रेजी के प्रवाह में हम इस कदर बह गए कि हिंदी वट वृक्ष के ऊपर नीड़ों में बैठे पक्षियों में पलता प्रेम कम हो गया।" 
   " और विदेश में रहकर तरसने लगे हम हिंदी के मीठे शब्दों के लिए इसीलिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने में समक्ष हमारी हिंदी भाषा को विश्व मानचित्र पर पुनः लाने के उद्देश्य से ही हमने इंग्लेंड में हिंदी क्लब स्थापित किया। "
   अभय और उसके मित्र की बातें सुनकर सुमित्रा की बूढ़ी आँखों में  चमक आ गई और वो बोली - "आज जब अपने देश में ही हिंदी वट वृक्ष ठूंठ होता जा रहा है ऐसे में इंग्लैंड जैसे देश में हिंदी का परचम.. वाह!"
    इसपर अभय के दोस्त ने कहा -" ऐसे घने वृक्ष ठूंठ नहीं हुआ करते मैंम।" 
अभय भी बोल पड़ा - "और हिंदी वटवृक्ष की जड़ें तो इतनी गहरी हैं कि यह मौसम की मार से एक बार मुरझाने जरूर लगा था किंतु मुझे विश्वास है कि ये शीघ्र ही पुनः अपना प्राचीन स्वरूप प्राप्त कर सभी को शीतल छाया प्रदान करेगा।" 
  " हमारे हिंदी क्लब में शनिवार और रविवार को विविध गतिविधियां होती है जिसमें सभी का हिंदी बोलना अनिवार्य है।"
  इस बात के जवाब में सुमित्रा ने खुश होते हुए कहा -" हिंदी के उत्थान के लिए यह बहुत ही अच्छा प्रयास है।" 
 सुमित्रा को किताबों से घिरा देखकर अभय ने इतनी किताबें निकालने कारण पूछा तो पता चला कि वो आज भी पहले की तरह  जरूरत मंदों को किताबें और हिंदी ज्ञान हेतु व्याकरण की किताब देती हैं जैसे बहुत समय पहले उसे भी दी थी। 
   अब अभय और उसके दोस्तों ने अपने यहाँ आने का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा - "मैम आप के प्रेरक विचारों के कारण मैं कभी हिंदी भाषा का मोह त्याग नहीं पाया  इसलिए आपसे आग्रह है कि इस बार हिंदी दिवस के अवसर  पर आप इंग्लेंड आकर हमारा आतिथ्य स्वीकार करें।"
    पहले तो सुमित्रा ने इस बात को सिरे से नकार दिया पर अभय और उसके दोस्तों के हिंदी के उत्थान हेतु हिंदी दिवस के कार्यक्रम के लिए किए आग्रह वो टाल नहीं पाई और वो मुस्कुरा दी। 
सुनीता बिश्नोलिया 
 


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