लोग कहते हैं संस्कार नहीं हैं
ल़डकियों में
बहुत बोलती हैं,
लड़ती-झगड़ती
लड़कियाँ ।
पुरुषों के सामने
चीखती -चिल्लाती
बेशर्म लड़कियाँ ।
पढ़-लिखकर
तोड़ रहीं हैं
मर्यादाएँ ।
बराबरी करना चाहती हैं
पुरुषों की
नौकरी के नाम पर,
देर से आती हैं घर।
नहीं निकालती घूंघट
आजकल की बहुएँ ।
नहीं करती लिहाज
सास -ससुर का
बात करती हैं
अपने हक, अपने अधिकारों की।
संस्कार का पाठ पढ़ाने वाले
देखो
ताक पर नहीं रखी
संस्कारों की गाँठ किसी लड़की ने ।
ना भूली हैं संस्कार,
ना ही मर्यादाएँ तोड़ रहीं हैं
हाँ जान लिया अपने अधिकार और
कर्त्तव्यों के बारे में अच्छी तरह
इसीलिए
उतारकर सड़ी -गली
परंपराओं का टोकरा सर से
आ गईं हैं सड़कों पर
बुलंद कर रहीं हैं आवाज़
गली-मोहल्लों, गाँवों-कस्बों से
शहरों के चौराहों तक।
रोती-धोती या टूटती नहीं
सहती हैं,
तोड़ती हैं डंडे
लड़कियाँ ।
सुनीता बिश्नोलिया ©®
प्रगतिशील लेखक संघ -साहित्यिक यात्रा #लूणा # मेहदी हसन
कितने शर्म की बात है कि महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार और #बलात्कार की दिल दहलाने वाली घटनाओं के बीच कुछ लोग कैसे तटस्थ रह पाते हैं और कुछ खोलकर बैठ जाते हैं अपने ज्ञान का पिटारा ।
सवाल उठाने लगते हैं लड़कियों के रहन -सहन उनकी पढ़ाई -लिखाई, उनके कपड़ों पर । संस्कारों का पाठ पढ़ाने को आतुर लोग उन्हें घर से बाहर न निकलने की सलाह देते हुए सीधे सवाल उठाते हैं.... इस समय...!! यहाँ.. !!
क्यों..? घर में कोई ओर नहीं था ? सुना है ये खुद ऐसी ही है।
परिवार के साथ जाती महिला, पति अथवा रिश्तेदार के साथ घूँघट में जाती महिला, खेत में काम करती या खेत से लौटती महिला और लड़कियाँ ।
कैसे संस्कारहीन हो सकती हैं, कैसे तोड़ सकती है तीन, पांच, चार.... साल की बच्ची मर्यादा !!
क्यों रात के अँधेरे में जला दी जाती हैं लड़कियाँ
#बलात्कारी को मानसिक रोगी कहकर बचाने वालों अगर वो मानसिक रोगी ही होता तो अपने बल का प्रयोग पराई महिलाओं पर ही क्यों करता?
#नदी
नदियों सी पावन
बाधाओं को तोड़
कलकल-छलछल बहकर
अलमस्त आगे बढ़ती
लड़कियाँ
जरुरत है मानव को
पानी की जीवन के लिए
फिर क्यों गाद-गंध
से भर मैली कर दी जाती हैं?
सूख जाती हैं वो नदियाँ
और विलुप्त हो जाती हैं
सरस्वती सी
आखिर कब तक...
दम तोड़ती रहेगी
सरस्वती?
बचाना होगा... सरस्वती को
अकाल मौत से ।
लिखना होगा काल
बलात्कारी के जीवन में
तड़पाना होगा उसे भी
पल -पल क्षण -क्षण......
अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस संबंधी लेख
सुनीता बिश्नोलिया
मेरे पसंद की कविताएं , मुझे अच्छी लगती हैं लड़कियां, संस्कारों की परिभाषा बदलती लड़कियां ...
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद सखी 🌹 🌹 🌹 🌹 🌹 🌹 🌹 🌹
हटाएंNice
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
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