कृष्ण- मुक्तक
हृदय में बस गया तेरा रूप जग से निराला था
तेरे खातिर मेरे कान्हा पिया विष का पियाला था
बस इक तेरा भरोसा था लड़ गई मैं ज़माने से
संभालो आज भी मुझको सदा जैसे संभाला था।।
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मेरे कृष्णा मनोहर सुन तेरी ये बाँसुरी बैरन
इसकी धुन सुन मोहना मैं भूल जाती कहाँ साजन
उलाहने देती ननदी है बावरी कौन है आई
मन से आराधना बचा रखना मेरा दामन।।
सुनीता बिश्नोलिया
जयपुर
अति सुंदर रचना दीदी।👌👌🌹🌹
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
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