वर्तिका...नारी रूप नारी अस्मिता अनोखी छिछली नदी का ना ठहरा हूँ पानी, बहती नदी सी है, मुझमें रवानी थाह अंतर का मेरे ना तुम पा सकोगे बतला दूँ तुमको, मैं अपनी कहानी अंबर सी विस्तृत हूँ उजली ज्यों दर्पण प्यार मुझपे लुआओ, मैं कर दूँ समर्पण धीरज में धरती को, छोड़ा है पीछे रक्त अपने से मैंने, लाल अपने हैं सींचे रक्त माँ के मेरी से, बनी मेरी काया प्यार से मुझसे मांगो,दूंगी शीतल मैं छाया। मैं प्यासा हूँ सागर,प्यार का किन्तु गागर करती सम्मान लेकिन,सिमटूं ना ओढ चादर। मन में आशा मेरे है, मैं आशा की जाई फूल मन में खिले मैंने खुशियाँ लुटाई अंक मेरे में खेलो, गले से लगा लो ममता मुझमें भरी, प्यार मेरे को जानो मैं नाजुक कली हूँ,कचनार जैसी कोमल नहीं हूँ, मैं तेज तलवार जैसी सुप्त सागर के दिल में,लहरों सी चंचल, तेज तूफां में भी हूँ, स्वयं अपना संबंल मैं गहरी गुफा हूँ,अनसुलझी पहेली गर्व दुष्टों का तोड़े,मुख पे खेले सहेली। केश राशि को खोलूँ,करती हूँ मैं प्रतिज्ञा उनको घुटनों पे ला दूँ,जो करता अवज्ञा। मीठे पानी की बदली,नेह बरसाती ऎसे मुक्त मेघों में हँस