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संदेश

#नश्वरजीवन #सुप्रभात #goodmorning

नश्वर जीवन जीवन के इस सत्य को, कर मानव स्वीकार। माना मृत्यु अटल है, यों ना जीवन हार। सुनीता बिश्नोलिया जीवन के इस सत्य को, कर मानव स्वीकार। माना मृत्यु अटल है, यों ना जीवन हार। सुनीता बिश्नोलिया

#सुप्रभात #goodmorning #वसुधैव कुटुंबकम

वसुधैव_कुटुंबकम     साँस-साँस की आस में, मन-मानस हों पास।    दूरी से कड़ियाँ जुड़े, सब अपने सब खास।।       सुनीता बिश्नोलिया जीवन के इस सत्य को, कर मानव स्वीकार। माना मृत्यु अटल है,  पर ना जीवन हार। सुनीता ©®

मातृ दिवस #माँ - - - एक माँ ऎसी भी - श्रमसाध्या

श्रमसाध्या दो वक्त की रोटी को बिटिया,               श्रम करना नहीं मज़बूरी है, कातर न जमाना कह पाए,              'श्रमसाध्या' हूँ कर्म जरुरी है। इन प्रस्तर के टुकड़ों में,                मैं भी मजबूत बनी पत्थर, थामी हथौड़ी  हाथों में,                फैलाऊँ न किसी दर पर। तुम्हें जेठ माह की गर्मी में,                शीतलता मेरा ह्रदय देगा, मैं दुग्ध का पान कराऊँ तुम्हें,                 दो बूंद तो दूध बना होगा। मैं धूप में जलता एक तरु,                   पर  तेरी छाया हूँ बिटिया। संघर्ष ज़माने से कर लूँ,                  इस अंक में तुझको भर बिटिया। अंतर में छिपालूँ तुझे लाडली,                  ये जग बैरी न  देख  सखे, 'नरभक्षी'.. नजरें लाडो,                कोमल तेरी काया छू  न सके। चंदा की उजली किरण तुझको,              मैला न कोई कहीं कर जाए, पत्थर सी ठोस तुझे कर दूँ                 बन सूर्य किरण जग पे छाए। मेरी माँ #सुनीता बिश्नोलिया

वर्तिका - रूप नारी का

वर्तिका...नारी रूप  नारी अस्मिता अनोखी छिछली नदी का ना ठहरा हूँ पानी,   बहती नदी सी है, मुझमें रवानी थाह अंतर का मेरे ना तुम पा सकोगे   बतला दूँ तुमको, मैं अपनी  कहानी  अंबर सी विस्तृत हूँ उजली ज्यों दर्पण  प्यार मुझपे लुआओ, मैं कर दूँ समर्पण  धीरज में धरती को, छोड़ा है  पीछे  रक्त अपने  से मैंने, लाल अपने हैं सींचे रक्त माँ के मेरी से, बनी मेरी काया  प्यार से मुझसे मांगो,दूंगी शीतल मैं छाया।  मैं प्यासा हूँ सागर,प्यार का किन्तु गागर  करती सम्मान लेकिन,सिमटूं ना ओढ चादर। मन में आशा मेरे है, मैं आशा की जाई  फूल मन में खिले मैंने खुशियाँ लुटाई अंक मेरे में खेलो, गले से लगा लो  ममता मुझमें भरी, प्यार मेरे को जानो मैं नाजुक कली हूँ,कचनार जैसी  कोमल नहीं हूँ, मैं तेज तलवार जैसी सुप्त सागर के दिल में,लहरों सी चंचल, तेज तूफां में भी हूँ, स्वयं अपना संबंल मैं गहरी गुफा हूँ,अनसुलझी पहेली  गर्व दुष्टों का तोड़े,मुख पे खेले सहेली।  केश राशि को खोलूँ,करती हूँ मैं प्रतिज्ञा  उनको घुटनों पे ला दूँ,जो करता अवज्ञा। मीठे पानी की बदली,नेह बरसाती ऎसे  मुक्त मेघों में हँस

फिर आएगा वसंत - कहानी

‘‘ फिर आएगा वसंत ’’      चम्पा चमेली, गेंदा, गुलाब..... ना जाने कितनी तरह के पौधे लगे हैं, इस बगीचे मेंं।     हर क्यारी फूलों से गुलजार है हर डाली पर फूल खिले हैं । इठलाते गुलाब और शान दिखाते गेंदे को छोड़कर बगीचे में जिधर भी नज़र घुमाकर देखें तो लगता है हम स्वर्ग में ही आ गए हैं।इतनी सुन्दर क्यारियां,पौधों की इतनी सुन्दर कटिंग, कहीं झांकते नव-पल्लव तो कहीं कलियाँ और फूल।       हँसती हुई कलियों और फूलों के बीच चंदा की पायल सी खनकती हँसी और साथ ओहो..कहते हुए चंदा के पिताजी की बहुत ही  शांत हँसी ने वातावरण में मनुष्य की उपस्थिति का अहसास करवाया है।  भाई के किए का मजाक बनाते हुए बाबा की लाडली चंदा बाबा को एक गुलदस्ता दिखाकर कहती हैं - ‘‘बाबा देखों ना मन्नू ने क्या किया है। (हँसते हुए) गुलाब में गेंदेओर गेंदे में गुलाब के फूलों को मिलाकर रख दिया। पागल कहीं का। ऐसे भी भला कोई गुलदस्ता बनता है।      लाडली चंदा बिटिया की बात पर हँसते हुए झाबर बोला- ‘‘कहाँ खोये रहते हैं ये माँ-बेटे चल अब कोई बात नहीं, आज ही किया है ना  तो तू इसे सही कर दे।’’     ‘‘हाँ बाबा, अभी लगा देती हूँ। आप उस

बसंती आई रुत मनभावणी हिलमिल गावां ये- वसंत गीत राजस्थानी

वसंत - गीत  क्यारी-क्यारी फूलङा,अब रंगां रो राज।  पतझङ रा दिन बीतिया,आय गया रितुराज।।  वसंत का सौंदर्य आएगा वसंत   चंपा और चमेली महकै,      महकै फूल हजार,  मोर-पपईयां री बोली ज्यूं,  झांझर री झणकार।।  बसंती....बसंती आई रुत मनभावणी,   रळ-मिल गावां ये।  1 रूप खिल्यो धरती रो देखो,         बिखर् या कितणा रंग,  देख बसंती बालम मन मैं,     बाजण लाग्या चंग।-2  पीळा और पोमचा ओढ्यां,     कर सोळा सिणगार,  मुळकै धरती पैर नोलखो,   फूलां वाळो हार।।  बसंती....बसंती आई रुत मनभावणी,      रळ-मिल गावां ये। ।।  2.ऊँचा-नीचा टिबङियां री,                 सोनै बरगी रेत,    मुळक रह्या सै देख बसंती,               सरसूं वाळा खेत।  भँवरा और तितळियां उङ-उड,             घणी करै मनवार,  धोरां री धरती इतरावै,             ज्यूं मतवाळी नार।।  बसंती....बसंती आई रुत मनभावणी,  रळ-मिल गावां ये।।   वसंत का सौंदर्य 3.रूंखा रो बी मनङो हरखै,                आया काचा पान चालै भाळ बसंती छेङै,               फागणिये री तान, क

खुलकर कुछ बातें हों जाएँ- कवयित्री प्रज्ञा श्रीवास्तव

कवयित्री प्रज्ञा श्रीवास्तव की बेहतरीन कविताएँ  खुलकर कुछ बातें हो जाएं दिल करता है कभी-कभी बंद पड़े हैं जो बरसों से भीतर तन्हा घुटे -घुटे से  उलझे किस्सों को सुलझाएं दिल करता है कभी-कभी छतरी ताने छत के ऊपर सन्नाटे में धूप खड़ी है कुछ पल उसके साथ बिताएं दिल करता है कभी-कभी चखकर मीठी यादों को खोल दें सांकल अपनेपन की खिलकर महकें मुस्काएं दिल करता है कभी-कभी प्रज्ञा जिंदगी की किताब में खुशी, ख्वाब, ख्याल,ख्वाहिशें लिखा तो बहुत कुछ था पर छपते-छपते  कुछ यूं छप गया दुख, दर्द, दहशत, दवाब कहीं-कहीं छपा था आशा, विश्वास, त्याग, तपस्या जैसी बातें मजबूरी की पुनरावृत्ति प्यार का पूर्ण विराम जीवन के रिक्त स्थान में मौत जो मरती नही रूठ जाती है जिंदगियों से प्रज्ञा श्रीवास्तव