खुलकर कुछ बातें हो जाएं
दिल करता है कभी-कभी
बंद पड़े हैं जो बरसों से
भीतर तन्हा घुटे -घुटे से
उलझे किस्सों को सुलझाएं
दिल करता है कभी-कभी
छतरी ताने छत के ऊपर
सन्नाटे में धूप खड़ी है
कुछ पल उसके साथ बिताएं
दिल करता है कभी-कभी
चखकर मीठी यादों को
खोल दें सांकल अपनेपन की
खिलकर महकें मुस्काएं
दिल करता है कभी-कभी
जिंदगी की किताब में
खुशी, ख्वाब, ख्याल,ख्वाहिशें
लिखा तो बहुत कुछ था
पर छपते-छपते
कुछ यूं छप गया
दुख, दर्द, दहशत, दवाब
कहीं-कहीं छपा था
आशा, विश्वास, त्याग, तपस्या
जैसी बातें
मजबूरी की पुनरावृत्ति
प्यार का पूर्ण विराम
जीवन के रिक्त स्थान में मौत
जो मरती नही
रूठ जाती है जिंदगियों से
प्रज्ञा श्रीवास्तव
Kaya baat h.
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
हटाएं🌸🌸🌼🌼🌼👌
जवाब देंहटाएं🙏🙏🙂
हटाएं🌸🌸🌼🌼🌼👌
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