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वसंत का सौंदर्य

वसंत का सौंदर्य क्यों मनाते हैं वसंत पंचमी अधूरी इच्छा छाई है तरुणाई तिस पर,             रूप सजा अलबेला,  सजी धजी धरती दिखे,           पहना वसंत दुशाला।  देख धरा की कोमल काया,              मन डोले मतवाला  बिना गए मधुशाला ही,            चढ़ी ग़ज़ब की हाला।  राजस्थानी गीत - बसंती आई रुत मनभावणी घूंघट में ना सिमट रही,            रूप की मादक ज्वाला,  आज गगरिया छलक रही,         पी मधुमास का प्याला। सुनीता बिश्नोलिया जयपुर 

दोहे - वसंत

दोहे - वसंत  क्यों मनाते हैं वसंत पंचमी माँ वसुधा  मुस्का रही, देखे रंग हजार।  ऋतु वसंती आ गई, लेकर संग बाहर।1।  सौरभ से महके धरा,सुमन खिले हैं अंक। मात धरा की नजर में, सम हैं राजा रंक।2। चूनर ओढ़े प्रीत की वसुधा रही लजाय।  देख वसंती साजना,रोम-रोम खिल जाए।3।   झांझर पैरों में पहन, उड़ा रही है धूल।  मन ही मन मुस्का रही,बनी कली से फूल।4।  खग भी कलरव कर रहे, बैठ विटप की डाल। वन-उपवन फुल्लित हुए, पुष्प सजे तरु भाल।5।  मंद - पवन यों चल रही, ज्यों सरगम के साज़।  करते स्वागत सुमन हैं, आओ जी ऋतुराज।6। भूली धरती दर्द को, पूरी होती आस।  खुशियों वाले रंग ले,आया है मधुमास।7।  सुनीता बिश्नोलिया जयपुर 

क्यों मनाते हैं वसंत पंचमी कितनी सुंदर है ऋतु वसंत

पढ़ें- वसंत - दोहे वसंत का सौंदर्य वसंत ऋतु  "अपनी आभा से धरती को करने को गुलजार   सुमन धरा पर खिले संग ले, सतरंगी संसार, पहन हरित वसन बसंत ने,जीवन दिया धरा को मंद पवन संग उड़ -उड़कर,भर देती घर द्वार ।।" दोहे - वसंत               कहीं गर्मी में झुलसते मानव तो कहीं हिमाच्छादित रातों में ठिठुरते जन पर  धन्य हैं हम जिन्होंने जन्म लिया भारत विशाल में।            इसकी स्वर्ग सी धरती पर सदा चक्र गतिमान रहता है षड्ऋतुओं का। ग्रीष्म, वर्षा,शरद, हेमंत,शिशिर और वसंत अर्थात विभिन्न रूपों और प्रकृति की क्रीड़ा स्थली हमारा देश भारत।         प्रकृति के रूप और सौन्दर्य का शृंगार करती है ये छः ऋतुएँ। हर ऋतु की अपनी विशेषता और अपना महत्त्व, जहाँ ग्रीष्म की गर्मी से तप्त भूमि को सींचकर शीतल करती है वर्षा और वर्षा के प्रभाव से शीतल भूमि पर ठिठुरन पैदा करती है शरद।प्रकृति द्वारा शिशिर पर कुर्बान अपने हर तरुवर के पात पुनः आते हैं शिशिर की विदाई के साथ ऋतु वसंत में अर्थात्‌ शीत ऋतु में पतझड़ के कारण अपना सौन्दर्य खोकर ठूंठ हो चुके पेड़ और लताएँ मुस्कुर

गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

  गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं " भूलोक का गौरव प्रकृति का लीलास्थल कहाँ,  फैला मनोहर गिरी हिमालय और गंगाजल जहाँ सम्पूर्ण देशों से अधिक किस देश का उत्कर्ष है,  उसका कि जो ऋषि भूमि है,वह कौन ? भारत वर्ष है।।"          हिमालय जिसका मुकुट और गंगा यमुना  जिसके हृदय का हार है, विंध्याचल जिसकी कमर है तो कन्याकुमारी इसके चरण। कश्मीर से कन्याकुमारी तक प्राकृतिक लावण्य तथा अद्वितीय सौंदर्य के स्वामी मेरे भारत की जय।    जिसका यशगान गाते नहीं थकते कवि,   सियाचिन की गला देने वाली ठंड हो या जैसलमेर का जला देने वाला ताप इसके पहरे में नहीं रखते कमी इसके वीर।     कोटि-कोटि नमन मेरे देश को, तथा समस्त देशवासियों 72 वें गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।  भारत के तीन महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पर्वों में एक है गणतंत्र दिवस जो प्रति वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है।             आज़ादी के पश्चात ड्राफ्टिंग कमेटी को 28 अगस्त 1947 को भारत के स्थायी संविधान का प्रारूप बनाने जिम्मेदारी सौंपी गई। 4 नवंबर 1947 को डॉ. भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता में भारतीय स

सर्दी की रात

सर्दी की रात घने कोहरे से लिपटी रात... सांय-सांय करतीसर्द  हवाएँ  ए.सी वाली गाड़ी में बैठ देर रात घर लौटते,कुछ ऐसा देखा, और मैं सिहर गई, खेत में नहीं आज फुटपाथ पर सोता #हल्कू देख रुक गई।  जबरा तो नहीं... हाँ फुटपाथ पर सोते उन लोगों को गर्माते साथी कुत्ते देखे। दांत किट-किटाती सर्दी में वो एक दूसरे का सहारा बने थे, सिकुड़ कर सोये ठण्ड में काँपते सोने की असफल कोशिश करते आदमी के साथ चिपका हुआ उसके शरीर को गर्माता,खुद को बचाता शायद उसके लिए भी सर्दी का आसरा वो समझ नहीं आ रहा था  आखिर कौन किस का आसरा ले रहा है? आधी रात ओस से भीग चुकी,  बीसियों छेद वाली  कंबल में  खुद को लपेटता वो मजबूर।   स्वयं को बहुत कोसा...उसकी दशा से पीड़ित सी महसूस कर  अपनी शाल उढ़ा कर चली आई।  पर एक...को!!!! आँखों में अश्रुधार और प्रश्न लिए  किसी को क्यों नहीं दिखता ये हल्कू....??? profile #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर

युवा दिवस-स्वामी विवेकानंद जयंती

उठो जागो  और तब तक मत रुको जब तक तुम्हें अपने  लक्ष्य की प्राप्ति न हो जाए । स्वामी विवेकानंद _      आदर्श  विश्व के  अजर -अमर,        ज्ञान-ज्योति दी जग में भर।        थी तीक्ष्ण बुद्धि और ह्रदय विशाल,          विवेक भरा भारत का लाल।         स्वामी विवेकानंद का नाम आते ही मष्तिष्क में एक उत्साही,ऊर्जावान ,बुधिमान युवा की तस्वीर उभर आती है जिसने अपने ज्ञान ,विवेक और अभिव्यक्ति कौशल के द्वारा  विश्व पटल पर भारत की अमिट छाप छोड़ी । अंग्रेजी शासन काल में शोषित मानवीयता के मध्य  12 जनवरी, 1863 ई. में कोलकाता के एक क्षत्रिय परिवार में श्री विश्वनाथ दत्त के यहाँ नरेंद्र नाम के बालक ने जन्म लिया  जिसने भारत के लोगों का ही नहीं वरन  पूरी मानवता का गौरव बढ़ाया । ओजस्वी व्यक्तित्व ,ओजपूर्ण शैली तथा अपने विवेक से उन्होंने सम्पूर्ण  विश्व को  भारत के अध्यात्म का रसास्वादन कराया । विश्वनाथ दत्त कलकत्ता हाई कोर्ट के नामी वकील थे । बचपन से ही मेधावी नरेन्द्र ने 1889 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर कोलकाता के ‘ जनरल असेम्बली ’ नामक कॉलेज में प्रवेश लिया । यहाँ उन्होंने इतिहास, दर्

नारी अब कमज़ोर नहीं

दोहे  नारी, बेटी  चंदा की सी चाँदनी,मुस्काए मन मंद । नारी जलता दीप है,तम हरती क्षण चंद ।। बिटिया बाबुल घर खिले, बनकर उजली धूप। बाबुल को खुशियाँ मिली,देख सलोना रूप।। नारी ने है तोड़ दी,बूढी -रूढी आज। बिजली बन आगे बढ़ी,आँचल में भर लाज।।  कोय समझ पाया नहीं ,नारी का व्यवहार, रूप कभी है कामिनी,समझो तेज कटार   चंचल  चिड़िया बाग की,उड़ती खोले पाँख। छोड़ नीड़ जब वो उसे,भीगे हर इक आँख।।  कोय समझ पाया नहीं ,नारी का व्यवहार।  रूप कभी है कामिनी,होती तेज कतार।।  है लक्ष्मी का रूप वो,काली का अवतार।  सहती लोगों के नहीं,खुद पर अत्याचार।।  #सुनीता बिश्नोलिया #जयपुर