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सुप्रभात #suprbhat #सुप्रभात #goodmorning

सुप्रभात 🙏🙏#नमस्कार दोस्तों #स्वस्थ रहें #मस्त रहें 🌹🌹🌹🌹🌻🌻🌻 सृष्टि की रचना से अब तक धरा पर  विपदा के सागर कितने ही आए।  विपदा के आगे मगर ना कभी भी  कदम उठ गए जो पिछले हटाए।  खड़े हो गए काल के जाके सम्मुख  हमें काल से फिर, टकराना होगा।। #सुनीता बिश्नोलिया #सुनीति #जीवनजय

#Corona कोरोनाकाल में हिम्मत प्रदान करती कविता - #हरिवंशरायबच्चन

नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्णान फिर-फिर! वह उठी आंधी कि नभ में छा गया सहसा अंधेरा, धूलि धूसर बादलों ने भूमि को इस भांति घेरा, रात-सा दिन हो गया, फिर रात आ‌ई और काली, लग रहा था अब न होगा इस निशा का फिर सवेरा, रात के उत्पात-भय से भीत जन-जन, भीत कण-कण किंतु प्राची से उषा की मोहिनी मुस्कान फिर-फिर! नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्णान फिर-फिर! चित्र आभार वह चले झोंके कि कांपे भीम कायावान भूधर, जड़ समेत उखड़-पुखड़कर गिर पड़े, टूटे विटप वर, हाय, तिनकों से विनिर्मित घोंसलो पर क्या न बीती, डगमगा‌ए जबकि कंकड़, ईंट, पत्थर के महल-घर; बोल आशा के विहंगम, किस जगह पर तू छिपा था, जो गगन पर चढ़ उठाता गर्व से निज तान फिर-फिर! नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्णान फिर-फिर! क्रुद्ध नभ के वज्र दंतों में उषा है मुसकराती, घोर गर्जनमय गगन के कंठ में खग पंक्ति गाती; एक चिड़िया चोंच में तिनका लि‌ए जो जा रही है, वह सहज में ही पवन उंचास को नीचा दिखाती! नाश के दुख से कभी दबता नहीं निर्माण का सुख प्रलय की निस्तब्धता से सृष्टि का नव गान फिर-फिर! नीड़ का निर्माण फिर-फिर, नेह का आह्णान फिर-फिर! स

सूरमा - रामधारी सिंह ' दिनकर' - # पाठ्यपुस्तक - # नई आशाएँ

पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '-    सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर '    सूरमा - रामधारी सिंह 'दिनकर' सच है विपत्ति जब आती है,     कायर को ही दहलाती है |    सूरमा नहीं विचलत होते,     क्षण एक नहीं धीरज खोते |   विघ्नों को गले लगाते हैं,       काँटों  में राह बनाते हैं |    मुँह से कभी ना उफ कहते हैं,    संकट का चरण न गहते हैं |    जो आ पड़ता सब सहते हैं,     उद्योग- निरत नित रहते हैं |    शूलों का मूल नसाने हैं ,     बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं |         है कौन विघ्न ऐसा जग में,      टिक सके आदमी के मग में?      खम ठोक ठेलता है जब नर,     पर्वत के जाते पाँव उखड़ |     मानव जब जोर लगाता है,      पत्थर पानी बन जाता है |           गुण बड़े एक से एक प्रखर,       हैं छिपे मानवों के भीतर       मेहंदी में जैसे लाली हो,       वर्तिका बीच उजियाली हो |      बत्ती  जो नहीं जलाता है,      रोशनी नहीं वह पाता है |     कवि परिचय -    #रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमर

नारी - सहनशील है धरती की तरह

नारी - सहनशील है धरती की तरह नहीं अब नहीं..  नहीं  है नारी बेचारी !    गौर से देखो पालती है जग  को    पालनहारिणी है हर नारी !   ज़रा समझो,  ज़रा झांको तो इतिहास में           जो  भरा  है  नारी के बलिदान की गाथाओं से,  चाहे हो वह स्वतंत्रता आंदोलन  या कोई हो हक की जंग!    हर किरदार  में श्रेष्ठ, नारी ने,     किया था अथक परिश्रम    जो करती है नव सृजन,   धन्य है ये जग  पाकर माँ की ममता की छांव।     ईश्वर भी  ऋणी है उसका    कितनी सबल कितनी प्रबल है नारी!   फिर भी लोग कहते हैं  इसे बेचारी!   देख लो ज़रा नजर घुमाकर  किरण बेदी ,भावना कांत  जैसी सक्षम नारी   देती हैं पुरुषों को भी  मात   सहनशीलता है धरती की तरह ,   पर .. ना करना इसके अहं पर चोट   वरना  बहुत पछताओगे,  कब सीता से काली बन जाए,   एहसास भी ना कर पाओगे!   एहसास भी कर ना पाओगे! भूमिका_ सिंह_ जयपुर मुश्किल घड़ी माँ का साथ माँ की सीख

माँ का साथ #माँ - Vaishnavi

माँ का साथ  एक दिन मीनू रास्ते से जा रही थी | तभी सड़क के किनारे उसे किसी के रोने की आवाज़ आई | उसने देखा की एक बूढी औरत रो रही थी | मीनू ने उनसे पूछा "क्या हुआ दादीमा? आप इस तरह क्यूँ रो रही हैं?" उन्होंने कहा "मेरे बहु-बेटे ने मुझे घर से बाहर निकाल दिया है | वह कहते है की मैं उनके लिए बोझ हूँ |" मीनू को यह सुनकर अच्छा नहीं लगा | वह उन्हें अपने साथ अपने घर ले गई | जब उसने यह बात अपने माता पिता को बताई तो उन्होंने कहा " बेटी हम भी इन्हें हमारे साथ रखना चाहते हैं पर तुम तो जानता हो की हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है | मेरा काम भी अच्छा नहीं चल रहा है | पहले ही घाटा हो चुका है | और जो कुछ भी मैं कमा रहा हूँ वो भी घर चलाने के लिए काफी नहीं | एक और सदस्य का खर्चा कैसे उठा सकते हैं |"  मीनू उदास थी पर काफी चर्चा के बाद  दादीमा को वृद्धआश्रम ले जाने का फैसला हुआ | उन लोगों पर बोझ ना बनने के लिए, दादीमा ने भी सहमति दे दी | कुछ दिनों बाद एक वृद्धआश्रम का बंदोबस्त कर उन्हें वहाँ छोड़ आए | मीनू उदास रहने लगी | परंतु कुछ समय बाद अचानक मानो क

कोरोना काल का मुश्किल दौर - मुश्किल घड़ी #corona हिम्मत और हौंसला बनाए रखने के लिए पढ़ें ये गीत

मुश्किल घड़ी - कोरोना काल. #Corona  मुश्किल   घड़ी   दौर   मुश्किल  बड़ा है  मगर  मुश्किल ों से निकलना पड़ेगा ।              भंवर में फँसी नाव को भी तो पहले               बुद्धि के बल पर तुम्हीं ने निकाला।              आशा का दीपक मन में जलाकर               सागर में नैया को तुम्हीं ने संभाला।               काल की तरहा उठती लहरों में डटकर               पार  मुश्किल  ये सागर करना पड़ेगा।।  सृष्टि की रचना से अब तक धरा पर  विपदा के सागर कितने ही आए।  विपदा के आगे मगर ना कभी भी  कदम उठ गए जो पिछले हटाए।  खड़े हो गए काल के जाके सम्मुख  हमें काल से फिर, टकराना होगा।।              सदा  मुश्किल ों पर विजय होती आई              जय आगे भी होगी होती रहेगी।              जगमग जले जोत एेसी बिखेरो              जोत तूफान में भी जलती रहे एेसी              आशा की बाती बुद्धि का दीपक              सागर के उर पर जलाना पड़ेगा।।  सुनीता बिश्नोलिया  जयपुर 

ईद मुबारक eidmubarak

ईद मुबारक    झोली भर उम्मीद,      रोशनी आशाओं की लेकर चाँद ईद का  हँसे गगन में      उजली किरणें बिखराकर।