पाठ्यपुस्तक नई 'आशाएँ '-
सूरमा(कविता) - रामधारी सिंह 'दिनकर '
सच है विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है |
सूरमा नहीं विचलत होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते |
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं |
मुँह से कभी ना उफ कहते हैं,
संकट का चरण न गहते हैं |
जो आ पड़ता सब सहते हैं,
उद्योग- निरत नित रहते हैं |
शूलों का मूल नसाने हैं ,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं |
है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके आदमी के मग में?
खम ठोक ठेलता है जब नर,
पर्वत के जाते पाँव उखड़ |
मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है |
गुण बड़े एक से एक प्रखर,
हैं छिपे मानवों के भीतर
मेहंदी में जैसे लाली हो,
वर्तिका बीच उजियाली हो |
बत्ती जो नहीं जलाता है,
रोशनी नहीं वह पाता है |
कवि परिचय -
#रामधारी सिंह 'दिनकर '-- हिंदी के प्रमुख कवि लेखक और निबंधकार थे। उनका जन्म 1908 में बिहार राज्य के बेगुसराय जिले में सिमरिया गांव में हुआ था। वे आधुनिक युग के वीर रस के श्रेष्ठ कवि के रूप में स्थापित हैं। वे स्वतंत्र भारत के राष्ट्रकवि के नाम से विख्यात हैं। उनकी कविताओं में ओज, विद्रोह आक्रोश और क्रांति की पुकार है। दिनकर जी की रचना 'उर्वशी' के लिए उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त हुआ। उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार भी प्रदान किया गया था और पद्म विभूषण की उपाधि से अलंकृत किया गया। कुरुक्षेत्र', परशुराम की प्रतीक्षा', 'रेणुका', 'हुंकार', 'रश्मिरथी' आदि उनकी अन्य प्रसिद्ध रचनाएँ हैं।
#सूरमा - - कविता परिचय
प्रस्तुत कविता के अनुसार कायर अथवा डरपोक व्यक्ति मुश्किलों से, विपत्तियों से
घबराकर उनके सामने घुटने टेक देते हैं।
सूरमा' अर्थात वीर पुरुष संकट का डटकर मुकाबला कर सदैव आगे बढ़ते हैं। कवि के अनुसार शूरवीर व्यक्ति धैर्यवान, उद्यमी, दृढ़निश्चयी और साहसी होते हैं अर्थात् वो मुसीबत और समस्याओं से घबराते नहीं वरन
अपनी बुद्धि, बल, धैर्य और दृढ़ निश्चय के बल उसका सामना करते हैं। ।
सच है विपत्ति जब आती है,
कायर को ही दहलाती है |
सूरमा नहीं विचलत होते,
क्षण एक नहीं धीरज खोते |
विघ्नों को गले लगाते हैं,
काँटों में राह बनाते हैं |
कवि कहते हैं कि मुसीबत आने पर डरपोक अर्थात् कायर व्यक्ति उससे घबरा जाते हैं, किंतु शूरवीर अर्थात् वीर पुरुष अपने कर्त्तव्य पथ से नहीं हटते । वे एक क्षण के लिए भी अपना धैर्य और विश्वास नहीं छोड़ते। मार्ग में आने वाली बाधाओं और परेशानियों को सहर्ष स्वीकार करते हुए वो धैर्य पूर्वक उनका मुकाबला करते हुए उसका समाधान ढूँढ़ लेते हैं। इन मुश्किल रूपी काँटों के मध्य से ही वो अपनी मंजिल के लिए रास्ता बना लेते हैं अर्थात् समस्त समस्याओं का हल निकाल लेते हैं।
मुँह से कभी ना उफ कहते हैं,
संकट का चरण न गहते हैं |
जो आ पड़ता सब सहते हैं,
उद्योग- निरत नित रहते हैं |
शूलों का मूल नसाने हैं ,
बढ़ खुद विपत्ति पर छाते हैं |
कवि कहते हैं कि वीर पुरुष अर्थात् शूरवीरों के मुख पर कभी भय का भाव नहीं आता वो कभी भी अपने मुख से उफ नहीं कहते अर्थात मुसीबतों को देखकर घबराते नहीं, डरते नहीं।
संकट आने पर उसके चरण पकड़ कर बैठते नहीं, उसके टलने की याचना नहीं करते वरन अपनी बुद्धि, बल, धैर्य और दृश्य निश्चय के बल पर उसे सहन करते हुए सदैव अपने कार्य में लगे रहते हैं। उद्योग- निरत नित रहते हैं अर्थात् सदैव कर्म करते रहते हैं।
वो मुश्किलों से सिर्फ एक बार पार पाकर उससे पीछा नहीं छुड़ा लेते वरन मार्ग में आने वाले कांटों और शूलों रूपी मुश्किलों को जड़ से समाप्त कर स्वयं उनको कुचलते हुए आगे बढ़ जाते हैं अर्थात् स्वयं विपत्तियों पर काल की भाँति छा जाते हैं।
है कौन विघ्न ऐसा जग में,
टिक सके आदमी के मग में?
खम ठोक ठेलता है जब नर,
पर्वत के जाते पाँव उखड़ |
मानव जब जोर लगाता है,
पत्थर पानी बन जाता है |
उपर्युक्त पंक्तियों में कवि मनुष्य की बुद्धि की महिमा की बात करते हुए कहते हैं कि संसार में ऎसी कोई मुश्किल, ऎसा कोई संकट, ऎसी कोई रुकावट नहीं जो मनुष्य की बुद्धि और बल के समक्ष टिक सके।
कवि कहते हैं कि पुरुषार्थी मानव जब अपने उत्साह और हिम्मत से आगे बढ़ता है तो पहाड़ों के पाँव भी उखड़ जाते हैं अर्थात् मनुष्य अपने परिश्रम और बुद्धि बल पर पहाड़ों को काटकर उनके मध्य रास्ता बना लेता है।
कवि अनुसार मनुष्य जब अपनी योग्यता और कार्य क्षमता को प्रदर्शित करता है तो मुश्किल से मुश्किल कार्य भी आसान हो जाता है और पत्थर के समान कठोर बर्फ की शिलाएं भी पिघलकर पानी की ठंडी धार बनकर बहने लगती हैं ।
गुण बड़े एक से एक प्रखर,
हैं छिपे मानवों के भीतर
मेहंदी में जैसे लाली हो,
वर्तिका बीच उजियाली हो |
बत्ती जो नहीं जलाता है,
रोशनी नहीं वह पाता है |
मनुष्य को उसके गुणों की पहचान करवाते हुए कवि कहते हैं साधारण से दिखने वाले मनुष्य मेंउसी प्रकार अनेक छिपे हुए हैं जिस प्रकार मेहंदी में लालिमा और दीपक की बाती में रोशनी छिपी होती है। जो व्यक्ति यह बाती नहीं जलाता, उसे कभी प्रकाश नहीं मिलता।
जैसे मेहंदी से लालिमा प्राप्त करने के लिए उसे सिलबट्टे पर पीसना पड़ता है और बाती से रोशनी पाने के लिए उसे जलाना पड़ता है उसी प्रकार जरूरत है मनुष्य के हृदय में सुप्त अवस्था में पड़े गुणों और पुरुषार्थ से उसकी पहचान करवाने की। जिनके सहारे वो मुश्किल और समस्याओं को समक्ष डटकर खड़ा हो सके लड़कर अपनी मंजिल प्राप्त कर सके।
#सुनीता बिश्नोलिया
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