माँ का साथ
एक दिन मीनू रास्ते से जा रही थी | तभी सड़क के किनारे उसे किसी के रोने की आवाज़ आई | उसने देखा की एक बूढी औरत रो रही थी | मीनू ने उनसे पूछा "क्या हुआ दादीमा? आप इस तरह क्यूँ रो रही हैं?" उन्होंने कहा "मेरे बहु-बेटे ने मुझे घर से बाहर निकाल दिया है | वह कहते है की मैं उनके लिए बोझ हूँ |" मीनू को यह सुनकर अच्छा नहीं लगा | वह उन्हें अपने साथ अपने घर ले गई | जब उसने यह बात अपने माता पिता को बताई तो उन्होंने कहा " बेटी हम भी इन्हें हमारे साथ रखना चाहते हैं पर तुम तो जानता हो की हमारी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है | मेरा काम भी अच्छा नहीं चल रहा है | पहले ही घाटा हो चुका है | और जो कुछ भी मैं कमा रहा हूँ वो भी घर चलाने के लिए काफी नहीं | एक और सदस्य का खर्चा कैसे उठा सकते हैं |"
मीनू उदास थी पर काफी चर्चा के बाद दादीमा को वृद्धआश्रम ले जाने का फैसला हुआ | उन लोगों पर बोझ ना बनने के लिए, दादीमा ने भी सहमति दे दी | कुछ दिनों बाद एक वृद्धआश्रम का बंदोबस्त कर उन्हें वहाँ छोड़ आए | मीनू उदास रहने लगी | परंतु कुछ समय बाद अचानक मानो कोई जादू सा हुआ | मीनू के पिताजी के पास बहुत बड़ा अॉर्डर आया और धीरे धीरे उनके काम में तरक्की होने लगी | जैसे ही उनकी आर्थिक स्थिति धोडी ठीक हुई, उन्होंने फैसला किया की वे दादीमा को वापस अपने घर ले आएँगे | दादीमा के घर आने से मीनू के पिताजी का काम बहुत अच्छा चलने लगा | उनके पैसे की समस्या भी धीरे धीरे हल हो गई | अब उनका जीवन खुशियों से भर गया था |
एक दिन घर के बाहर दस्तक हुई | दरवाज़ा खोला तो वहाँ दादीमा का बेटा खड़ा हुआ था | वह अपनी माँ को वापिस घर ले जाने की जिद कर रहा था | उसने दादीमा से कहा "माँ मुझसे गलती हो गई मुझे माफ कर दो | हम आपके बिना कुछ नहीं | कृपया मेरे साथ वापस चलिए और मुझे मेरी गलती के लिए माफ कर दीजिए |" मीनू गुस्से से बोली " नहीं! दादीमा अब हमारे घर की सदस्य हैं | वे यहीं रहेंगी | वे आप के साथ वापस नहीं जाएँगी | मैं उन्हें अपने से दूर नहीं जाने दूँगी |" दादीमा भी मीनू के साथ रहना चाहती थीं परंतु अपने बेटे के लिए उनकी ममता उतनी ही थी जितनी मीनू के लिए | मीनू की माता ने उसे समझाया " मीनू, जैसे तुम अपने माता पिता के बिना नहीं रह सकती वैसे ही दादीमा के बच्चे उनके बिना नहीं रह सकते | उनके लिए उनकी माँ बहुत जरूरी हैं | जैसे तुम अपनी माँ से प्यार करती हो वो भी तो करते हैं ना | मीनू समझ गई और उसने दादीमा को खुशी खुशी अलविदा किया | आखिर में सभी खुश थे |
शिक्षा - ईश्वर आपकी सहायता के लिए किसी भी रूप में आ सकते हैं बस हमें अच्छे कर्म करने कभी नहीं छोड़ने चाहिए |
वैष्णवी छिपा
जयपुर
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