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किस्मत - कर्म और भाग्य


अच्छे-बुरे के होने को,मनुज 'भाग्य'बतलाता है,
मनचाहा नहीं मिलने पर,किस्मत की दुहाई देता है।
मनुज तुम्हारे हाथों में भाग्य का चाँद चमकता है,
कर्म से मिलता है इच्छित,ईश्वर का गणित ये कहता है।
श्रम से डरते मानव की किस्मत का सितारा सोता है,
अंधियारी गलियों 'बोझा',अंधविश्वास का ढोता है।
मानव की बांहों की ताकत को,ईश्वर तक ने माना है,
'किस्मत का धनी' है वो इंसा,जिसने इस मर्म को जाना है।
भाग्य तेरा क्यों कर फूटा,लो..आज मैं तुम्हें बताल दूँ,
भाग्य से तुमको लड़ना,आओ...मैं सिखला दूँ।
भाग्य के नाज घनेरे हैं, कब तक तुझको दुत्कारेगा
गर कर्म करेगा आगे बढ़ तो भाग्य भी चरण पखारेगा।
भाग्य के बल पर नहीं किसी ने,कर्म के बल पर सब पाया
धरती से अम्बर तक मानव, भाग्य बदलता है आया।
पुष्प खिला  माली की मेहनत,मकरंद तभी छिटकाया।
किस्मत का टूटा कहर, कृषक का हरा खेत मुरझाया,
उम्म्मीद का दामन न छोड़ा,,वो भाग्य से जा टकराया,
हाथों के दम पर उसने फिर,कर्म का पुष्प खिलाया।
बार -बार चींटी की किस्मत,नीचे उसे उसे गिराती है,
कर्मठ चींटी  फिर उठकर,मंजिल को पा ही लेती है।
किस्मत अपनी स्वयं लिखो,न भाग्य को अपने कोस
परिवर्तन धरा पे लाकर के ,कर कर्म पे तू विश्वास ।


#सुनीता बिश्नोलिया

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