लीलटांस #नीलकंठ
नहीं देखा था उन्हें किसी
कुप्रथा या अंधविश्वास
को मानते
पर.. कुछ परम्पराएं थीं
जो निभाते रहे सदा।
दादा जाते थे दशहरे पर
लीलटांस देखने
उनके न रहने पर
जाने लगे पिता।
घर से कुछ ही दूर जाने पर
दिख जाता था तब
धीरे-धीरे दूर होता गया
पिता की पहुँच से लीलटांस।
जाने लगे पाँच कोस खेत तक
ढूँढने उसे
हमारी साथ जाने की
ज़िद के आगे हार जाते..
किसी को कंधे पर तो
किसी की ऊंगली थाम
बिना पानी पिए,
चलते थे अनवरत
दूर से दिखने पर
लीलटांस... लीलटांस...
चिल्ला दिया करते थे
हम बच्चे.. और
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बिना पिता को दिखे
उड़ जाता था लीलटांस,
उसी को दर्शन मान
रास्ते में एक वृक्ष रोपते हुए
लौट आते थे पिता घर,
अंधविश्वास नहीं
विश्वास के साथ।
फिर से घर के नजदीक
दिखेगा लीलटांस।
सुनीता बिश्नोलिया ©®
बहुत बहुत धन्यवाद
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