दूर मेरे आँचल से दोनों,
मेरे बच्चे रहते हैं
सब ठीक है माँ चिंता न करो
एेसा मुझसे कहते हैं।
नौकरी के सिलसिले में बच्चे कहाँ माता-पिता के पास रहते हैं। दोनों बच्चे जयपुर से बाहर मुझसे दूर रहते हैं।
पर माँ तो माँ होती है चाहे वो माँ कोई भी हो.. मेरे हृदय में भी ममता हिलोरें मारती हैं। बच्चों को देखने के लिए आँखें तरसती हैं।रोज ही तो बात होती है।भला हो टेक्नॉलॉजी का जिसके द्वारा बच्चों को देख भी लेती हूँ।
वैश्विक संकट #कोरोना के कारण घर से दूर बच्चों की चिंता होती है। बेटी तो अपने घर में है इसलिए ज्यादा चिंता नहीं पर बेटा कम्पनी के काम से एक महीने से नोएडा के एक होटल में है। 22 मार्च को आने वाला था पर कोरोना के बढ़ते प्रकोप के कारण होटल से नहीं निकल पाया । कम्पनी ने होटल में रहने की अवधि बढ़ा दी और बिना किसी चिंता के वहीं से काम करने को कह दिया। उसके साथ उसी की कंपनी के पाँच दोस्त और हैं जो विभिन्न प्रांतों से हैं सारे वहीं से काम कर रहे हैं। बेटा कहता है ममा हम सब अपने-अपने कमरों में बैठे काम करते हैं और कोई दिक्कत नहीं बस खाने की थोड़ी समस्या आ रही है होटल में पैसे तीन गुना वसूले जाते हैं बाहर जा नहीं सकते। आज लॉक डाउन की अवधि 21 दिन बढ़ जाने पर भी बेटे ने कहा ममा न जाने हम जैसे कितने ही लोग एेसे फँसे हुए होंगे। आप चिंता ना करें हम कैद नहीं कर्त्तव्य निभा रहे हैं।
चिल ममा आप ही तो कहती हैं-
जीवन है संग्राम बटोही, तूफां से टकराजाना।
फूलों की मत आशा करना,काँटों पे चलते जाना।
लेकर के आशीष सदा तुम,कर्म-धर्म की राहों में।
दुनिया के मेले में प्यारे ,नहीं भीड़ में खो जाना।।
हाँ उसके जन्मदिन पर मैंने उसे यही कहा था। आज
एेसा लग रहा है कि मेरे बच्चों ने मेरी iइस बात को बहुत ध्यान से समझा है। अगर सभी भारतीय 21 दिन के #लॉक डाउन का अच्छी तरह पालन करें तो हर माँ का बच्चा जल्दी ही माँ के पास होगा।
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