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सुगना

#बेटी की मौत के दूसरे दिन माँ को खिलौने बेचने आना पड़ा 
''माँ चिंता मत करो, शीतला माता सब ठीक करेंगी बाबा जल्दी ही ठीक हो जाएँगे। मैं भी तो खिलौने बेचने चलूँगी।हम दोनों मिलकर ये सारे खिलौने बेच देंगे। माँ फिर छोटी को रोज दूध मिलेगा मैं इसमें से एक खिलौना भी बचाकर कर दूँगी उसे और वो स्कूल भी जाएगी। माँ बोलो ना कब चलेंगे हम मेले में...... । नटखट भालू, डांसिंग डॉल नाचता मोर.... ले लो...बीस-बीस रुपये में सारे खिलौने... ले लो ना दीदी।अंकल एक खिलौना तो ले लो मेरे बाबा की दवाई लानी है। माँ देखो मैंने भी सो रुपये के खिलौने बेच दिए आज तो दो सौ रुपये कमा लिए हैं। बाबा की दवाई, छोटी का दूध और आज का खाना सब मिल जाएगा ना.....अब मैं थोड़ी देर उस झूले पर झूल लूँ। सरकारी झूला है माँ पैसे नहीं लगेंगे...।"
  'नहीं.. नहीं.. तुम्हें कुछ नहीं हो सकता पिंकी मेरा तो तुम्हीं एक सहारा हो उठो!' लाड़ली पिंकी की मीठी यादों से जागकर सुगना चिल्ला उठी। 
'अरे! अभी-अभी तो ये खिलौने बेच रही थी,अचानक क्या हुआ इस खिलौने वाली को।'भीड़ में से एक आवाज़ आई। 
  'बिचारी बदनसीब औरत है,कल इस झूले से गिरकर इसकी साथ वर्षीय बेटी की मौत हो गई और आज उसका अंतिम संस्कार करके ये फिर खिलाने बेचने आ गई।'
  भीड़ सुगना पीड़ा पर की अफसोस जताती रही उसकी बेबसी पर सांत्वना देती रही.....और सुगना किसी लिए पुरस्कार के लिए नहीं वरन वात्सल्यमयी माँ और पतिव्रता पत्नी का दायित्व निभाने हेतु 35 हजार रूपए के उधार लिए खिलौने बेचती रही। आखिर घर चलाने के साथ उधार भी तो चुकाना है.... अब कोई मत कहना अबला जीवन हाय तेरी यही कहानी....... 
  मदद, शाबासी और सम्मान की अधिकारिणी है सुगना.. 
सुनीता बिश्नोलिया

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