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एक बाजी और...


एक बाजी और....

हवा के ठंडे झोंकों का आनंद लेते धीरे-धीरे रोज की तरह गुनगुनाते मास्टरजी मंदिर में दर्शन करके घर लौट रहे हैं।रात के लगभग बारह बज गए इसलिए सड़कें पूरी तरह खाली है।      
रात में गलियों में कुत्ते या दूसरे जानवर छिपकर बैठे होते हैं इसलिए वो रात के समय गालियों से घर ना जाकर कहारों  वाली सड़क से बालाजी के दर्शन करते हुए घर जाया करते थे। और ये उनका रोज का नियम था साढ़े ग्यारह बारह बजने को वो कोई खास देर नहीं मानते थे। रोज की तरह आज भी मास्टर जी सुनसान सड़क पर गुनगुनाते हुए चले जा रहे थे। रास्ते में सिर्फ उनकी जूतियों की चरम - चूं के अलावा कोई और आवाज़ सुनाई नहीं दे रही इधर से रोज का आना-जाना था इसलिए किसी तरह का डर-भय तो था नहीं इसलिए मास्टर जी अपनी धुन में चल रहे हैं।
    अचानक उन्हें लगा कि कोई उनका पीछा कर रहा है एेसा लगा कि किसी के चलने और दूसरी जूतियों की चरम-चूं का अपना पीछा करने का अहसास हुआ। फिर उन्होंने इसे अपना वहम समझा और चलते रह रहे पर अब उन्हें एेसा लगा कि जूतियों के चरम-चूं, चरम-चूं की आवाजें उनके बेहद निकट आ गई है। मास्टर जी ने पीछे मुड़कर देखा तो कोई नहीं दिखा और उन्होंने इधर-उधर नजरें दौड़ाई पर कहीं कोई नहीं दिखा। कभी नहीं डरने वाले मास्टरजी के माथे पर भी अब पसीने की बूंदे उभर आई है।
     'मास्टर रुक, रुक मास्टर एक बाजी और..! तभी इस चिर परिचित आवाज सुनकर मास्टर जी ने जब इकबाल को अपने सामने देखा तो उनके के जान में जान आई और बोले-' अरे! इक़बाल तू आज इतनी रात को कहाँ से आया है।'
' तू दो-दिन से चौपड़ खेलने नहीं आ रहा मास्टर इसलिए तुझे ही ढूँढ रहा था,चल एक बाजी खेलते हैं। '
  'स्कूल दूर है  बस में आने-जाने में बहुत टाईम लग जाता है घर पहुँचते-पहुँचते ही शाम हो जाती है बहुत थक जाता हूँ इसलिए नहीं आया जा रहा।कोई बात नहीं कल खेलेंगे। '
' नहीं मास्टर एक बाजी तो खेलनी ही पड़ेगी। '
' नहीं भाई अब तो नहीं, कल जरूर खेलेंगे... '
' मास्टर अपने दोस्त की बात नहीं मानेगा.. एक बाजी... सिर्फ एक बाजी.. एक बाजी। ' कहते-कहते इक़बाल रुआँसा हो गया और उसकी बोली बदलने लगी।
बालाजी मंदिर की ओर इशारा करते हुए मास्टर जी बोले - ' देख भाई अभी तो इस मंदिर के बाहर माथा टेकना है आज तो बिल्कुल नहीं, कल खेलते हैं.. ' कहते हुए मास्टर जी ने जेब में हाथ दिया तो छोटी सी हनुमान चालीसा निकली जिसे वो हमेशा जेब में रखते थे।
अच्छा भाई इक़बाल चल घर... कहते हुए मास्टरजी ने ऊपर मुँह किया तो इक़बाल वहाँ नहीं था... 'इक़बाल, इक़बाल..' कहते हुए मास्टरजी जी चारों तरफ देखने लगे तभी उनकी दृष्टि सामने कब्रिस्तान के दरवाज़े के अंदर खड़े इक़बाल पर पड़ी।
'ओह इक़बाल.... का. तो एक्सीडेंट हो गया.. वो मर गया था... इक़बाल ओह, ओह कहते हुए मास्टरजी आगे बढ़ने की कोशिश करने लगे और इक़बाल कब्रिस्तान के अंदर से चिल्लाता रहा -' मास्टर एक बाजी... मास्टर मुझे निकालो यहाँ से । '
' ओह.! ओह! इक़बाल, मेरे दोस्त ' कहते हुए मास्टरजी अपने होशो -हवास खो कर मंदिर की सीढ़ियों पर धम्म से गिर गए।
   पास वाली गली में चक्कर काटकर हुए चौकीदार सड़क की तरफ आया तो वो मास्टर जी को इस हाल में देख कर भागकर इनके पास आया।
' क्या हुआ मास्टर जी उठो.. उठो मास्टर जी... '
' इक़बाल.. इक़बाल रुक.. सुन तो, कल खेलेंगे.. जरूर खेलेंगे इकबाल।'
चौकीदार ने कहा - ' मास्टर जी उठिए ये आप कैसी बातें कर रहे हैं आपका दोस्त इकबाल तो कल एक्सीडेंट मर  गया।'
'नहीं अभी-अभी वो यहीं था वो बहुत जिद्दी है एक बाजी खेलने की ज़िद कर रहा था.. पर वो कब्रिस्तान में.. वो.. वो.... अंदर है, वो.. वो सब उसे घेर कर खड़े हैं ... निकलो.. निकलो..इक़बाल.. आओ. आओ एक बाजी खेलते हैं..' पसीने से भीगे मास्टरजी आओ - आओ कहते हुए बेहोश हो गए....... इतनी रात को कब्रिस्तान में नहीं...
शेष अगले अंक में..
  सुनीता बिश्नोलिया
जयपुर ©®


 


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