शिव को ढूंढो अंतर में
अपने मन को मान शिवाला
शिव को ढूंढो अंतर में।
नहीं भटकना होगा तुमको
इस सृष्टि के सागर में।
मत बढने दो जिज्ञासाएं
मधुर मिलन होगा कैसे
मन से लो तुम नाम मिलेंगे
भावनाओं के शिव प्यासे।।
ना सोने के महलों में शिव
ना झूठे आडंबर में
अपने मन को मान शिवाला
शिव को ढूंढो अंतर में।
कण-कण में हैं भोले शिव
हर दीन पे दृष्टि रखते हैं
डमक-डमक डमरू के स्वर में
हर आखर शिव रहते हैं।
मस्त-मलंग शिव संन्यासी
शिवा के हैं मन-मंदर में
संयम शील आचरण हो
मत ढूंढो गहन समंदर में
ना सोने के महलों में शिव
ना झूठे आडंबर में
अपने मन को मान शिवाला
शिव को ढूंढो अंतर में।।
सुनीता बिश्नोलिया
Very nice ma'am
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत धन्यवाद
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